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नई तकनीक से घुटने-कूल्हे के ट्रांसप्लांट की उम्र तीन गुना तक बढ़ाना संभव

घुटने और कूल्हे के ट्रांसप्लांट की एक नयी तकनीक आई है, जिसकी मदद से लगाये गए ट्रांसप्लांट की उम्र तीन गुना तक बढ़ाई जा सकती है. इस नयी टेक्नोलॉजी की जानकारी आर्थोपेडिक एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डा. रमणीक महाजन ने दी. डॉक्टर महाजन ने ये जानकारी नवीं एशिया पैसिफिक हिप और घुटना  संगोष्ठी “द ग्रेट एक्सपेक्टेशन २०१५” के दौरान दी. संगोष्टी के दौरान डॉक्टर महाजन ने लगभग ३०० डॉक्टरों को सम्बोधित करते हुए इस नयी तकनीक के बारे में विस्तार से बताया।

<p>घुटने और कूल्हे के ट्रांसप्लांट की एक नयी तकनीक आई है, जिसकी मदद से लगाये गए ट्रांसप्लांट की उम्र तीन गुना तक बढ़ाई जा सकती है. इस नयी टेक्नोलॉजी की जानकारी आर्थोपेडिक एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डा. रमणीक महाजन ने दी. डॉक्टर महाजन ने ये जानकारी नवीं एशिया पैसिफिक हिप और घुटना  संगोष्ठी "द ग्रेट एक्सपेक्टेशन २०१५" के दौरान दी. संगोष्टी के दौरान डॉक्टर महाजन ने लगभग ३०० डॉक्टरों को सम्बोधित करते हुए इस नयी तकनीक के बारे में विस्तार से बताया।</p>

घुटने और कूल्हे के ट्रांसप्लांट की एक नयी तकनीक आई है, जिसकी मदद से लगाये गए ट्रांसप्लांट की उम्र तीन गुना तक बढ़ाई जा सकती है. इस नयी टेक्नोलॉजी की जानकारी आर्थोपेडिक एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डा. रमणीक महाजन ने दी. डॉक्टर महाजन ने ये जानकारी नवीं एशिया पैसिफिक हिप और घुटना  संगोष्ठी “द ग्रेट एक्सपेक्टेशन २०१५” के दौरान दी. संगोष्टी के दौरान डॉक्टर महाजन ने लगभग ३०० डॉक्टरों को सम्बोधित करते हुए इस नयी तकनीक के बारे में विस्तार से बताया।

ऑर्थो प्लास्टी नमक इस तकनीक में हाइली क्रॉस लिंक्ड पॉलीएथेलेने कंपाउंड का इस्तेमाल किया जाता है, जो ट्रांसप्लांट की उम्र को तीन गुना तक बढ़ा देता है. अर्थात अब तक जो ट्रांसप्लांट 10 साल तक कारगर होते थे, अब वो लगभग 30 साल तक काम करेंगे. इस तकनीक के इस्तेमाल के बाद मरीज को दोबारा ऑपरेशन की दिक्कत नहीं उठानी पड़ेगी। इस अंतर्राष्ट्रीय प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य कूल्हे और घुटने की समस्या से निजात दिलाना और नई टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना था। आर्थोप्लास्टी (X-3, Sequentially Irradiated Highly Cross Linked) का उपयोग मुख्यतः कूल्हे या घुटने की सर्जरी के दौरान किया जाता है। इस तकनीक के उपयोग के होने से ट्रांसप्लांट की आयु अवधि में बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। यह एक विशेष प्रकार की पोलिथिन होती है, इसे जॉइंट के बीच में रखा जाता है जिससे रोज़मर्रा की भागदौड़ द्वारा पैदा हुए घर्षण का प्रभाव ट्रांसप्लांट पे कम होता है। इस तकनीक का प्रयोग दिनों दिन देश-विदेश में बढ़ता जा रहा है। वर्तमान समय में इस तकनीक के प्रयोग से 25 से 30 वर्षों तक जॉइंट की समस्या से निजात मिल जायेगा।

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0 Comments

  1. Devendra Surjan

    March 20, 2015 at 7:08 am

    🙂

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