जब एक छात्र किसी पाठ्यक्रम में प्रवेश लेता है तो उसे लेकर अपने मन कई तरह के सपने पाल लेता है और अगर कहीं वो कोर्स जनसंचार को लेकर हो तो पूछो मत फिर तो वह रहता तो जमीन पर है लेकिन सोचता है आसमान की….
यूपी, बिहार, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के छोटे से गांव और पहाड़ी क्षेत्रों के छात्र इस मीडिया के अंदर छुपी कोर्स के बाद की चुनौतियों से शायद कभी वाकिफ नहीं होते है अगर होते है तो सिर्फ इसके ग्लैमर को लेकर यहीं ग्लैमर का सपना एक दिन उन्हें बहुत भारी पड़ता है जैसे तैसे लाखों रुपए खर्च करके युवा सोचता है कि जब हमारी जॉब लगेगी तो सब अच्छा हो जाएगा लेकिन मीडिया में नवयुवकों का परिश्रम तो चाहिए लेकिन उसका पारिश्रामिक उन्हें ना चुकाना पड़ें ऐसे में उन्हें काम सीखने और सीखाने के नाम पर महीनों तक बेगारी करा ली जाती है। मैनें गाजियाबाद स्थित एक सरकारी कॉलेज से 2 वर्षीय पत्रकारिता का कोर्स बड़ें लगन के साथ किया और उसके बाद नोएडा में एक सैटेलाइट न्यूज चैनल में बतौर इंटर्न आउटपुट डेस्क पर इंट्री ली और कई महीनों तक काम को सीखा लेकिन मैनें देखा कि यहां जगह सिर्फ चाटुकारिता वालों की है जो मुझसे होता नहीं था। अगर बात लड़कियों की हो तो सीनियर प्रोड्यूसर उसको काम सीखाने के नाम पर अपने तय बुलेटिन को देरी कर सकता है लेकिन उसको काम सीखाकर ही दम लेगा। मुझसे कम जानकार लोग चाटुकार होने के कारण पेड हो गए लेकिन मैं नहीं हो पाया। लेकिन मुझे इसका कोई मलाल नहीं है। क्योंकि हर स्थान से आपको बहुत कुछ सीखने को मिलता है जो मुझे वहां से मिला। कुछ अच्छे मित्र भी बने लेकिन ज्यादातर को मैनें परखा कि उनका रुचि लड़कों को काम सीखाने में कम ही रहता है।
मैं सभी अपने भाई-बहनों से यहीं कहना चाहता हूं कि अगर आपकी रूचि हो तभी इस फील्ड में इंट्री ले अन्यथा कोई और कोर्स करके अपना भविष्य संवारें… क्योंकि यहां पर सैलरी और छुट्टी की कोई आशा नहीं करें और परमानेंट जॉब की तो सपने में भी नहीं सोचे क्योंकि क्या पता कि आपकी कौन सी एक गलती आपको संस्थान से बाहर कर दें। ज्यादातर न्यूज चैनल वालें आपसे मुफ्त में कार्य करवाना चाहते है और अगर सैलरी देगें भी तो 2-3 महीनों तक काम करने के बाद 1 माह का… अगर आप इन सब चुनौतियों को जानने के बाद भी इस क्षेत्र में कदम रखना चाहते है तो स्वागत है आपका…
मैं भड़ास की पूरी टीम धन्यवाद करता हूं जो इस प्लेटफार्म के जरिए लोगों की बात और दर्द और परेशानियों को सबके सामने बिना किसी निडरता के साथ लाते है।
एक युवा पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
Comments on “मीडिया में जॉब चाहिए, तो तगड़ा वाला जुगाड़ चाहिए नहीं तो डिग्री लेकर घूमते रहो!”
Nice Sir
जनसंचार के लगभग सभी छात्र यही सोच कर कोर्स करते हैं कि कुछ सालों बाद एक अच्छी सैलरी वाली नौकरी कहीं ढूंढ लेंगे लेकिन होता इसके यलत है। सबसे अधिक शोषण मेनस्ट्रीम मीडिया में है। कितना भी बड़ा न्यूज़ चैनल क्यों न हो, वहां नौकरी के लिए नाक घिसना पड़ता है। सैलरी बहुत कम मिलती है, मिल भी गई तो हर महीने नहीं। काम करते समय ऐसा लगता है कि दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हों। ऊपर से बॉस और सीनियर का अलग नखडा। कितना भी काम करो उन्हें हमेशा कम ही लगता है। देश में इस प्रोफेशनल कोर्स करने वालों का हाल काफी बुरा है। देश में पत्रकारों के हितों की रक्षा करने वाला कोई भी राष्ट्रीय संगठन नहीं है। जो संगठन हैं वो मीडिया चैनलों की चापलूसी में लगे हैं। मेरा यही कहना है कि बहुत सोच समझ कर इस प्रोफेशन में उतरें नही तो समय और पैसे की बर्बादी ही है। कई और विकल्प मौजूद हैं जिसमे आप अपना कैरियर बना सकते हैं।