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वाह रे ‘आज’ : शशि शेखर ने क्या कहा और अखबार ने क्या छाप दिया!

वाराणसी। हिन्दुस्तान अखबार के प्रधान संपादक ने 27 अप्रैल को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय में आयोजित एक कार्यक्रम में अपने उद्बोधन में राष्ट्रपति को ही दिवंगत बता दिया! ये मैं नहीं, बनारस में सबसे पुराने अखबार ‘आज’ में छपी रिपोर्टिंग तो यही कहती है. हैरत की बात तो यह है कि यह वही आज अखबार है, शशि शेखर ने जिस अखबार से अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की. इतना ही नहीं, लम्बे समय तक इस अखबार से जुड़े रहने वाले शशिशेखर आज अखबार के आगरा संस्करण के स्थानीय संपादक भी रहे।

वाराणसी। हिन्दुस्तान अखबार के प्रधान संपादक ने 27 अप्रैल को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय में आयोजित एक कार्यक्रम में अपने उद्बोधन में राष्ट्रपति को ही दिवंगत बता दिया! ये मैं नहीं, बनारस में सबसे पुराने अखबार ‘आज’ में छपी रिपोर्टिंग तो यही कहती है. हैरत की बात तो यह है कि यह वही आज अखबार है, शशि शेखर ने जिस अखबार से अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की. इतना ही नहीं, लम्बे समय तक इस अखबार से जुड़े रहने वाले शशिशेखर आज अखबार के आगरा संस्करण के स्थानीय संपादक भी रहे।

उसी अखबार ने अपने 28 अ्रपैल बनारस संस्करण के पृष्ठ संख्या 5 पर छपे 5 कालम के समाचार में शीर्षक ‘स्वच्छता को व्यावहारिक जीवन में लागू करने की जरूरत’ में शशि शेखर के सार गर्भित विचार को कुछ यूं शब्दों में ढाला– ‘‘विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री शशि शेखर ने कहा कि दो अक्टूबर 2014 को बापू के जन्म दिन पर स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने 2017 में बापू की 150वीं जयन्ती से पूर्व पूरे देश को स्वच्छ बनाने का आग्रह न केवल हमारे राष्ट्रपति के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है बल्कि जनमानस में स्वछता को व्यक्तिगत आदत से बढ़कर इसे सामाजिक आदत में बदलना है।’’

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इतना ही नहीं, इन्हीं पंक्तियों को आगे के पैरा में आज अखबार ने दोबारा छाप कर संपादन कला का बेहतर नमूना पेश किया है। गौर से देखने पर पता चलता है कि पूरा समाचार ही त्रुटिपूर्ण है। गौर करने की बात तो ये है कि यह वही आज अखबार है जिसने हिन्दी के प्रचार-प्रसार में कई महत्वपूर्ण शब्द दिये हैं, जो आज भी प्रचलन में है। यह भी उल्लेखनीय है कि जिस अखबार को पढ़कर कई अहिन्दी भाषियों ने हिन्दी को सीखा आज उसी अखबार के संपादकीय विभाग की कार्यशैली को देखकर सिर शर्म से झुक जाता है। और हो भी क्यों न, जिस अखबार के स्वंयभू संपादकाचार्य शार्दुल विक्रम गुप्त गर्व से यह यह कहते फिरते हैं, मैं चाहूं तो किसी रिक्शे वाले को भी संपादक बना सकता हूं, तो उस अखबार का यही हश्र होना तय है।

लेखक आर.राजीवन बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क 07800644067 के जरिए किया जा सकता है.

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