Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

डीएसपी मुकुल द्विवेदी का यूं जाना खल गया

Vikas Mishra : मुकुल द्विवेदी का यूं जाना खल गया। मेरठ में मैं जब दैनिक जागरण का सिटी इंचार्ज था तब मुकुल द्विवेदी वहां सीओ थे। बेहद मृदुभाषी, पुलिसिया ठसक से दूर। सहज ही अच्छी दोस्ती हो गई। अक्सर मुलाकात होती थी। कभी दफ्तर में तो कभी हम दोनों के साझा मित्र संजय सिंह Sanjay Singh के घर पर मुलाकात होती थी। मेरा एक कनेक्शन इलाहाबाद का भी था, मैं उनसे सीनियर था।

Vikas Mishra : मुकुल द्विवेदी का यूं जाना खल गया। मेरठ में मैं जब दैनिक जागरण का सिटी इंचार्ज था तब मुकुल द्विवेदी वहां सीओ थे। बेहद मृदुभाषी, पुलिसिया ठसक से दूर। सहज ही अच्छी दोस्ती हो गई। अक्सर मुलाकात होती थी। कभी दफ्तर में तो कभी हम दोनों के साझा मित्र संजय सिंह Sanjay Singh के घर पर मुलाकात होती थी। मेरा एक कनेक्शन इलाहाबाद का भी था, मैं उनसे सीनियर था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

2003 की बात है, रात करीब ढाई बजे मेरे पास दफ्तर से फोन आया था। बताया कि बागपत का अखबार लेकर जा रही जीप को सिविल लाइन थाने में पुलिस ने बंद कर दिया है, ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया है। अब अखबार समय से बागपत पहुंचे, ये जिम्मेदारी मुझ पर डाली गई थी। मैंने थाने फोन किया, बता चला कि सीओ साहब गश्त पर थे, जागरण की गाड़ी ने उनकी गाड़ी में ठोंक दिया, जिसमें सीओ साहब घायल हो गए हैं। ये सीओ कोई और नहीं मुकुल द्विवेदी ही थे।

मैंने थानेदार हरिमोहन सिंह को फोन किया तो उन्होंने बताया कि साहब की गाड़ी ठोंकी है, सर, कैसे छोड़ सकता हूं, नौकरी चली जाएगी। जागरण की गाड़ी न होती तो ड्राइवर को कूट दिया जाता। मैंने कहा कि आप हैं कहां, बोले-अस्पताल में। मैंने कहा कि मुकुल का क्या हाल है। बोले सिर में चोट लगी है। मैंने कहा, बात करवा दीजिए। खैर, मुकुल से बात हुई। हाल-चाल हुआ, कुशल क्षेम हुआ। मैं सीधा अस्पताल गया, चोट ज्यादा नहीं थी, गनीमत थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हंसी मजाक हुआ, मैंने मजाक में कहा कि इतनी मुस्तैदी से ड्यूटी निभाएंगे तो ऐसी ही आफत आएगी, आधी रात के बाद गश्त लगाने की क्या जरूरत थी..।

मुकुल भी हंस पड़े। मुकुल ने खुद थानेदार से कहा कि गाड़ी छोड़ दो। मैंने कहा नहीं, एक कांस्टेबल भी साथ भेजिए। मेरी जिम्मेदारी सप्लाई पहुंचवाने की है, सिरफिरे ड्राइवर को बचाने की नहीं। मुकुल बोले-कोई बात नहीं, हो जाता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुकुल की मुझसे ही नहीं, वहां कई पत्रकारों से दोस्ती थी। दोस्त आइटम थे। जब हाथरस में थे, तब मेरी उनसे बातचीत हुई थी। यहां कामकाज की आपाधापी में बरसों तक बात नहीं हो पाई थी। दो हफ्ते भर पहले मुझे पता चला था कि मुकुल मथुरा में एसपी सिटी हैं, सोचा था कि बात करूंगा, लेकिन मुहूर्त नहीं निकल पाया। और जब उनके बारे में खबर आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

मन कचोट रहा है, क्या कहूं, काश उन्हें फोन कर लिया होता, मथुरा है ही कितनी दूर, एक बार मिल आता, लेकिन अब क्या कहूं। कहते हैं कि वीरों का हो कैसा बसंत। यानी वीरों का बसंत तो मोर्चे पर ही होता है। मुकुल द्विवेदी मोर्चे पर मारे गए। उनकी शहादत को नम आंखों से मैं सलाम करता हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे, उनके बुजुर्ग पिता, माता और पूरे परिवार को ये असीम दुख उठाने की क्षमता भी दे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आजतक न्यूज चैनल में कार्यरत पत्रकार विकास मिश्र के एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement