Ashwini Kumar Srivastava : बहुत ही अफसोसनाक और लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी बजने जैसी खबर है यह। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह कानून के साथ खिलवाड़ करने और पत्रकारों के हक को मारने के मीडिया मालिकों / धन्ना सेठों के दुस्साहस को प्रश्रय दिया है, उससे अब मीडिया का रहा-सहा दम भी निकल गया है। मीडिया मालिकों के रूप में पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली और सत्ता के दलाल बनने के अलावा अब पत्रकारों के सामने कोई विकल्प ही नहीं है। अब उन्हें मालिक की शर्तों पर ही बंधुआ मजदूर की तरह डर-डर कर नौकरी करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने आज स्पष्ट तौर पर बता दिया कि इस देश में न्याय ले पाना अब मीडिया के बूते के भी बाहर की बात है, आम आदमी तो खैर अपनी सुरक्षा खुद ही करे तो बेहतर होगा।
Ratan Bhushan : बाल बाल बचे अख़बार मालिकान… मेरी इस बात में ”बाल बाल बचे” का सन्दर्भ कई जगह आपको मिलेगा, जिससे बोध होता है कि सिर्फ अख़बार मालिकान ही नहीं, माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछली 19 तारीख को अख़बार कर्मियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित मजीठिया वेतन आयोग वाले केस में सुनाए गए फैसले ने उन तमाम लोगों को बचा लिया, जिन्होंने फैसला आने के बाद किसी ने किसी से खुलकर या किसी ने मन ही मन खुद को कहा होगा, बाल बाल बचे…., थैंक्स ऑनरेबल सुप्रीम कोर्ट….
आज की बात में पहले जिक्र करता हूँ अखबार मालिकों का, फिर आगे किसी और का। तो यह सभी को पता है कि जब 7-2-2014 को इसका फैसला आया था, तब भी मालिकानों ने इस बात को कहा था, क्योंकि उनके विद्वान वकीलों और मेनेजर टाइप चमचों ने यह समझाया कि आयोग ने हमें फिर से बचने का रास्ता दे दिया। तब वर्कर की आंख गिद्ध जैसी नहीं थी, न ही आज की तरह केस के बारे में सोचने और समझने की शक्ति थी, लेकिन अब वे अपना अच्छा और बुरा समझने लगे हैं। जैसे वकील कॉलिन इस केस में कितना सुन्दर तरीके से गिनती के कुछ वर्कर के केस के जरिए घुसा और जो काम उसने मालिकानों के लिए किया, उन्हें बचाया, वह आर्डर पढ़कर साफ हो जाता है।
20जे की आड़ में वकीलों ने मालिकानों को बचा लिया कि उनसे गलती भूलवश हुयी है, जिसे कोर्ट ने भी माना। इसके लिए मालिकानों ने कॉलिन को तो भर भर के थैंक्स कहा ही होगा, मालिकानों ने खुद को भी कहा होगा, बाल बाल बचे….। यह सभी जानते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस केस को लेकर वर्कर खुश और जीत को लेकर निश्चिन्त थे । साथ ही वे यह भी मानते थे कि इस मामले में मालिकान जेल भी जायेंगे। मालिकानों में बाहर से दिखाने के लिए बेखौफी जरूर थी पर अंदर से जेल जाने का डर भी गहरे घुसा था। इस दौरान ऐसा कई बार हुआ, जब संजय गुप्ता ने अपने प्यादों को खूब डांटा । जब वह गुस्सा होता है, तो क्या क्या कर सकता है और किस स्तर पर उतर आता है, यह दैनिक जागरण के वर्कर अच्छी तरह जानते हैं।
यहाँ फिर याद दिलाता हूँ कि उसके अंदर अहंकार कितना बड़ा है कि वह खुद को माननीय सुप्रीम कोर्ट से बड़ा समझता है। मुझसे बोल चुका है कि नौकरी सुप्रीम कोर्ट नहीं, मैं देता हूँ, सुप्रीम कोर्ट मेरा क्या बिगाड़ लेगा। इन बातों से साफ होता है कि देश के एक बड़े अख़बार समूह का संपादक कितना योग्य , शिष्ट, समझदार और भारतीय संविधान में कितना यकीन रखने वाला है! चौथे स्तंभ का एक पहरुआ संजय गुप्ता देश से सम्मानित पुरस्कार भी पाना चाहता है।
सूत्र बताते हैं कि इनके प्यादे नेताओ से अप्रोच करते हैं कि गुप्ता जी को पद्मश्री तो दिया ही जाये। उम्मीद की जानी चाहिए कि कलयुग के इस संजय को सम्मान मिल भी जायेगा, क्योंकि कुछ ऐसे लोगों को भारत सरकार सम्मान दे चुकी है और जब मिडिया के पोस्टर ब्याय टाइप लोग सरकार से इस बारे में पैरवी करेंगे, तो संभव है, सम्मान मिल भी जाय। खैर…. ऐसा ही सुना गया हिंदुस्तान के साथियों से। शोभना भरतीया ने अपने टॉप प्यादे शशिशेखर को कई बार कहा कि अगर मुझे कोर्ट जाना पड़ा तो तुम्हारा क्या करूंगी, तुम अच्छी तरह सोच लो। शोभना जी की भी महिमा का गुणगान उनके कर्मचारी करते नहीं थकते। न जाने और भी तमाम अख़बारों के मालिकों ने अपने प्रिय प्यादों के साथ इस मसले पर इसी तरह का प्यार लुटाया होगा, लेकिन यहाँ साफ है कि जो फैसला माननीय सुप्रीम कोर्ट से आया है, मालिकानों ने चैन की साँस ली है, उनहोंने दिल से कहा होगा, चलो, बाल बाल बचे….।
लखनऊ के पत्रकार और उद्यमी अश्विनी कुमार श्रीवास्तव व मजीठिया क्रांतिकारी रतन भूषण की फेसबुक वॉल से.