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जिन न्यूज़ सप्लाई एजेन्ट्स के भरोसे चल रहा पंजाब केसरी उन्ही का कर रहा शोषण

पंजाब का एक समाचार पत्र कर्मचारियों के शोषण का केन्द्र बनता चला जा रहा है। मीडियाकर्मियों के साथ इस संस्थान से जुड़ने वाले अधिकांश लोग व्यवसायी वृत्ति के है जो समाचारों के नाम पर केवल लेन-देन व विज्ञापनों का करोबार करते है। पिछलें दिनों समाचार से जुड़ी अंबाला की एक सहायक संपादक को इसलिये निकाल दिया गया क्योंकि वो विज्ञापनों के मामले में मालिकों की अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी। उसे भी सहायक संपादक के बजाए न्यूज सप्लाई एजेंट (एनएसए) का पत्र दिया गया था। एनएसए के नाम पर समाचार पत्र लोगों का भरपूर शोषण कर रहा है। उन्हें अपना कर्मचारी नहीं बल्कि एनएसए दिखाकर ये समाचार पत्र पत्रकारिता के सभी आयोगों से बच रहा है। जिसके कारण इस समाचार पत्र पर आयोगों की मार नहीं पड़ रही है।

<p>पंजाब का एक समाचार पत्र कर्मचारियों के शोषण का केन्द्र बनता चला जा रहा है। मीडियाकर्मियों के साथ इस संस्थान से जुड़ने वाले अधिकांश लोग व्यवसायी वृत्ति के है जो समाचारों के नाम पर केवल लेन-देन व विज्ञापनों का करोबार करते है। पिछलें दिनों समाचार से जुड़ी अंबाला की एक सहायक संपादक को इसलिये निकाल दिया गया क्योंकि वो विज्ञापनों के मामले में मालिकों की अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी। उसे भी सहायक संपादक के बजाए न्यूज सप्लाई एजेंट (एनएसए) का पत्र दिया गया था। एनएसए के नाम पर समाचार पत्र लोगों का भरपूर शोषण कर रहा है। उन्हें अपना कर्मचारी नहीं बल्कि एनएसए दिखाकर ये समाचार पत्र पत्रकारिता के सभी आयोगों से बच रहा है। जिसके कारण इस समाचार पत्र पर आयोगों की मार नहीं पड़ रही है।</p>

पंजाब का एक समाचार पत्र कर्मचारियों के शोषण का केन्द्र बनता चला जा रहा है। मीडियाकर्मियों के साथ इस संस्थान से जुड़ने वाले अधिकांश लोग व्यवसायी वृत्ति के है जो समाचारों के नाम पर केवल लेन-देन व विज्ञापनों का करोबार करते है। पिछलें दिनों समाचार से जुड़ी अंबाला की एक सहायक संपादक को इसलिये निकाल दिया गया क्योंकि वो विज्ञापनों के मामले में मालिकों की अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी। उसे भी सहायक संपादक के बजाए न्यूज सप्लाई एजेंट (एनएसए) का पत्र दिया गया था। एनएसए के नाम पर समाचार पत्र लोगों का भरपूर शोषण कर रहा है। उन्हें अपना कर्मचारी नहीं बल्कि एनएसए दिखाकर ये समाचार पत्र पत्रकारिता के सभी आयोगों से बच रहा है। जिसके कारण इस समाचार पत्र पर आयोगों की मार नहीं पड़ रही है।

जानकार सूत्रों की माने तो पंजाब केसरी केवल एनएसए के भरोसे चल रहा है। जो लोग न्यूज सप्लाई एजेंट बनाए गये है वे समाचारों के देने के बदले लगभग डेढ रूपये प्रति सेंटीमीटर कॉलम के हिसाब से भुगतान लेने पर मजबूर हैं। वो भी समाचारों के प्रकाशन के पांच-छः महीने बाद। जानकारी तो यहां तक मिली है कि एनएसए द्वारा भेजे गये समाचार पत्र की कतरने कई बार तो गायब हो जाती हैं और कई बार उन्हें चुहे तक खा जाते हैं। जिसके कारण उन्हें औना-पौना भुगतान कर दिया जाता है। एनएसए में अधिकांश लोग वो है जो छोटे-छोटे स्टेशनों से लेकर ब्यूरो तक में काम करते है। पंजाब केसरी जैसे बैनर में इस तरह का शोषण न तो नया है और न ही पत्रकारों के हित में है। कई एनएसए तो समाचार प्रेषण के साथ-साथ शराब-कबाब जैसे व्यवसास में जुटे है।
 
इसी ग्रुप से जुड़े सहारनपुर के एक पत्रकार को अवैध शराब आपूर्ति में पकड़ा गया था। जिसमें ले देकर मामलों को निपटाया गया और वह दोबारा फिर पंजाब केसरी से जुड़ गया। देहरादून में स्थित एक पत्रकार द्वारा संस्थान के चार पांच लाख रूपये विज्ञापनों का भुगतान हजम कर लिया गया है। जिसे फिलहाल पंजाब केसरी से पृथक कर दिया गया है। वहां के ब्यूरों को उससे वसूली का जिम्मा भी सौंपा गया है। यह स्थिति अन्य क्षेत्रों में भी है। हरियाणा, हिमाचल, पंजाब के कई केन्द्रों में वे लोग भी एनएसए हैं जो लॉन्ड्री, बारबर सैलून, चिकित्सा तथा अन्य व्यवसास के साथ समाचार प्रेषण का काम करते है।

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एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

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