धर्मवीर-
मैं शुरू से कहता रहा हूँ कि हमारे देश में ज़्यादातर मंत्री अपने विभाग को बेहतर से सम्भाल पाने की योग्यता के कारण नहीं बल्कि जातीय और चुनावी समीकरणों को साधने की क़वायद के कारण बनाए जते हैं ।
उदाहरण देखिए ..! जिस मंत्रालय में एक प्रोफेशनल डॉक्टर कुछ ख़ास नहीं कर पाया अब उस विभाग का मुखिया एक ऐसे मंत्री को बना दिया गया है जो WHO / IMA / MCI / UNO की किसी भी गाइडलाइन को ख़ुद से पढ़कर शायद ही ढंग से समझ पाए क्यूँकि उस नोटिफ़िकेशन की भाषा अंग्रेज़ी होगी ।
क्या भाजपा में सच में टैलेंटेड लोगों की इतनी अधिक कमी है कि कोरोना संकट के बीच में ही एक फ़ेल्ड मंत्री को हटाकर एक ऐसे व्यक्ति को स्वास्थ्य मंत्री बनाना पड़ रहा है जो दवाई के रैपर के ऊपर अंग्रेज़ी में लिखी बाँतों को भी बिना गूगल ट्रांसलेटर के ना समझ सके ..? प्रश्न विदेशी भाषा को जान पाने या समझने का नहीं है बल्कि मंत्री के तौर पर आपको मिले प्रोफ़ाइल का है ..।
दुर्भाग्य से जिस मंत्रालय को आप सम्भाल रहे हैं उस मंत्रालय में कुछ भी काम देश की लोकल भाषा में नहीं किया जा सकता है ।या तो पहले देश के चिकित्सा तंत्र को भारतीय भाषाओं के अनुरूप बना दिया जाना चाहिए था या फ़िर मनसुख भाई को चिकित्सा मंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए था ..। नए मंत्री जी WHO और बाक़ी चिकित्सा संस्थाओं के बीच पत्र लिखने और पढ़ने तक के लिए अब पूरी तरह से नौकरशाही पर निर्भर होकर रहेंगे ….! दुर्भाग्य से ..!
श्याम मीरा सिंह-
अंग्रेजी किसी की नॉलेज का स्केल नहीं है, एक लोकतंत्र में इतनी जगह होनी चाहिए कि एक निरक्षर व्यक्ति भी इस देश का प्रधानमंत्री बन सके. सबको अधिकार है. लेकिन MA पॉलिटिकल साइंस किये हुए स्वास्थ्य मंत्री की अंग्रेजी में इतनी बेसिक गलतियाँ हैं कि इस बात पर शक जा रहा है कि MA की डिग्री फर्जी तो नहीं है?
कक्षा पांच के बच्चे को भी अंग्रेजी की परीक्षा पास करनी पड़ती है. और हर स्टेज पर अंग्रेजी की बेसिक नॉलेज से गुजरना होता है. MA पास आदमी कक्षा पांच के लेवल पर भी फुस्स कर जाए तो शक तो होगा ही. और बात अंग्रेजी की नहीं है. अगर MA पास आदमी हिंदी में भी बेसिक गलतियाँ करता तो लोग शक करेंगे और सवाल भी करेंगे.
अगर वो गणित की बेसिक गलतियाँ करता तब भी सवाल उठते. इसलिए इस बात से इमोशनल मत होइए कि किसी की अंग्रेजी का मजाक उड़ाया जा रहा है. अंग्रेजी का नहीं उड़ाया जा रहा बल्कि MA की डिग्री की सत्यता पर सवाल किये जा रहे हैं. अगर मनसुख अपने बायो में लिखते कि वे कक्षा पांच पढ़े हैं, तब वे हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, गणित, रसायन विज्ञान सबसे मुक्त होते. लेकिन MA पास होने का दावा करने वाले आदमी से तो सवाल होंगे.
MA पढ़ा आदमी Try की स्पेलिंग TRAY लिख रहा है. एक नहीं दो-दो बार लिख रहा है. Independent को indipedent लिख रहा है. Father of nation को Nation of father लिख रहा है. और लोग इमोशनल होकर कह रहे हैं कि अंग्रेजी न जानने की वजह से ट्रोल किया जा रहा है. पहली बात तो ये कि अगर कोई आदमी Try की स्पेलिंग भी दो-दो बार गलत लिख रहा है तो सवाल सिर्फ अंग्रेजी जानने का नहीं है बल्कि उस आदमी की MA की पढ़ाई का है. जिस आदमी ने सच में MA की पढ़ाई ईमानदारी से पास की होगी, क्या उसे TRY की भी स्पेलिंग न पता होगी?
MA पॉलिटिकल साइंस की डिग्री से पहले उन्होंने BA भी किया होगा, 12वीं भी पास की होगी, 10वीं भी पास की होगी, आठवीं भी की होगी, पांचवी भी की होगी. इन मौकों पर अंग्रेजी और हिंदी दोनों में से कोई एक अनिवार्य विषय के रूप में आमतौर पर पाया ही जाता है. अगर कोई TRY की स्पेलिंग भी नहीं लिख पा रहा है तो वो पांचवी, दसवीं, बारहवीं, बीए, एमए की परीक्षा कैसे पास कर आया? क्या ये सवाल नहीं है? भारत में ऐसी कौन सी यूनिवर्सिटी है? ऐसा कौन सा कॉलेज है जो TRY की मीनिंग न आने वाले को पास कर देगा? ऐसे एक बोर्ड, ऐसे एक स्कूल, ऐसे एक कॉलेज, विश्वविद्यालय का नाम कोई बता दे. अगर ऐसी एक भी जगह का नाम नहीं बता सकते तब ये बात मान लीजिए कि मंत्री जी फर्जी नामा करके पास हुए हैं.
इसलिए कह रहा हूँ सवाल मंत्री की अंग्रेजी भर का नहीं है उनकी पूरी डिग्री, उनकी पूरी शिक्षा का है.
कुछ लोग कह रहे हैं कि ”अंग्रेजी कमजोर होने की वजह से ट्रोल किया जा रहा है” कुछ कह रहे हैं कि इसके पीछे गुलामी की मानसिकता है. तो सबसे पहले तो ऐसे इमोशनल ड्रामे बंद होने चाहिए. इन इमोशनल ड्रामों से ये देश ऊब चुका है, इमोशनल होना अच्छी बात है, पर इसे निजी रखिये. दूसरों को औपनिवेशिक मानसिकता का गुलाम कहना बंद कर दीजिए. जो आदमी दूसरों को मानसिक गुलाम कह रहा होता है वो खुद को श्रेष्ठ भी स्थापित कर रहा होता है. श्रेष्ठ बनने के लिए प्रयास करना, मेहनत करना अच्छी बात है लेकिन गलत पूर्वाग्रह पर दूसरों को मानसिक गुलाम कहना और खुद को श्रेष्ठ साबित करना सही नहीं है.
अगर मंत्री ने अंग्रेजी में लिखने के बजाय हिंदी में लिखा होता ”कोशीश करते करते शफलता मिल जाती है” महतमा गांधी देष के पिता हे” तब भी सवाल उठते, तब भी मीम बनते, तब भी लोग उनकी डिग्री पर शक करते. क्योंकि ये बात सिर्फ भाषा की नहीं है. ये बात सिर्फ हिंदी-अंग्रेजी की नहीं है. यहाँ कोई मंत्री से भाषा की विशेषज्ञता की मांग नहीं कर रहा, ये तो भाषा की उस सामान्य समझ की बात हो रही है जिसे कक्षा पांच पास किया हुआ हर बच्चा जानता है फिर वो चाहे हिंदी में पढ़ा हो, गुजराती में पढ़ा हो, राजस्थानी में पढ़ा हो, कन्नड़ या तेलगु में पढ़ा हो.
ये सवाल भाषा का नहीं है. अगर MA पढ़े आदमी को TRY की स्पेलिंग नहीं आती है तो ये सवाल अंग्रेजी जानने और न जानने का नहीं है बल्कि इसका है कि क्या सच में उसने MA की पढ़ाई की है या नहीं.
और यहाँ जिस मंत्री की बात हो रही है वे सामान्य मंत्री नहीं हैं, वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौर में वे देश के स्वास्थ्य मंत्री हैं. वे कोरोना जैसे संकट में देश का नेतृत्व करने जा रहे हैं ऐसे दौर में नागरिकों को ये जानने का हक़ है कि उनका स्वास्थ्य मंत्री कहीं फर्जी डिग्री वाला फ्रोड तो नहीं है. नागरिकों को ये जानने का हक़ है कि प्रधानमंत्री की क्या तैयारियां हैं स्वास्थ्य संकट से निकलने के लिए. यहां कोई भाषा में विशेषज्ञता का आग्रह नहीं कर रहा. बल्कि लोग ये जानना चाहते हैं कि इस बार भी कोई फर्जी डिग्री धारक फ्रोड तो मंत्री नहीं बन गया. इसलिए कह रहा हूँ ये इमोशनल ड्रामे बंद होने चाहिए कि कोई अंग्रेजी का मजाक उड़ा रहा है. इन इमोशनल ड्रामों से लोग ऊब चुके हैं.