मनमीत-
मैं पत्रकारिता के पेशे में इसलिए आया क्योंकि बचपन से मुझे विस्मित होना अच्छा लगता था। पहले एक छोटे से घर में पैदा होने के बाद मैं विस्मित हुआ कि मैं कहां आ गया ? कुछ बड़ा हुआ तो नदी, आसमान, पहाड़ों और हवाओं को महसूस कर आश्चर्यचकित हुआ। स्कूली दिनों में, मैं पहाड़ों के पार की दुनिया देखकर विस्मित होता था। कभी कभी बड़े शहरों को देखकर और अक्सर पहाड़ से उतरकर मैदानों को देखकर।

मैंने अपने अंदर विस्मित होने की क्षमता वैसे ही बरकरार रखी जैसे उन दिनों थी जब मैं पैदा होकर इंसानों से पहली बार मुखातिब हुआ और आश्चर्य से सोचा कि ये मैं किस दुनिया में आ गया। मैंने कभी इस दुनिया को देखने की दकियानूसी आदत अपने अंदर समायोजित नहीं की, लिहाजा मैं हर वक्त आश्चर्यचकित रहा।
इसी विस्मित होने की क्षमता के बदौलत मैं आज भी गुरुत्वाकर्षण से बड़ा आश्चर्यचकित रहता हूं। मैं परेशान रहता हूँ कि आखिर मैं कौन हूं और इस दुनिया में मेरी क्या आइडेंटिटी है ? अक्सर मैं ये सोचकर खोया रहता हूं कि हमारे पुरखों ने आखिर कैसे सभ्यता की कठोर पथरीली पगडंडियों में चलकर समाज को वैसे बनाया, जैसे वो आज है। मैं अक्सर किसी ग्लेशियर, उफनती नदी और दर्रे से गुजरते वक्त बेचैन रहता हूं कि क्यों बसंत के आगमन पर मरी धरती फिर से अंकुरित हो उठती है। कैसे ये तय समय पर सुनियोजित होता है।
इसी कारण मैंने पढ़ना और यात्राएं करनी शुरू की। किताब के हर पन्ने को पलटते वक्त मैं विस्मित रहता हूं और उसी बैचेनी के कारण फिर उद्दाम यात्राएं भी करता हूं।
मैं सच में कभी पत्रकारिता में इसलिए नहीं आया क्योंकि मुझे नाम या पैसा कमाना था। इसलिए भी नहीं कि मेरी हनक हो। मैं तो महज इसलिए यहां तक पहुंचा क्योंकि मैं हर वक्त, हर चीज़ और हर पड़ाव पर आश्चर्यचकित रहना चाहता था।
क्योंकि मैं इस बात पर भी विस्मित होता हूं कि कैसे हजारों लाखों सालों से विस्मित इंसान के एक समूह ने दुनिया को वहां तक पहुंचा दिया, जहां वो भी आराम से रहते हैं, जो कभी विस्मित नहीं होते।