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सुख-दुख

मोदी और भागवत ने अपनी कार्यशैली से हिंदुत्व के एजेंडे को पचास साल पीछे कर दिया है!

राजीव तिवारी बाबा-

वैसे दूसरे नजरिए से देखें तो मोदी-भागवत ने अपनी अहंकारी, आत्ममुग्ध और अक्षम कार्यशैली से आरएसएस भाजपा और हिंदुत्व के एजेंडे को कम से कम पचास साल पीछे कर दिया है।

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हिंदुत्व के नाम पर भ्रमित हो जिन्होंने दो दो बार मोदी के नाम पर मुहर लगाई वही अब पानी पी पीकर मोदी के साथ ही भाजपा और आरएसएस को भी कोस रहे हैं। नहीं तो ऐसा लगने लगा था कि कम से कम बीस साल तक मोदी की अगुवाई में आर एस एस का हिंदुत्व का एजेंडा चलता रहेगा।

सोचिए अगर मोदी ने अपने आत्ममुग्धता और अहंकार को त्याग कर अटल की तरह समावेशी राजनीति की होती और केंद्र की सरकार सबकी राय से चलायी होती तो क्या इतनी जल्दी लोग मोदी के हाथों में सत्ता सौंपने को अपनी जीवन की सबसे बड़ी गलती मान रहे होते।

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तो ये नुकसान मोदी ने भाजपा आरएसएस और हिंदुत्व का किया कि नहीं…

आजादी के बाद के करीब साठ साल के दूसरी पार्टियों की सरकारों में खा-पी कर अघाये बहुसंख्यक समाज ने संघ के भ्रम जाल में उलझ कर सोचा कि अब हिंदुत्व को बचाने की जिम्मेदारी उन्हीं की है तो ऐसे व्यक्ति के हाथ देश की कमान सौंप दी जिसने अपनी आत्ममुग्धता और अहंकार के चलते देश ही बर्बाद कर दिया।

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अब लोग घर में दुबक कर जान बचाने को ही उपलब्धि मान लिए जाने की मानसिकता में जी रहे हैं। अब जब जान पर बन आई तब समझ आ रहा है कि उनके साथ कितना बड़ा धोखा हुआ है।


संजीव चंदन-

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भागवत जी जे कहीन से ठीक ही कहीन लेकिन…

भागवत जी को कोरोना हुआ लेकिन वे मुक्त नहीं हो सके। मुक्ति पुण्यात्माओं को ही मिलती है। गोलोक धाम सबको नसीब नहीं होता।

रामदेव भी बीमार हुआ लेकिन वैकुंठ का दरवाजा नहीं खुला। मुक्ति नहीं मिली।

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गृहमंत्री जैसे पुण्यात्मा को भी मुक्ति न मिलना ईश्वर के न्याय पर संदेह पैदा करता है। यमराज के बही खाता की समस्या होगी। वरना तो मुक्तिधाम के ईश्वर, महाप्रभु कृपालु हैं।

हमारे प्रधानमंत्री, साक्षात विष्णु अवतार कितना कृपालु हैं। उन्होंने उन लोगों को भी ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं कराया जिन्हें वे ट्वीटर पर फॉलो करते हैं। तुच्छ ऑक्सीजन को मुक्ति मार्ग की बाधा नहीं बनने दिया उन्होंने। बन्दे तड़प तड़प कर मुक्त हुए।

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भागवत जी सच कहते हैं कि जो कोरोना से गये वे मुक्त हो गये। पर भागवत जी तो पुण्यात्मा हैं। काश वे भी गाजीपुर के किसी घाट पर मुक्त हो जाते!

पॉजिटिविटी अनलिमिटेड!

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विनोद भारद्वाज-

“जो चले गये, वे मुक्त हो गए” !!!

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कैसी पॉजिटिविटी है ये? मीडिया समूह जनसत्ता ने अपने वेबपोर्टल पर ‘पॉजिटिविटी अनलिमिटेड’ नामक एक कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख के दिये वक्तव्य में से एक हिस्से को शीर्षक संग जोड़कर लिखा है !

अपनों की असमय मौत का वज्रपात झेलने वालों के लिये तो ऐसे शब्द संवेदना भरे अथवा पॉजिटिव नहीं लगते !! जिन माता-पिता ने अपने बच्चों को, पत्नी ने पति और पति ने पत्नी को, बच्चों ने माता-पिता को या फिर जिन्होंने भी अपने सगे-संबंधियों/घनिष्ठों को खोया है ये तो उनसे पॉजिटिविटी के नाम पर किया क्रूर मजाक लगता है !!! सांत्वना-संवेदना-संबल के लिये ऐसे वाक्य तो नहीं बोले जाते !

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आप तमाम अच्छी बातें कर लें, किसी कृत्य अथवा वक्तव्य से जुड़ी मंशा भले ही सही हो किंतु यदि कहीं भी शब्द चयन गलत हुआ तो मंशा पर भी सवालिया निशान उठने लगते हैं!


अमरेश मिश्रा-

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As per RSS chief Mohan Bhagwat, those who died during Covid, attained Mukti!

He has no clue that in Sanatani Hindu tradition such unnatural, man-made deaths, leave the soul perpetually tormented.

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He also forgot that such souls, with the help of their living relatives, also seek revenge!


पंकज सुबीर-

कोई बात ऐसे ही नहीं कह दी जाती है, अंदर से बहुत क्रूर होना पड़ता है ये कहने के लिए-

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‘जो मर गए वो मुक्त हो गए।’

(बहुत क्रूरता चाहिए होती है पीछे छूट गए परिजनों के आँसुओं और विलाप को देख कर भी यह बात कहने हेतु।)

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क्रूरता अभ्यास 1925-2021


कुमुद सिंह-

इसमें न आपकी मां है ना आपके पिता न आपके मामा न आपके चाचा.. दादा, नाना, भाई भी नहीं, लेकिन आप गौर से देखिए इस कतार में कहीं न कहीं आप दफन है, क्यों ये भारत के लोग हैं जिनका हत्या आपकी चुनी हुई सरकार ने की है.. सच यही है..

मोदी के शासन में एक बात तो हुई है, पहले हम एक शव देखकर विचलित हो जाते थे, अब शव चाहे जितनी दिख जाये हम इन सब तस्वीरों को देखकर विचलित नहीं होते..मोदी ने यह सब देखने का अभ्यस्त कर दिया है…

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नीरेंद्र नागर-

आमिर ख़ान की ‘दंगल’ फ़िल्म का टाइटल सॉङ्ग है – माँ के पेट से ‘मरघट’ तक है तेरी कहानी… दंगल-दंगल।

आज यह गीत सही साबित होता दिख रहा है – मरघट में भी आज जगह के लिए दंगल मचा है।

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नीचे देखें – इलाहाबाद में गंगा के किनारे रेत में पड़ी हुई लाशें।

आज़ादी के बाद के 70 साल में क्या कभी ऐसा हुआ था?
*** हैं तो मुमकिन है।

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