अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
धूमिल अगर आज होते तो यह न कहते कि इतना कायर हूं कि उत्तर प्रदेश हूं…. बल्कि यह कहते कि इतना कायर हूं कि विपक्ष हूं. बिखरा हुआ विपक्ष और उसके नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सामना संसद से लेकर सड़क तक जिस कायरता से कर रहे हैं, धूमिल का ऐसा कहना ग़लत भी नहीं होता. पिछले एक दशक का मोदी राज देखिए तो पता चल जाएगा कि चाहे जितना संवेदशील या बड़े से बड़ा मुद्दा हो, विपक्ष किसी चूहे की तरह थोड़ा बहुत चूं चूं करके भाग खड़ा होता है.
ज्यादा पुरानी बात नहीं है , जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने ऐसे ही चूहे की तरह दुबके रहने वाले विपक्ष को जेपी ने राजपाट दिलवा दिया था… और अब उस राजपाट को छीनकर मोदी ने बड़ी ही आसानी से उसी विपक्ष को पुनर्मुष्को भव टाइप स्थिति में पहुंचा दिया है.
और दिलचस्प बात यह है कि इंदिरा की तरह उन्होंने इसके लिए इमरजेंसी लगाने जैसी भयावह गलती भी नहीं की. इसलिए यह तो मानना ही पड़ेगा कि इंदिरा गांधी के तीन – चार दशक बाद प्रधानमंत्री पद पर आए नरेंद्र मोदी ने इंदिरा से भी बेहतर तरीकों का इस्तेमाल करके दुनिया को दिखा दिया है कि सत्ता की ताकत से विपक्ष को कैसे चूहा बनाया जा सकता है.
कम से कम इस मामले में तो मोदी को इंदिरा गांधी से कहीं ज्यादा सफल प्रधानमंत्री माना ही जा सकता है. वैसे भी, इंदिरा ने अपने सामने मौजूद जिस विपक्ष को चूहा बना कर रखा था, तब वह उतना ताकतवर नहीं था, जितना मोदी को साल 2014 में सत्ता में आने पर मिला था.
मोदी जब सत्ता में आए तो उनके सामने एक तरफ केंद्र और कई राज्यों में दशकों से सत्ता का स्वाद छक चुकी कांग्रेस थी तो दूसरी तरफ उनके सामने जाति, भाषा और क्षेत्र की राजनीति करके अपने अपने राज्यों के अजेय महारथी बन चुके दलों और नेताओं का जमघट भी था.
यही दल तब भी विपक्ष में थे , जब इंदिरा गांधी थीं लेकिन इनके पास तब सत्ता का अनुभव और उससे उपजा अहंकार व ताकत नहीं थे. यह ताकत व अहंकार मिला इन्हें जेपी के आंदोलन के बाद , जिसने इन्हें राज्यों की सत्ता दशकों तक तो कुछ बरस केंद्र की सत्ता भी दिलाई.
अगर जेपी ने इंदिरा की तानाशाही और निरंकुशता से खफा होकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन न किया होता और इसके लिए बिना इंदिरा की निरंकुश ताकत से डरे अपनी जान की बाजी न लगाई होती तो न इंदिरा कभी हारती, न कभी कांग्रेस सत्ता से बाहर होती और न मोदी- भाजपा कभी सत्ता में आने का सपना भी देख पाते.
भाजपा ( पूर्व में जनसंघ) भी महत्वपूर्ण दल तभी बनी है, जब जेपी ने अपने आंदोलन के लिए गैर कांग्रेसी दलों को इंदिरा के खिलाफ एकजुट किया. भाजपा भी उनमें से एक दल के रूप में शामिल थी. जेपी के नेतृत्व में हुई इन्हीं दलों की एकजुटता ने कांग्रेस को धकिया कर केंद्र व राज्यों की सत्ता में इन दलों की खिचड़ी सरकार को बैठाया था.
अब मोदी एक बार फिर विपक्ष को पुनर्मुष्को भव दशा में पहुंचाकर अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं. विपक्ष और उसके नेता बयानबाजी और सोशल मीडिया में चूं चूं कर रहे हैं क्योंकि जेपी तो कब के दुनिया से चले गए. बिना जेपी के राष्ट्रव्यापी आंदोलन के लिए एकजुट होना तो दूर, इनके बस का तो अब शायद मोहल्लाव्यापी आंदोलन भी नहीं रहा.