ख़ुशदीप सहगल-
लो जी, जिस जिस ने डॉ एन जॉन कैम के नाम से खिलवाड़ किया या फ़र्ज़ी ट्वीट का प्रचार-प्रसार किया, उन सब के ख़िलाफ़ कथित असली प्रोफेसर साहब की लीगल टीम एक्शन लेने जा रही है…
बहुत हद तक इस गुलगुपाड़े के लिए ट्विटर की पैसे देकर ब्लू टिक खरीदने की स्कीम भी ज़िम्मेदार है, कोई भी झूठी पहचान के आगे भी पैसे खर्च कर ब्लू टिक लगवा सकता है…
लेकिन बड़ा सवाल ये कि मुख्यमंत्री के सामने नंबर बढ़वाने की कोशिश में जिन न्यूज़ चैनल्स-अख़बारों के पत्रकारों ने चीटर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के फ़र्ज़ी ट्वीट के आधार पर स्तुतिगान किया, आम लोगों को भ्रमित किया, उनके ख़िलाफ़ क्या उनके संस्थान कोई कार्रवाई करेंगे…
उम्मीद न के बराबर है क्योंकि हमाम में सभी…
वाट्सएप यूनिवर्सिटी, पैसे देकर ब्लू टिक खरीदने की सहूलियत, ट्रोल आर्मीज़, चाटुकारी पत्रकारिता (दोनों तरफ़ के), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से असली फोटो से खिलवाड़ या फ़र्ज़ी फोटो गढ़ने की कला ने झूठ और सच की अब लक़ीर मिटा दी है…
आम पाठक या दर्शक भ्रमित है किस ‘ख़बर’ या ‘सूचना’ को झूठ माने और किसे सच?
एक ही रास्ता है, सिर्फ़ उन्हीं लंबे क्लीन रिकॉर्ड वाले विश्वसनीय लोगों या संस्थानों को फॉलो कीजिए जहां फ़र्ज़ीवाड़े की गुंजाइश कम है…
ग़लती किसी से भी हो सकती है, वो क्षम्य हो सकती है, लेकिन जो जानबूझकर ऐसा करते हैं, आदतन करते हैं, लोगों को बांटने की कोशिश करते हैं उनसे दूर रहने में ही समझदारी है…
ख़ास तौर पर पत्रकार का चोला पहने ऐसे लोगों से जो झूठे स्टिंग से महिला टीचर के कपड़े फाड़े जाने तक की नौबत तक ला देते हैं, 2000 के नोट में चिप लगवा देते हैं, बुलंदशहर में मंदिर में मूर्तियां टूटने को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश करते हैं जबकि दोषी असमाजिक तत्व हिन्दू ही निकले…
ग़लती बार बार अनजाने में एक ही शख़्स से नहीं हो सकती है…साफ़ है वो हैबीच्युल ऑफेंडर है…अगर उसे ये सब करने के लिए बड़े प्लेटफॉर्म मिल जाते हैं तो ये बंदर के हाथ में उस्तरा देने के समान है…
नए दौर में अब सच और तथ्यों तक पहुंचने का काम और मुश्किल हो गया है, इसलिए ये सब आपकी समझदारी पर ही निर्भर करता है कि समुद्र से मोती कैसे निकालते हैं…