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कौन करेगा बर्खास्त मीडियाकर्मियों के साथ न्याय?

क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पक्ष में आवाज उठाना गुनाह है? अमित नूतन की पत्नी की मौत है या हत्या?

भड़ास फॉर मीडिया पर पढ़ा कि राजस्थान पत्रिका से बर्खास्त अमित नूतन की पत्नी का निधन हो गया। अमित नूतन का दोष यह था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए प्रबंधन से मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से वेतन की मांग की थी। इस साहस की कीमत उन्हें पहले बखार्रस्तगी और अब अपनी पत्नी के निधन के रूप में चुकानी पड़ी। यह घटना भले ही लोगों को आम लग रही हो पर जिन हालातों में अमित नूतन की पत्नी का निधन हुआ है यह मामला बड़ा है। देश की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पक्ष में आवाज उठाना क्या गुनाह है ? जब अमित नूतन को बर्खास्त किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने क्या किया?

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क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पक्ष में आवाज उठाना गुनाह है? अमित नूतन की पत्नी की मौत है या हत्या?

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भड़ास फॉर मीडिया पर पढ़ा कि राजस्थान पत्रिका से बर्खास्त अमित नूतन की पत्नी का निधन हो गया। अमित नूतन का दोष यह था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए प्रबंधन से मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से वेतन की मांग की थी। इस साहस की कीमत उन्हें पहले बखार्रस्तगी और अब अपनी पत्नी के निधन के रूप में चुकानी पड़ी। यह घटना भले ही लोगों को आम लग रही हो पर जिन हालातों में अमित नूतन की पत्नी का निधन हुआ है यह मामला बड़ा है। देश की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पक्ष में आवाज उठाना क्या गुनाह है ? जब अमित नूतन को बर्खास्त किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने क्या किया?

जिन अखबार मालिकों ने अमित नूतन के परिवार के सामने इस तरह की परिस्थिति पैदा की, उन पर क्या कार्रवाई की ? क्या यह हत्या का मामला नहीं है ? जो लोग किसी व्यक्ति को मरने के लिए मजबूर कर दें वे उसके हत्यारे होने चाहिए? कौन बताएगा कि कविता नूतन की मौत का दोषी कौन है ? वे लोग जिन्होंने अमित नूतन को बर्खास्त किया या फिर वे लोग जो उसे न्याय न दिलवा सके या न दे सके। अमित नूतन की पत्नी का निधन हो गया तो लोगों को उनकी दयनीय हालत का पता चल गया पर जो दूसरे लोग मजीठिया मांगने पर बर्खास्त किए गए हैं, क्या उनके सामने भी इसी तरह के हालात नही होंगे?

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दैनिक जागरण में 450, राष्ट्रीय सहारा में 47 और अन्य अखबारों में ऐसे कितने मीडियाकर्मी मजीठिया मांगने पर बर्खास्त किए गए हैं। राष्ट्रीय सहारा में 25 कर्मचारी ऐसे हैं कि जिन्हें 17 माह का बकाया वेतन और मजीठिया मांगने पर बर्खास्त किया गया है। देश बड़े वकील इस मामले की पैरवी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट अखबार मालिकों के खिलाफ दायर किए गए अवमानना केस की सुनवाई सुन रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिरकार यह सुनवाई हो रही है किन कर्मचारियों के हित में ? जिन कर्मचारियों ने साहस दिखाकर अखबार मालिकों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया उन्हें तो बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मान भी लिया जाए कि मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से वेतन मिलने लगेगा। बर्खास्त कर्मचारियों को तो इससे भी कोई फायदा होता नहीं दिखाई दे रहा है।

लंबे समय से बेरोजगारी का दंश झेल रहे ये कर्मचारी इस दयनीय हालत में भी मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे हैं। अपनी आंखों के सामने ही अपने बच्चों को अभाव में जीते देख रहे हंै। मेरी तो समझ में यह ही नहीं आ रहा है कि हम लोग आखिरकार लड़ किसके लिए रहे हैं ? मेरा माननीय सुप्रीम कोर्ट और मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ रहे वकीलों से प्रश्न है कि क्या मजीठिया वेज बोर्ड से वेतन मिलने से पहले उन बर्खास्त कर्मचारियों के साथ न्याय नहीं होनी चाहिए, जिन्होंने साहस दिखाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करने के लिए अखबार प्रबंधन और मालिकों से कहा।

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इस मामले की पैरवी कर रहे वकील कह रहे हैं कि मीडियाकर्मी मजीठिया  के लिए क्लेक करें। जिन कर्मचारियों ने मजीठिया की मांग की हैं वे तो सभी बर्खास्त कर दिए गए हैं। उनके लिए आप क्या कर रहे हैं ? ऐसे में कौन उठाएगा मजीठिया वेज बोर्ड की आवाज ? कौन करेगा बड़े वकीलों और सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास ? यदि बर्खास्त होते ही अमित नूतन को न्याय मिल गया होता तो शायद उनकी पत्नी का निधन न होता। साथ ही अन्य अखबारों के मालिक मजीठिया मांगने पर किसी मीडियाकर्मी को बर्खास्त न करते । जब ये लोग बर्बाद हो जाएंगे तब मिलेगा इन्हें न्याय। या जब इनके पास कुछ नहीं बचेगा तब इन्हें बहुत कुछ मिलेगा। क्या फायदा होगा इस न्याय का ? बात अमित नूतन की ही नहीं है कि बर्खास्त किए गए लगभग सभी कर्मचारियों के हालात ऐसे ही हैं। सुप्रीम कोर्ट और मजीठिया वेज बोर्ड के मुकदमे की पैरवी कर रहे वकीलों ने बर्खास्त कर्मचारियों के साथ यदि जल्द न्याय नहीं किया तो हालात और भयावह हो सकत हैं। अखबार मालिकों का मनोबल बढ़ा हुआ है। जो भी कर्मचारी मजीठिया कीम मांग करता है उसे बर्खास्त कर दिया जाता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट और वकील क्या कर रहे हैं ?

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चरण सिंह राजपूत
[email protected]

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0 Comments

  1. ss

    February 19, 2017 at 8:14 pm

    Iss samoochey prakaran me yadi dekha jaye, to sirf SC ya Akhbaar ke Malik hi Katghadey me khadey nahi hain. Asal log jo Katghadey me khade hain, unhein hum dekh aur samajh bhi rahey hain. Aur shayad aap bhi samajh rahey. Ye wo log hain, jo Akhbaar ke kermchari bhi hain, Neta bhi hain. Aur ek aur log hain, “Federation” ke log. Mai poochhta hoon, ye Federation bana kar kya “Ukhad” rahey hain?? Inki Gandi Kartooton ki wajah se Media karmiyon ki ye “Durdasha” ho rahi hai, aur in sabke sabse badey “Gunahgar” to ye Federation waley hi hain, jo ek taraf hamare samney “Ghadiyali Ansu” bahaate hain, aur dusri taraf Malikon ke Talwe Chat te hain aur wo bhi chand Rupaye paise ke lalach me. Mai to kehta hoon, ki aise federation ke honey ya na honey ka kya faida? Ab samai aa gaya hai, workers ko inke “Astitwa” ko “Khatm” kar dena chahiye. Inka “Walk-out” hona chahiye. Abhi ye Federation 6th Pay (Majithia) to dilwa nahi saki aur Shahar-dar-shahar logon ko Gumrah kar 7th Pay Commission ke liye Meeting ker rahey hain. Kai meetings ho bhi chuke hain inke….!!! Kya baat hai…! Thoda “Sharm karo” Federation walon. Malikon, Manageron, Directaron se to ooper jawab mangaa hi jayega. Tumse bhi “Jawab Mangaa Jayega”.
    Regards
    Note : Mere koi bhi lekh “Bhadas me chhapte nahi”, kyon ki main aisa hi hoon aur aise hi likhunga. Apney mann ke bhadas ko aise hi uzaagar karunga. Kissi ko bura lagey, to lagey…

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