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सियासत

वो लड़का अपनी 68 वर्षीय विधवा मां की शादी के बाद बहुत खुश-खुश मिठाई लिए आया था…

Sayeed Ayub : मेरा एक अमेरिकन छात्र एक दिन बहुत खुश-खुश, मिठाई लिये हुए मेरे पास आया। वजह पूछने पर पता चला कि एक दिन पहले उसकी माँ ने अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर ली थी। उस वक्त माँ की उम्र 68 वर्ष थी और वे पिछले लगभग 12 वर्षो से विधवा थीं। मेरे छात्र को बहुत बड़ी खुशी इस बात की थी कि उसकी माँ अब अकेली नहीं होंगी। उनका साथ देने के लिये कोई हर वक्त उनके पास होगा। जब कभी भी किसी बुजुर्ग की शादी या रोमांस का मज़ाक़ उड़ाते हुए देखता हूँ, यह घटना, उस छात्र का ख़ुशी से भरा चेहरा और अपनी माँ के प्रति उसकी चिंता सहज ही सामने आ जाती है।

<p>Sayeed Ayub : मेरा एक अमेरिकन छात्र एक दिन बहुत खुश-खुश, मिठाई लिये हुए मेरे पास आया। वजह पूछने पर पता चला कि एक दिन पहले उसकी माँ ने अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर ली थी। उस वक्त माँ की उम्र 68 वर्ष थी और वे पिछले लगभग 12 वर्षो से विधवा थीं। मेरे छात्र को बहुत बड़ी खुशी इस बात की थी कि उसकी माँ अब अकेली नहीं होंगी। उनका साथ देने के लिये कोई हर वक्त उनके पास होगा। जब कभी भी किसी बुजुर्ग की शादी या रोमांस का मज़ाक़ उड़ाते हुए देखता हूँ, यह घटना, उस छात्र का ख़ुशी से भरा चेहरा और अपनी माँ के प्रति उसकी चिंता सहज ही सामने आ जाती है।</p>

Sayeed Ayub : मेरा एक अमेरिकन छात्र एक दिन बहुत खुश-खुश, मिठाई लिये हुए मेरे पास आया। वजह पूछने पर पता चला कि एक दिन पहले उसकी माँ ने अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर ली थी। उस वक्त माँ की उम्र 68 वर्ष थी और वे पिछले लगभग 12 वर्षो से विधवा थीं। मेरे छात्र को बहुत बड़ी खुशी इस बात की थी कि उसकी माँ अब अकेली नहीं होंगी। उनका साथ देने के लिये कोई हर वक्त उनके पास होगा। जब कभी भी किसी बुजुर्ग की शादी या रोमांस का मज़ाक़ उड़ाते हुए देखता हूँ, यह घटना, उस छात्र का ख़ुशी से भरा चेहरा और अपनी माँ के प्रति उसकी चिंता सहज ही सामने आ जाती है।

 

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मज़ाक़ उड़ाने वाले अधिकाँश लोग, पहली फ़ुर्सत में भारत को अमेरिका (यानी एक विकसित देश) जैसा बनाने की वक़ालत करते नज़र आयेंगे। मैं बस सोचता रह जाता हूँ कि ये इसी तरह से अपनी कुंठाओं का प्रदर्शन करते हुये, जेंडर बायस्ड रहते हुये, अपनी-अपनी धर्मगत-जातिगत श्रेष्ठता का खुलेआम प्रदर्शन करते हुये, सुविधा होने के बावजूद, कहीं भी खुले में हगते-मूतते हुये, जगह-जगह खखार खखार कर थूकते हुये, विदेशी सैलानियों पर फब्तियाँ कसते हुये, लड़कियों को छेड़ कर अपनी मर्दांगी दिखाते हुये, औरतों के बारे में गंदे-गंदे जोक्स शेयर करते हुये, अपने घर की महिलाओं से गुलामों की तरह का बर्ताव करते हुये, दहेज के लिये बहुओं को जला कर मार डालते हुये, प्रेम करने के जुर्म में अपने ही बेटे-बेटियों की हत्या करते हुये, आॅफ़िस में देर से आते और समय से पहले ही निकल जाते हुये, कामचोरी करते हुये, बेईमानी करते हुये, रिश्वत लेते-देते हुये भारत को विकसित राज्य के रूप में देखने की जो हिम्मत करते हैं, उसके लिये उनकी कितनी तारीफ़ करूँ?

Sanjaya Kumar Singh : वह लड़का खुश होगा – क्योंकि उसकी मां ने किसी हमउम्र से शादी की होगी। अगर उसके किसी मित्र से कर ली होती तो ऐसा बिल्कुल नहीं होता। दिग्विजय सिंह ने विधुर जीवन अकेले काटने के डर से नहीं, विवाहेत्तर संबंध (बेटी की उम्र की लड़की से) को जायज ठहराने के लिए शादी की है। जो दरअसल एक गलती को सही ठहराने के लिए दूसरी गलती है। और यह नहीं सोचा कि सामान्य स्थितियों में उनके बाद अमृता को फिर एक शादी करनी पड़ेगी और वह ठीक होगा कि नहीं। आज से 20 साल बाद दिग्विजय सिंह 88 साल के होंगे और अमृता सिर्फ 64 की। सब कुछ सामान्य रहा तो अमृता को फिर एक शादी करने की जरूरत पड़ेगी। उन्हीं नियमों के तहत जिनके तहत दिग्विजय सिंह ने अभी शादी की है। तब अगर अमृता अपने से 20 -25 साल कम के लड़के से शादी करेंगी (और करना भी चाहिए) तो हम बेकार परेशान हो रहे हैं कि लड़कों के मुकाबले कम लड़कियां पैदा हो रही हैं।

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एक महिला तीन-तीन को निपटा रही है। इसका भी ख्याल रखना होगा। कोई तुलना नहीं है, पर इंद्राणी मुखर्जी की याद आ ही गई। इस तरह की शादियों से मुझे एक औऱ समस्या है। आप बेटी के उम्र की लड़की या पिता की उम्र के लड़के से शादी कर लें – ये आपका निजी मामला हो सकता है। पर इससे दूसरे सभी लोगों के लिए बेटियां ‘लड़की’ बना दी जाती हैं। इससे जो अविश्वास और उससे भी ज्यादा, असहजता पैदा होती है वह किसी दिग्विजय या किसी पुरुष (या लड़की अथवा बेटी) के लिए निजी नहीं रहता है। और चर्चा उसपर भी नहीं हो सकती क्योंकि दिग्विजय और अमृता जो करते हैं वह उनका निजी मामला है, कानूनन वयस्क और समझदार भी हैं। जैसा कि अमृता ने कहा है उन्होंने शादी धन के लिए नहीं, प्रेम के लिए की हैं। प्रेम अब बेटी और पिता से नहीं, पति से भी नहीं, प्रेमी और प्रेमिका से होता है। घटिया काम पर टिप्पणी घटिया ही होनी चाहिए। बहुत देर से रुका हुआ था। अयूब साब आपकी पोस्ट पढ़कर नहीं रहा गया।

सईद अयूब और संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. shivlal rnakoti

    September 8, 2015 at 4:06 pm

    bechare sal bhar se jadya pareshan chal rahe tha. accha hua samadhan ho gaya verna ek pati ko chodhne ke bad rastha najar nahi aane par chup bahthna bhi gunaha tha, qunki log najar lagate hai. aab koi najar lagane ki himmat nai karega. aakhir sir par bujurg ka hath hai n, muskra kar itra kar done gujrange to log sir juka lange, akhen to nahi dikhayeng. hal to wahi hi jamana khi bi jeene nahi deta. bad me syad larhe mil janye. vaqut ka patha nahi chalto. sirf vaqut chalta chalne wala chahiya.

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