
हर्ष कुमार-
नई दिल्ली से प्रकाशित दिल्ली एनसीआर के लोकप्रिय अखबार ‘नवोदय टाइम्स’ ने अपने दस साल के सफर को भागते दौड़ते हुए पूरा किया। भागना इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इससे पहले ना जाने कितने नए अखबार आए लेकिन दो चार महीने में ही लड़खड़ाने लगे लेकिन ‘पंजाब केसरी ग्रुप जालंधर’ के इस अखबार ने हर लिहाज से पुरानी धारणाओं को गलत ठहराया।
इसका पूरा श्रेय इसके संपादक Aaku Srivastava जी व इसके बेहद विजनरी मालिकान चोपड़ा परिवार को जाता है।
आज देखकर गर्व होता है कि हम इस अखबार से पहले महीने से ही जुड़े और आज तक जुड़े हुए हैं। कई लोग यहां आए और यहां से दूसरे संस्थानों में गए लेकिन फिर लौटकर भी आए।
हम भी जब तक क्षेत्रीय अखबारों से जुड़े रहे तो उन्हें बड़ा अखबार मानते रहे। लेकिन नई दिल्ली के कनाट प्लेस स्थिति इस दफ्तर में काम किया तो महसूस किया कि दरअसल अब तक हम कुएं के मेंढक ही थे।
सही मायने में बड़ा संस्थान तो वो होता है जो आपको अहमियत दे। ‘दैनिक जागरण’ जैसे संस्थान में सात साल काम किया लेकिन कभी अपनापन नहीं लगा। हमेशा तनाव का माहौल। कंपनी की ओर से दबाव ही दबाव। विश्व का नंबर वन अखबार बन गए लेकिन कंपनी में काम करने वाले तो जीरो ही रहे। ‘नवोदय टाइम्स’ ने कई ऐसे लोगों को भी जोड़ा जो रिटायर हो चुके थे और कुछ बिल्कुल ऐसे नए चेहरे भी तराशे जो आज किसी भी संस्थान में काम करने के काबिल बन चुके हैं।
मालिकान के बारे और कहना चाहूंगा। अपने पूरे स्टाफ के साथ सीधे कनेक्ट होने वाले शायद चोपड़ा बंधु पहले और आखिरी मीडिया हाउस ओनर होंगे। चोपड़ा परिवार की नई जेनरेशन तो बेहद ऊर्जावान है। कई बार चुनाव या किसी बड़ी खबर के दिनों में खुद आफिस में मौजूद रहकर हमें सुझाव देना और फिर बढ़िया काम करने पर ईनाम में लिफाफे देने का चलन यहीं देखा।
ईश्वर से कामना है कि यह संस्थान यूं ही तरक्की करता रहे और अपना विशिष्ट स्थान बनाए रखे।

