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कैलाश विजयवर्गीय द्वारा न्यूज24 के पत्रकार की ‘औकात’ दिखाने पर मीडियाककर्मियों में उबाल

Ameesh Rai : कैलाश विजयवर्गीय से उनके बैट्समैन बेटे के बारे में जब पूछा गया तो पत्रकार से उन्होंने कहा है कि क्या है आपकी हैसियत। इस अनमोल वचन को सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे थे। मैं उस दिन के इंतजार में हूं जब ये भाजपा नेता पत्रकारों को गाली दें। क्योंकि अब बस वही बाकी रह गया है। जब नेता आपके लिए अध्यक्ष जी हो जाया करेगा तो सुनना तो पड़ेगा न मित्र। आज विजयवर्गीय के बेटे ने निगम के अफसर पर बैटिंग दिखाई है, कल आपपर दिखाएंगे। और आप अपनी माइक पकड़ अध्यक्ष जी, अध्यक्ष जी करते रहिएगा। वंदेमातरम। ठीक है न?

Ambrish Kumar : घोर निंदनीय. भाजपा के बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की न्यूज़24 के पत्रकार के बारे में की गई टिपण्णी आपत्तिजनक, अहंकारी और घोर निंदनीय है. हम उसकी भर्त्सना करते हैं. पत्रकार संगठन न बोले लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मीडिया से जुड़े कुछ लोगों को तो इसकी निंदा करनी चाहिए. सत्ता के साथ जो पत्रकार हैं उन्हें भी सोचना चाहिए.

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Samar Anarya : न्यूज़ 24 ऐंकर भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से: आपको अधिकारियों पर हमला करने वाले अपने बेटे की निंदा करनी चाहिए।

कैलाश: तुम्हारी हैसियत क्या है?

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मुझे लगता है ऐंकर फिर भी सस्ते में छूट गया- वरना कैलाश विजयवर्गीय सहित भाजपाई गुंडों की हैसियत बनाने में उसके योगदान को देखते हुए उसका यूपी भी हो सकता था!

Urmilesh Urmil : क्या एरोगेंस है? कितनी दबंगई है? इंदौर‌ के भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय ने क्या ‘सिद्धांत’ प्रतिपादित किया है: ‘आवेदन निवेदन, फिर दनादन!’ सरकारी अधिकारियों को क्रिकेट बैट से पीटते हुए उनकी तस्वीरें आज देश के कई अखबारों में भी हैं! ‘दनादन’ के सिद्धांतकार जूनियर विजयवर्गीय के पिता और भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो प्रतिक्रिया दे दी है: इस मुद्दे पर सवाल करने वाले पत्रकार से उसकी हैसियत और औकात पूछी! लेकिन भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मौन क्यों है? ‘दनादन’ पर आप भी कुछ बोल दीजिए! क्या बोलने से इंदौर या मध्य प्रदेश की ‘बदनामी’ होगी, जैसे ‘माब लिंचिंग’ पर बोलने से झारखंड की ‘बदनामी’ हो रही है!

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अगर पत्रकार/एंकर्स अपनी पत्रकारिता भूलकर सत्ता और सत्ताधारियों की सिर्फ ‘मृदंग’ बजायेंगे, सवाल सिर्फ विपक्ष से करेंगे तो कोई भी दबंग-सत्ताधारी गुस्से में हमारी-आपकी हैसियत/औकात तो पूछेगा ही! वह इससे आगे भी बढ़ सकता है! इसलिए आप सभी सुयोग्य पत्रकार-मित्रों, खासकर टीवी एंकर्स को मेरी छोटी सी सलाह: यह बात हमेशा याद रखिए, किसी पत्रकार की हैसियत/औकात जनता और समाज के पक्ष में ‘हर तरह की सत्ता’ से सवाल करने से ही बनती है! पत्रकार को जनता और समाज की तरफ खड़ा होकर हर ताकत से सवाल करना चाहिए! फिर देखिए!

Rajiv Nayan Bahuguna : करम का लेख मिटे न रे भाई… पत्रकारों को गरियाये और जुतियाये जाने पर आम जन कौतुक से तालियां बजा रहे, और वाहवाही कर रहे। हर तरफ से वन्स मोर, वन्स मोर की आवाज़ें उठ रहीं। कुछ वर्ष पूर्व यह न था। मीडिया पर हल्की खरोंच लगते ही समुदाय कमर बांध कर साथ खड़ा होता था। आज वही जन समुदाय कैलाश वर्गीय का आह्वान कर रहा, कि गाली के साथ जूत भी दो। मुज़फ्फरनगर की तर्ज़ पर मुंह पे पेशाब करो।

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यह हम मीडिया कर्मियों के लिए गहन आत्म चिंतन और संभवतः यू टर्न लेने की घड़ी है। फिलहाल भ्रष्ट पुलिस कर्मी और अपराधी नेता पीट रहे, अब जनता भी पीटना ही चाहती है। विगत दशक में हमारी विश्वसनीयता तीव्र क्षरित हुई है। हमारा शीघ्र पतन हुआ है। जनता ने भले ही मौजूदा तंत्र को इकतरफा वोट दिया है, लेकिन मीडिया को वह शाश्वत विपक्ष अथवा कमसे कम निरपेक्ष देखना चाहती है। पिछले दो आम चुनावों में हम मीडिया कर्मी एक संगठन विशेष के पक्ष में पार्टी अथवा पक्षकार बन चुके हैं। 1975-76 के इमरजेन्सी काल मे इंदिरा गांधी ने पत्रकारों को बड़े पैमाने पर जेल में ठूंसा था। तब भी पत्रकार किसी के पक्षधर न बने। उन्होंने निर्भय, निरवैर और निष्पक्ष हो अपना धर्म निभाया।

पिछले लगभग 5 वर्ष के कार्यकाल में मौजूदा तंत्र ने अपवादों को छोड़ पत्रकारों को जेल नहीं भिजवाया। इक्का दुक्का पत्रकारों की हत्या अवश्य करवाई है। लेकिन इतने भर से भय का कोई हेतु नहीं बनता। इस समय सीधा मामला लालच का है। मीडिया हाउस चलाने वाले लाला का लालच में आना स्वाभाविक है। उसकी कुल कमाई करेंसी नोट है। चाहे वह जैसे भी फले। लेकिन हमारी कमाई विश्वसनीयता है, जिसे खोकर हम सर्वस्व गंवा बैठेंगे। मुंह पर कालिख अलग से पुतेगी। इस नीच और कठिन समय मे संयम और संतुलन से काम लें। ऐसा न हो कि लाठी भी टूट जाये, और सांप भी न मरे।

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Sheetal P Singh : उन्होंने आपकी “औकात” का पता पूछा है! तलाशिये, देखते ही देखते कब कहाँ गुम गयी? खुद ही तो उनकी देहरी पर नहीं छोड़ आये?

Sandeep Kumar : बेट्टा आकाश और पप्पा कैलाश दोनों को पता है कि पत्रकार अब बचे नहीं। वो तो पत्तल चाटने वालों की औकात पूछ रहा था। अंजना, श्वेता, छोटू सरदाना, सुने की नहीं? ये ही औकात है तुम्हारी. पत्रकार जो हैं वो लोड न लें हां गैरत हो तो इनको कलम से अंजाम तक पहुंचाएं.

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