मुआवजा मिल गया न, तो अब जंग छेड़ो दोस्‍तों, ताकि जगेन्‍द्र की चिता को न्‍याय मिले

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कुछ मित्रों को लगता है कि जागेन्‍द्र के परिवारों को 30 लाख रूपये, दो बच्‍चों को सरकारी नौकरी और उसके घर की दूसरे से कब्‍जायी पांच एकड़ जमीन को छ़ुडवाने के सरकारी फैसले के बाद उनका परिवार संतुष्‍ट है और सरकार भी हल्‍की हो गयी है। ऐसे लोगों को लगता है कि यह तो धोखाबाजी हो गयी। जागेन्‍द्र के लिए जंग लड़ी हम सब लोगों ने और मलायी काट लिया उसके घरवालों ने, सरकार ने और सरकारी दलाल पत्रकारों ने। उन्‍हें लगता है कि अब यह सारा मामला ठण्‍डा हो चुका है और इस देश में अब इसके बाद कुछ भी नहीं हो सकता है। क्‍योंकि लोगों ने एक-दूसरे को खरीद-बेच लिया है।

हां हां, सरसरी तौर पर तो यही लग सकता है। लेकिन दोस्‍तों, हालात ऐसी नहीं है। सबसे तो हम मुआवजा की बात कर लें। क्‍या आप चाहते थे कि जिस कष्‍ट में जगेन्‍द्र ने अपने परिवार को पाला, किस तरह उसकी स्‍नातक में पढ रही छोटी समेत तीनों बच्‍चे अभी अविवाहित ही हैं। क्‍या यह मदद लेना कोई अपराध है दोस्‍तों ?

क्‍या जब हम या आप लोग कभी इस हालत में आ जाएं तो हमारे बच्‍चे सड़क पर खड़े दिखायी पडें ? क्‍या दुनिया को यह एहसास होता रहे कि ईमानदारी और जांबाजी का हश्र और उनके पीडि़त परिजनों का अंजाम ऐसा ही होता है ? क्‍या जागेन्‍द्र अथवा उसके परिवारीजनों के बारे में हम सब की कोई जिम्‍मेदारी नहीं है ? 

नहीं दोस्‍तों। है दोस्‍तों, है। खूब है।

हम सब ने तो अपनी जेब से जो भी हो सकता था, हल्‍का-फुल्‍का, भरसक दिया है। लेकिन असल मदद तो सरकार ने दी है। तीस लाख रूपया कम नहीं होता है मित्रों। सरकार ने इस परिवार को तीस लाख रूपयों की मदद दे दी है। 

क्‍या हम चाहते रहे हैं कि हम जागेन्‍द्र की लड़ाई लड़ते रहें और उसका परिवार भूखों मरता रहे। 

सरकार ने उस जमीन का कब्‍जा दिया दे दिया है, जिसपर एक दबंग परिवार कब्‍जा किये थे। लम्‍बे समय से। कोर्ट-कचेहरी, डीएम, शीएम-ढीएम तक पर अर्जी लगीं, आदेश भी हुए, लेकिन तामीला कुछ भी नहीं हुआ। इस इलाके में जमीन की कीमत मगर उधर जागेन्‍द्र मरा, उसकी जमीन वापस मिल गयी। इस इलाके में जमीन की कीमत प्रति बीघा 50 लाख रूपया बीघा है। यानी करीब पौने चार करोड़ रूपया।

क्‍या आप नहीं चाहते थे कि यह जमीन जागेन्‍द्र के परिवार को मिल जाए ?

सरकार ने उसे दो बेटों को नौकरी देने का ऐलान किया है, ताकि वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। 

क्‍या आप लोग यह नहीं चाहते थे कि इन बच्‍चों को नौकरी मिल जाए ?

इनमें केवल एक प्रकरण पर ही मैं असहमत हूं। वह है कि जागेन्‍द्र के बच्‍चों को नौकरी देना। यह प्रश्‍न और उसका उत्‍तर बहुत पेंचीदा है। सिलसिलेवार देखिये। उसके तीन आश्रित बच्‍चे हैं। एक बेटी और दो बेटे। सरकार किस को नौकरी देगी। क्‍या दोनों लड़कों को नौकरी मिलेगी। ऐसे में तो एक बच्‍ची के साथ बड़ा बेइंसाफी हो जाएगी। और अगर एक लड़की को नौकरी मिलेगी तो फिर घर में बवाल होगा। वह बेटी हमेशा-हमेशा के लिए अपने पिता के घर में परायी और दुश्‍मन हो जाएगी। ऐसे में वह अगर त्‍याग के चलते यह नौकरी अपने भाई को सौंपने देने पर तैयार हो जाती है तो फिर सरकार का स्‍त्रीसशक्‍तीकरण का अभियान ही फुस्‍स हो जाएगा।

लेकिन असल बात तो यह है कि इन बच्‍चों को सरकारी नौकरी क्‍यों दी जाए। सरकार की नौकरी कोई लाखैरी तो होती नहीं है, जो सरकार ने इधर खींची और उधर किसी को भी थमा दी। नौकरी हासिल के लिए कुछ मानक होते हैं और उसे हासिल करने के लिए अभ्‍यर्थियों को कई अर्हताएं पूरी ही करनी होती हैं। सरकारी नौकरी के लिए भी बाकायदा परीक्षा होती है, भले ही वह अमीन की हो या फिर चपरासी अथवा अर्दली की। इन बच्‍चों को सरकारी नौकरी देना मानवीय प्रकरण तो हो सकता है, लेकिन लोकहित में सर्वथा अहित और मारक होगा।

नहीं, मेरा मानना है कि इस तरह रेवडि़यां बांटना अपराध है और हम सब को इसके खिलाफ लड़ाई छेड़नी चाहिए। विरोध करना चाहिए। हम सरकारी नौकरी में श्रेष्‍ठतत्‍व खोजें और यह तत्‍व इन बच्‍चों में मिल जाए, तो इससे बेहतर और क्‍या हो सकता है। लेकिन अगर वे मानक पर खरे नहीं उतरते हैं तो मैं पहला व्‍यक्ति होऊंगा जो इसका विरोध करूंगा।

दूसरी बात, पांच एकड़ की जमीन का कब्‍जा वापस दिला कर कोई अहसान नहीं किया है सरकार ने। यह तो सरकार की जिम्‍मेदारी थी। जो दायित्‍व इस सरकार ने निभाया है, वह तो जागेन्‍द्र के पहले ही हो जाना चाहिए था, लेकिन चूंकि सरकार और उसके अफसर केवल बेईमानी और लालच में रहते हैं, इसलिए उसकी जमीन को छुड़ाने के लिए उन्‍होंने कोई कदम नहीं उठाया। आज जब सरकार ने डंडा दिखाया तो जमीन वापस मिल गयी।

तो सवाल यह है कि सरकार केवल चंद मसलों पर ही कार्रवाई करेगी। क्‍या सरकार बतायेगी कि प्रदेश में कितनी जमीनाों पर दबंग लोग काबिज हैं और उससे कितने लोग भुखमरी की हालत पर पहुंच चुके हैं।

यह सटीक मौका है जब सरकार से इस बारे में कड़ाई के साथ सवाल किया जाए और उसका समाधान खोजने के लिए हम सब आंदोलन छेड़ें।

अब आखिरी बात, नकद 30 लाख रूपयों की मदद की। सरकार ने यह रकम दी है हत्‍या के पीडि़त परिजनों को। 

साफ बात है कि इसके तहत सरकार ने मान किया है, कुबूल लिया है कि यह हत्‍या राज-सत्‍ता यानी सरकार की असफलता के चलते हुई है। कानून-व्‍यवस्‍था के मामले में अपनी बुरी हालत के चलते हुए इस हादसे का मुआवजा दिया है सरकार। यानी सरकार दोषी हे, इसलिए उसने इस रकम से अपने हाथ जागेंद्र सिंह के खून से धोने की चेष्‍टा की है। 

बधाई होनी चाहिए अखिलेश सरकार की। 

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम इतने में संतुष्‍ट हो जाएं। हमें देखना चाहिए कि यह मदद बिक्री-खरीद की शैली में ही हुई है, प्रायश्चित हर्गिज्‍ नही है। अगर प्रायश्चित होती तो जो वांछित अभियुक्‍त नामजद हैं, सरकार उन्‍हें तत्‍काल पकड़ती और अपनी सरकार के निजाम को मजबूत करती। लेकिन ऐसा हुआ नहीं गया है। जाहिर है कि यह मुआवजा केवल लालीपाप ही भर है।

जाहिर है कि हम इस सौदे को खारिज करते हैं। उनकी मदद तो हमें कुबूल हैं, लेकिन उसके बहाने जो चींजें छिपाने चाहती है सरकार, हम उसका पुरजोर विरोध करते हैं। 

हमारी मांग है कि:- मुआवजा दिया है अब मुल्जिम भी पकड़ो और जल्‍द से पकड़ो।

दोस्‍तों। कोशिश करो कि यह नारा जोरदारी से लगाओ ताकि यह लौ बुझ न पाये

शेयर करो, कमेंट करो, लाइक करो, मुट्ठी बांधो, ललकार लगाओ, नारे लगाओ

यह सर्वाधिक और सर्वोत्‍तम मौका है, जब हम संकल्‍प ले लें, कि आइन्‍दा किसी नये जागेन्‍द्र को इस तरह न मरने देंगे

कुमार सौवीर के एफबी वाल से



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