राजनीति से ही हमारी मीडिया की लाइन तय होती है। जिस विचारधारा का प्रभुत्व होता है वही राज करती है मीडिया के प्राइम टाइम के कार्यक्रमों में! दरअसल हाल ही के एक प्रकरण से यह बिल्कुल साफ हो गया! हाल ही में चर्चित आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के आडियो टेप के मामले का खुलासा हुआ है जिसमें कि मुलायम सिंह यादव एक आईपीएस अधिकारी को सुधर जाने की ‘सलाह’ देते हुए सुन जा सकते हैं। इस टेप का खुलासा तो फक्कड़ पत्रकार भड़ासी यशवंत सिंह ने किया। पर इसके ब्रेक होने के बाद भी लगभग 20 मिनट तक किसी भी न्यूज चैनल ने इस टेप को नहीं चलाया और ना ही हो हल्ला मचा।
जिस तरह से इस मामले को इलेक्ट्रानिक मीडिया में ‘प्रॉफिट आफ डाउट’ यानी संदेह का लाभ देकर (कि इसकी प्रमाणिकता की हम गारंटी नहीं लेते) मामले को चलता कर दिया गया। उसके बाद जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि नेता जी मुझे डांट सकते हैं तो अधिकारी को क्यों नहीं? इस बयान पर भी मीडिया खामोश रही यानी पता नहीं क्यों आक्रामक तरीके से अन्य मामलों की तरह क्यों नहीं खेला गया?
अब बड़ा सवाल यह है कि अगर यही केस बीजेपी से जुड़ा होता मतलब अगर बीजेपी के किसी विधायक या लोकल नेता ने भी यह बात कही होती तब मीडिया के धुरंधर क्रांतिकारी पत्रकार हफ्ते भर तक चिल्ला चिल्ला कर ‘प्राइम टाइम’ ‘हल्ला बोल’ और ‘दस्तक’ जैसे कथित दुनिया के सबसे बडे कार्यक्रमों में इसे एक अभियान की तरह पेश करते। ऐसा भी हो सकता है कि मालिकों की ‘कमजोर जमीन’ पर खड़े तहलकावादी पत्रकारों ने चाहे वो इलेक्ट्रानिक के हों या फिर प्रिंट के सभी ने घुटने टेक दिए हों।
और सिर्फ मीडिया और पत्रकारों की ही बात क्यों करें। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र प्राइवेट लिमिटेड चलाने वाले पार्टियों के नेताओं ने इसका जोरदार विरोध क्यों नहीं किया? बीजेपी के नेता किस रंग का कुर्ता पहनते हैं इस पर भी विवाद करने वाले भारी भरकम सेकुलरवादी सिद्धांतनिष्ठ नीतीश कुमार ने इस पर कोई बयान क्यों नहीं दिया?क्या अमूर्त जनता परिवार के अपने नेता मुलायम के खिलाफ नीतीश में बोलने का साहस है? आम आदमी के सुन्दर सपने को रच कर दिल्ली चलाने वाले और ईमानदारी का प्रमाणपत्र बांटने वाले अरविन्द केजरीवाल ने इसके खिलाफ क्यों नहीं ट्वीट किया ? नीतीश कुमार से राजनीतिक दोस्ती रचने वाले अरविन्द के पास वह साहस है कि खुलकर जैसे वे पूरी दुनिया को बेईमान घोषित करते रहे हैं इस पर कुछ बोलें?
जातिगत जनगणना के लिए मंच मंच स्वांग रचाने वाले सिर्फ जातिवादी राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव बताएं कि इस मुद्दे पर उनका क्या स्टैंड है? क्या इसमें आपका वर्गहित (सत्ता और राजनीति स्वयं एक वर्ग है) नहीं है जो सभी के सभी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हो। तमाम तरह के तथ्यहीन तर्क देकर इस मामले को खत्म किया जा रहा है सवाल सिर्फ इतना सा है कि क्या एक आईपीएस अधिकारी को एक पार्टी का प्रमुख सलाह रूपी धमकी दे सकता है। इसका विरोध करने पर उसे उसके पद से हटा दिया जाता है और उसके खिलाफ 48 घंटे के अन्दर रेप का केस(रिटर्न गिफ्ट) दर्ज हो जाता है।
दरअसल 16 मई के बाद से मीडिया की सबसे बड़ी समस्या यह है कि भाजपा देश पर शासन कैसे कर रही है? नहीं तो क्या वजह है कि अमित शाह कुछ बोलते हैं और पूरे के पूरे बयान को बदल कर दिखाया जाता है। खुद को महान समझने वाले पत्रकार हाथ मलते हुए एसी के स्टूडियो से गरीबों की बात करेंगे जैसे कि यही देश के अकेले शुभचिंतक है और सब देश को लूट रहे हैं आखिर क्या वजह है कि एक साल के अन्दर एक भी काम मोदी सरकार का ऐसा नहीं हुआ जिस पर जम कर आलोचना न हुई हो…और एक पत्रकार को जिंदा जला दिया जाता है एक औरत को थाने में जला दिया जाता है उसके बाद एक आईपीएस अफसर को धमकी दी जा रही है कि सुधर जाओ।
क्या इसी तरह से मीडिया अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करेगी ? क्या ऐसे ही मीडिया लोगों को मिली बोलने एवं अभिव्यक्ति की आजादी का फायदा उठाएगी..ऐसा नहीं है कि पूरा प्रकरण मीडिया में चला नहीं चला तो लेकिन सिर्फ इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया पर वो वायरल हो चुका था..घमंड से भरे कथित निष्पक्ष ,तोपची और सरोकारी पत्रकारों को एक बार खुद भी अपने प्रोग्राम को देखना चाहिए कि क्या वो उस लाइन पर हैं जिसके लिए सीना चौड़ा करके चलते हैं। खबर को तानने , खबर से खेलने और इस पर सीरीज चलाने वाले पत्रकारों, चैनलों की चुनी हुई चुप्पियां उनके ईमान को कुरेदती रहेंगीं!
लेखक चमन कुमार मिश्रा से संपर्क : 8743928503, [email protected]