Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

मुसलमानों के मामले में मीडिया ने अपने सिद्धांत और अक्ल, दोनों बेच खाए हैं!

उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनाव नतीजों के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ। दस्तूर के मुताबिक सोशल मीडिया से यह वीडियो मेन-स्ट्रीम मीडिया के पास पहुंचा और पिछले कुछ वक्त से जो  हमेशा होता चला आ रहा है, वही हुआ। एक फर्जी वीडियो के सहारे एक विशेष तबके को देश विरोधी बताने की कोशिश हुई। हां, मैं वीडियो को फर्जी कह रहा हूं क्योंकि वह फर्जी ही है। वीडियो के ऑडियो और विजुअल लेवल में जो फर्क है उसे देख कोई बच्चा भी बता देगा कि वीडियो असली नहीं हो सकता। न्यूज पोर्टल Alt News ने तो इसकी पड़ताल भी की और वीडियो के फर्जी होने की तरफ इशारा भी किया। बाकी, फॉरेंसिक जांच में तो सच सामने आ ही जाएगा।

<p>उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनाव नतीजों के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ। दस्तूर के मुताबिक सोशल मीडिया से यह वीडियो मेन-स्ट्रीम मीडिया के पास पहुंचा और पिछले कुछ वक्त से जो  हमेशा होता चला आ रहा है, वही हुआ। एक फर्जी वीडियो के सहारे एक विशेष तबके को देश विरोधी बताने की कोशिश हुई। हां, मैं वीडियो को फर्जी कह रहा हूं क्योंकि वह फर्जी ही है। वीडियो के ऑडियो और विजुअल लेवल में जो फर्क है उसे देख कोई बच्चा भी बता देगा कि वीडियो असली नहीं हो सकता। न्यूज पोर्टल Alt News ने तो इसकी पड़ताल भी की और वीडियो के फर्जी होने की तरफ इशारा भी किया। बाकी, फॉरेंसिक जांच में तो सच सामने आ ही जाएगा।</p>

उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनाव नतीजों के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ। दस्तूर के मुताबिक सोशल मीडिया से यह वीडियो मेन-स्ट्रीम मीडिया के पास पहुंचा और पिछले कुछ वक्त से जो  हमेशा होता चला आ रहा है, वही हुआ। एक फर्जी वीडियो के सहारे एक विशेष तबके को देश विरोधी बताने की कोशिश हुई। हां, मैं वीडियो को फर्जी कह रहा हूं क्योंकि वह फर्जी ही है। वीडियो के ऑडियो और विजुअल लेवल में जो फर्क है उसे देख कोई बच्चा भी बता देगा कि वीडियो असली नहीं हो सकता। न्यूज पोर्टल Alt News ने तो इसकी पड़ताल भी की और वीडियो के फर्जी होने की तरफ इशारा भी किया। बाकी, फॉरेंसिक जांच में तो सच सामने आ ही जाएगा।

बहरहाल, मैं बात कर रहा था मेन-स्ट्रीम मीडिया की। यह पहली बार नहीं है जब मेन-स्ट्रीम मीडिया के कुछ संस्थानों, चाहे वह टीवी हो या डिजिटल, ने ऐसी गलती की है। एक गलती एक बार होती है, लेकिन एक ही गलती बार-बार क्यों हो रही है? कन्हैया कुमार का फर्जी वीडियो वाला मामला तो देशभर में मशहूर है। इसकी वजह से तो मीडिया की काफी लानत-मलानत हुई थी। आखिर मामला क्या है? मीडिया ने अक्ल बेच खाई है या सिद्धांत? किसके लिए काम कर रहे हैं ये?  इस वीडियो के मामले में दो लोग गिरफ्तार भी हो गए। अगर फॉरेंसिक जांच में वीडियो फर्जी निकला तब क्या होगा?

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेन-स्ट्रीम मीडिया का काम क्या है? यह उसके मालिक और मठाधीश अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से तय करते रहें। लेकिन सबसे खतरनाक बात है कि इस काम की आड़ में मीडिया के एक बुनियादी सिद्धांत की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। बुनियादी सिद्धांत यानी सच!

Advertisement. Scroll to continue reading.

ज़ी टीवी 2000 रुपये के नोट में  नैनो जीपीएस चिप लगे होने का दावा कर देता है! इंडिया न्यूज कन्हैया कुमार के फर्जी वीडियो चला देता है। इनके सूत्र क्या हैं? क्या ये सब असली गलतियां लगती हैं? क्या इसके पीछे कोई गलत मंशा नहीं? क्या ये सच में इतने मासूम हैं? हाल इतना बुरा है कि गलत खबर चलाने के बाद माफीनामा भी नहीं दिया जाता। मेन-स्ट्रीम मीडिया के ज्यादातर संस्थान किसके हित में काम कर रहे हैं? यह आप सब बखूबी जानते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसी बीच फर्जीवाड़े की आड़ में एक और खतरनाक काम, वक्त-बेवक्त, जाने-अनजाने, मुसलमानों पर निशाना साधने का होता है। अररिया लोकसभा सीट से राजद उम्मीदवार सरफराज आलम की जीत पर “माननीय” गिरिराज सिंह कहते हैं कि अररिया अब आतंकवाद का गढ़ बन जाएगा। सिंह से पहले उपचुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के “प्रदेश अध्यक्ष”, ध्यान से पढ़िएगा- “प्रदेश अध्यक्ष” नित्यानंद राय ने सरफराज आलम के जीतने पर अररिया को ISI के लिए सुरक्षित स्थान बन जाने की बात कही थी। ऐसे बयान देकर यह कहना क्या चाहते हैं?

विवादित बयानों के माहौल के बीच एक वीडियो वायरल हो जाता है। टीवी के सामने बैठे दर्शक को परोसा जाता है कि अररिया के इस वीडियो में “पाकिस्तान जिंदाबाद” और “भारत तेरे टुकड़े होंगे” जैसे नारे लगाए गए। वीडियो में नारे न तो ठीक से सुनाई ही देते हैं, न ही दिखाई देते हैं। इसके बावजूद आजतक और टाइम्स नाउ जैसे प्रमुख टीवी न्यूज चैनल इसका प्रसारण करते हैं। प्रसारण करने से पहले वे एक बार भी इसके सोर्स की पुष्टि करना जरूरी नहीं समझते। उन्हें वीडियो के ऑडियो-विजुअल लेवल्स में फर्क देखकर भी शक नहीं होता! ऐसे ही कासगंज का मामला पुराना नहीं है। यहां 26 जनवरी के मौके पर मुस्लिम बहुल इलाके में लोग तिरंगा फहरा रहे थे। बेवजह एक गुट तिरंगे के साथ भगवा झंडा लेकर पहुंच जाता है। फसाद होता है और एक नौजवान चंदन गुप्ता की मौत हो जाती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस मामले की आजतक पर रोहित सरदाना इस तरह कवरेज करते हैं मानो मुस्लिम बहुल इलाके में तिरंगा नहीं, पाकिस्तान का झंडा फहराया जा रहा था। ऐसा करके वह एक समुदाय के खिलाफ दूसरे समुदाय के लोगों के दिलों में कितनी नफरत भर रहे हैं, क्या इस बात का अंदाजा उन्हें नहीं है? ऐसे ही कई और मामले हैं जिनकी सूची बनने लगे तो शायद ही कभी खत्म हो पाए। मीडिया को यह हक नहीं कि वह एक कौम को जलील करता रहे। एक धर्म विशेष के लोगों पर बार-बार निशाना साधना गलत है। प्राथमिकताओं के लिए मीडिया को “एथिक्स” बेचने हैं तो बेचे, लेकिन मुसलमानों को देश का दुश्मन दिखाना बंद होना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नदीम अनवर
पत्रकार
[email protected]

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement