शीतल पी सिंह-
कभी-कभी यह सब भी अख़बारों के पहले पन्ने पर “विंकास” की खबरों के बीच मुँह दिखा देता है।
देश दारुण दरिद्रता की ओर ठेल दिया गया है और साहेब के चंद दोस्त एशिया के सबसे अमीर होकर दुनियाँ के सबसे अमीर लोगों के मुक़ाबिल हैं ।
दरिद्रता को दरिद्रनारायण की खड़ताल बजाने के लिए सौंप दी गई है जिसे चुनाव दर चुनाव बजाना है । कंगना रनाउत वाली आज़ादी मिलने के बाद से जनता के हाथ बस इतना बचा है कि वह विश्वगुरु, महा पराक्रमी, डबल ट्रिपल इंजन वाले, नब्बे प्रतिशत इलेक्टोरल बांडधारी, एक काँधे पर अडानी औ दूसरे पर अंबानी को धारण करने वाले, सीबीआई ईडी नारकोटिक्स ब्यूरो जैसे अस्त्रों से लैस,असंख्य पेड/अनपेड भक्तों के स्वामी से चुनाव जीतकर दिखा दे !
हालाँकि परम आदरणीय डोवाल जी और कई जनरल कर्नल लोगों को इतनी आज़ादी दिये जाने के हक़ में नहीं हैं कि वे वोट देकर सरकार चुनें ! उनके अनुसार 2014 में यह चुनाव हो चुका था 2019 में फिर करवा दिया और अब बस !
सौमित्र रॉय-
वैसे इस खबर के पीछे की सबसे बड़ी खबर यह है कि आर्थिक असमानता के मामले में भारत 1947 से पहले की स्थिति में पहुंच चुका है। रिपोर्ट में इसका पूरा डेटा है। लेकिन गोबर पट्टी के पत्तलकारों की अंग्रेज़ी कमज़ोर है।