अजीत शाही-
एक पारिवारिक मित्र से कल रात देर तक फ़ोन पर बात हुई. हमारे परिवारों के बीच पुश्तैनी मित्रता है और, जैसा भारत में होता है, हम लोग सगे भाइयों की तरह हैं. मैं उसको छोटा भाई मानता हूँ.
वो भारत में रहता है. उसका बेटा आठवीं में पढ़ता है. बेटे की क्लास में एक मुसलमान लड़का पढ़ता है. बाक़ी सारे बच्चे उस मुसलमान बच्चे को आतंकवादी कहते हैं. वो मुसलमान बच्चा बहुत उदास रहता है और चुपचाप अलग बैठा रहता है. मेरे इस भाई ने अपने लड़के से कहा, बेटा, तुमको उस मुसलमान लड़के का बेस्ट फ़्रेंड बनना चाहिए. तुम उसको प्रोटेक्ट करो. तुम उसको दुख मत महसूस होने दो.
ये बात बताते हुए मेरा चचेरा भाई भावुक हो गया. हमारे यहाँ बड़े भाई को दादा बोलते हैं, तो मुझसे कहने लगा, “दादा, ये क्या समाज बना दिया है हमने? हम अपनी पूरी अगली जेनरेशन में नफ़रत भर रहे हैं. क्या होगा हमारे देश का पंद्रह-बीस सालों में? ये कहाँ जा रहे हैं हम?”
मैं चुपचाप सुनता रहा. मेरा ये भाई दुनिया की एक जानी-मानी मल्टीनेशनल कंपनी में बहुत ऊँचे पद पर काम करता है. उसकी कंपनी का ग्लोबल टर्नओवर पंद्रह लाख करोड़ रुपए हैं. उसके नीचे भारत में हज़ारों लोग काम करते हैं. उसने 2014 और 2019 में मोदी को वोट दिया था. कहने लगा, “बीजेपी ने हमारे देश को बरबाद कर दिया. धंधा चौपट हो चुका है.” बोला, दादा, मैं तो पाँच हज़ार करोड़ वाली कंपनियों से डील करता हूँ जो हमारी सप्लायर हैं. एक भी मुनाफ़े में नहीं चल रही है. उसकी मल्टीनेशनल कंपनी ने ख़ुद अपना एक प्लांट तक बंद कर दिया है. तीन हज़ार लोगों को नौकरी से निकालना पड़ा.
बोला, दादा, कॉरपोरट सेक्टर में मेरे जान-पहचान में एक आदमी नहीं है जो मोदी को वोट देगा. कहने लगा, मर जाऊँगा लेकिन इसको वोट नहीं दूँगा. मैंने मज़ाक़ किया, अरे छोड़ो, मंदिर बन रहा है. बोला, दादा, भाड़ में जाए मंदिर. बोला इकनॉमिक बुरे हाल से तो चलो कभी उबर जाएँगे. लेकिन ये जो पूरे देश में मोदी ने हेट और वायलेंस की आग लगा दी है इससे देश पूरी तरह बरबाद हो जाएगा. बार बार कहता रहा, दादा, ये देश अब रहने लायक़ नहीं रहा.
बोला क्राइम बढ़ता जा रहा है. अब तो मैं मेरी बेटी ख़ुद कहती है papa, I don’t want to go out alone after dark. बेटी कहती है इंडिया नहीं रहेगी. मौका देखते ही विदेश निकल लेगी. बेटा भी यही करेगा.
कहने लगा, दादा, आप अमेरिका निकल गए हैं अब आप वापस मत आइए. मैंने हँस के कहा, भाई, मैं कौन सा ज़िंदगी बिताने आया हूँ यहाँ. आज नहीं तो कल, लौटना है ही.
बोला, दादा, आप बहुत बड़ी भूल करेंगे वापस आकर. फिर थोड़ा सोच कर बोला, “मेरे जैसे लोग तो अपने बच्चों को बाहर भेज भी देंगे. लेकिन करोड़ों लोग क्या करेंगे?”
थोड़ी देर हम दोनों चुप रहे. मैं यहाँ गाड़ी चला रहा था. वो भी वहाँ गाड़ी चला कर कहीं जा रहा था. फिर बुझे मन से वो बोला, चलिए, दादा, फिर कभी बात करते हैं. मैंने कहा, हाँ भाई. कहना चाह रहा था, परेशान मत हो, भाई. लेकिन कह नहीं पाया.
सच में. हमारी आँखों के सामने हमारा देश बरबाद होता चला जा रहा है.