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साहित्य

‘मंतव्य’ मैग्जीन के बाद हरे प्रकाश उपाध्याय ने शुरू किया ‘मंतव्य प्रकाशन’, राजेश्वर वशिष्ठ बने संपादक

Hareprakash Upadhyay : बहुत सारे मित्रों और शुभचिंतकों का यह काफी समय से निरंतर दबाव और आग्रह है कि मंतव्य अपनी रचनात्मक गतिविधियों का विस्तार करे। ‘मंतव्य’ की अपनी एक सीमा है, यह एक अनियतकालीन पत्रिका है और इसका एक निश्चित फार्मेट है, जिसके कारण बहुत सारे लेखकों को हम चाहते हुए भी अवसर या मंच उपलब्ध नहीं करा पाते, जबकि इधर हिन्दी में प्रतिभाशाली नवलेखन का विस्फोट दिखाई पड़ रहा है, रचनात्मक आयाम की दिशाएं निरंतर बढ़ रही हैं, इन सबकी जरूरत को परखते हुए और मित्रों के आग्रहों का मान रखते हुए ‘मंतव्य’ ने पुस्तक प्रकाशन की दिशा में कदम बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत हम नवलेखन को भरपूर प्रोत्साहन देंगे।

<p>Hareprakash Upadhyay : बहुत सारे मित्रों और शुभचिंतकों का यह काफी समय से निरंतर दबाव और आग्रह है कि मंतव्य अपनी रचनात्मक गतिविधियों का विस्तार करे। 'मंतव्य' की अपनी एक सीमा है, यह एक अनियतकालीन पत्रिका है और इसका एक निश्चित फार्मेट है, जिसके कारण बहुत सारे लेखकों को हम चाहते हुए भी अवसर या मंच उपलब्ध नहीं करा पाते, जबकि इधर हिन्दी में प्रतिभाशाली नवलेखन का विस्फोट दिखाई पड़ रहा है, रचनात्मक आयाम की दिशाएं निरंतर बढ़ रही हैं, इन सबकी जरूरत को परखते हुए और मित्रों के आग्रहों का मान रखते हुए 'मंतव्य' ने पुस्तक प्रकाशन की दिशा में कदम बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत हम नवलेखन को भरपूर प्रोत्साहन देंगे।</p>

Hareprakash Upadhyay : बहुत सारे मित्रों और शुभचिंतकों का यह काफी समय से निरंतर दबाव और आग्रह है कि मंतव्य अपनी रचनात्मक गतिविधियों का विस्तार करे। ‘मंतव्य’ की अपनी एक सीमा है, यह एक अनियतकालीन पत्रिका है और इसका एक निश्चित फार्मेट है, जिसके कारण बहुत सारे लेखकों को हम चाहते हुए भी अवसर या मंच उपलब्ध नहीं करा पाते, जबकि इधर हिन्दी में प्रतिभाशाली नवलेखन का विस्फोट दिखाई पड़ रहा है, रचनात्मक आयाम की दिशाएं निरंतर बढ़ रही हैं, इन सबकी जरूरत को परखते हुए और मित्रों के आग्रहों का मान रखते हुए ‘मंतव्य’ ने पुस्तक प्रकाशन की दिशा में कदम बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत हम नवलेखन को भरपूर प्रोत्साहन देंगे।

अपने समय की सबसे संभावनाशील और बेचैन रचनात्मक प्रतिभाओं की तलाश करेंगे, उनकी रचनात्मक उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करेंगे और यथावसर उन्हें सम्मानित भी करेंगे। पर यही यह संकेत करना जरूरी है कि हमारी अपनी बहुत सारी सीमाएं हैं, हमारे पास आगे बढ़ने के लिए फिलहाल संकल्प, उत्साह और कुछ करने की ज़िद के सिवा कुछ नहीं है। पर यही वे चीज़ें थी, जिससे ‘मंतव्य’ की शुरुआत हुई थी। तो ‘मंतव्य प्रकाशन’ की शुरुअात भी हम इसी के साथ कर रहे हैं। यह पत्रिका से हटकर उसका एक सहयोगी प्रयास है। हमें अपने साथियों और शुभचिंतकों से हर तरह का सहयोग चाहिये होगा। इस प्रयत्न की संभावनाएं हमारे परस्पर सहयोग से ही खिलेंगी।

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हम पहले चरण में हिंदी की विभिन्न विधाओं ( कविता/ कहानी/ व्यंग्य/ लघुकथा/ गीत-ग़ज़ल/ बाल साहित्य/ दलित साहित्य) पर अलग-अलग एक सेट एक साथ प्रकाशित करने जा रहे हैं, जिसके प्रधान संपादक और संयोजक हमारे सुपरिचित रचनाकार Rajeshwar Vashistha होंगे। वे अलग-अलग विधाओं के लिए अपने सहयोगी संपादकों की टीम की घोषणा भी शीघ्र करेंगे। इन संकलनों के लिए युवा रचनाकार अपनी रचनाएं [email protected] पर भेज सकते हैं। मेल भेजते समय subject में विधा का नाम जरूर लिखें। एक लेखक केवल एक ही विधा में ही अपनी रचना भेज सकता है। गद्य विधा की रचना दो हजार शब्दों से अधिक न हो और कविताएं एक साथ कम से कम दस भेजें। बाकी नियम और शर्तों के लिए प्रधान संपादक श्री राजेश्वर वशीष्ठ जी से सीधे संपर्क कर सकते हैं। रचना भेजने की अंतिम तिथि 30 नवंबर है। मित्र, औपचारिक आमंत्रण की प्रतीक्षा न करें, कृपया अपनी रचनाएं भेजें।

लखनऊ से प्रकाशित साहित्य की चर्चित मैग्जीन मंतव्य के संस्थापक और संपादक हरे प्रकाश उपाध्याय की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. pranav priyadarshi

    October 22, 2016 at 5:30 am

    शुभकामना, बधाई एवं आभार।

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