Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

कोरोना और ट्रंप पर टॉप ग्लोबल इंटलेक्चुअल नोम चोम्सकी को सुनना जरूरी है, देखें वीडियो

Sheetal P Singh : दुनिया के वर्तमान समय में सबसे बड़े जीवित बौद्धिक बुजुर्ग Noam Chomsky को कोरोना पर ट्रंप के हस्तक्षेप के बारे में सुनना एक पूरी सदी के मानव विकास के निचोड़ को सुनने जैसा है।

धरती के जीवित लोगों में राजनैतिक विमर्श में शरीक ऐसा शायद ही कोई हो जो उनसे / उनके लिखे बोले कहे से मुँह फेर सके, चाहे सहमत हो या असहमत।

हम ख़ुशनसीब हैं कि हमने उन्हें हाड़ मॉस के इंसान के रूप में बार बार सुना है और अभी भी सुन रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वीडियो देखें-

जो लोग हिंदी में ज्यादा सहज हैं उनके लिए नीचे अनुवाद युवा और प्रतिभाशाली पत्रकार विवेक सिंह के सौजन्य से प्रस्तुत किया जा रहा है-

नोम चोम्सकी हमारे समय का वो जीवित दस्तावेज है जिसने 1950 के बाद से दुनिया की हर बड़े बदलाव को न देखा है बल्कि उससे होने वाले बदलाव पर उनका एक रुख भी रहा है। भाषाविद, राजनीतिक विश्लेषक, इतिहास के जानकार चोम्सकी ने जितना लिखा है वो सब दस्तावेज है। आज जब कोरोना महामारी की जद में पूरी दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। विश्व महाशक्ति का दम भरने वाला महाबाली अमेरिका कोरोना के सामने हाफ रहा है। मौतें इतनी ज्यादा हो रही हैं कि लोगों को सामूहिक रूप से दफन करना पड़ रहा है। शुरू में इस महामारी को हवा में उड़ाने वाले ट्रंप की हवाइयां उड़ रही हैं। ऐसे दौर में अमेरिकी व्यवस्था को लेकर नोम चोम्सकी ने डेमोक्रेसी नाउ चैनल से बात की है और ट्रंप जैसे बड़बोले नेताओं की जमकर खबर ली है। चोम्सकी ने इस बातचीत में सिर्फ कोरोना पर ही बात नहीं की बल्कि अमेरिकी चुनावों से लेकर दुनिया में हो रहे बदलावों पर न सिर्फ नजरिया रखा है बल्कि पूजीवादी बैसाखी पर भाग रही व्यवस्था का निचोड़ सामने रख दिया है। यही नहीं चोम्सकी ने अमेरिकी मीडिया के सुधीर चौधरी और जी न्यूज की भी चर्चा की है। बातचीत की शुरुआत चोम्सकी अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए होने वाले चुनाव से की है जो कि नवम्बर में होने वाले हैं। पढ़िए चोम्सकी ने बातचीत में क्या कुछ कहा है…

Advertisement. Scroll to continue reading.

अगर ट्रम्प दोबारा चुने जाते हैं तो ये डिजास्टर होगा.. इसका मतलब होगा कि पिछले चार की विध्वंसकारी नीतियां आगे भी जारी रहेंगी या शायद और आगे निकल जाएंगी। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत और बुरी होगी, पर्यावरण संकट के साथ ही न्यूक्लियर वार का खतरा हमेशा की तरह बना हुआ है। मेरा मानना है कि अगर बिडेन चुने जाते हैं तो ये ओबामा के कार्यकाल जैसा ही होता जो कि बहुत अच्छा तो नहीं है लेकिन कम से कम इस व्यवस्था की तरह से विध्वंसकारी तो नहीं है। बर्नी सैंडर्स ने चुनाव से किनारा करते हुए अपना कैंपेन वापस ले लिया। लोग कह रहे हैं कि सैंडर्स का अभियान फेल हो गया लेकिन मैं इसे बड़ी सफलता मानता हूं। खासतौर पर इसने ऐसे मुद्दों को जीवंत कर दिया जो कुछ साल पहले परिदृश्य से गायब थे। स्थापित संस्थाओं की नजरों में उनका अपराध उनकी प्रस्तावित नीतियों से नहीं रहेगा बल्कि वे तथ्य हैं जिनसे उन्होंने आंदोलनों को प्रेरित किया है। जैसे काले लोगों का मुद्दा या अन्य मुद्दे जो अभी सुलग रहे थे उसे उन्हें सक्रिय आंदोलन में बदल दिया। अगर बिडेन जीतते हैं तो ये सारे मुद्दे बिडेन प्रशासन को डील करने होंगे।

अमेरिका के पूंजीवादी कल्चर पर तंज करते हुए चोम्सकी कहते हैं कि सभी को इलाज, फ्री कॉलेज प्रोग्राम ये सारे ऐसे मुद्दे हैं जो अमेरिकी लोगों के लिए काफी रेडिकल हैं। मुख्यधारा के लिए ये अमेरिकी कल्चर पर हमला है। अमेरिका में ये कहना रेडिकल विचार है कि हमें उन देशों के जैसा होना चाहिए जहां लोगों के लिए नेशनल हेल्थ स्कीम है, मुस्लिमों के लिए अच्छी शिक्षा है। जैसा फिनलैंड और जर्मनी में फ्री है। यहां तक कि हमारा पड़ोसी मेक्सिको जो कि एक गरीब देश है वहां भी उच्छ शिक्षा फ्री है। ये सब अमेरिकी समाज के लिए रेडिकल विचार है। ये मानव इतिहास का महत्वपूर्ण चुनाव होने जा रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

महामारी की बात करें तो यूनाइटेड स्टेट ने कोरोना से कई तरीके से डील किया। कुछ तरीके सफल कहे जाएंगे तो कुछ असफल तो कुछ बेहद ही निराश करने वाले हैं। अमेरिका इकलौता ऐसा बड़ा देश है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन को कोरोना से जुड़े डेटा तक नहीं दे पाया। इस महामारी ने ये दिखा दिया कि अमेरिका का स्वास्थ्य ढांचा ऐसी किसी भी बड़ी घटना के लिए तैयार नहीं है। अमेरिकी स्वास्थ्य व्यवस्था को वाशिंगटन में बैठे माफियाओं ने बर्बाद कर दिया है। ट्रम्प के चार साल के दौरान इसे बरबाद करने में वे जो कुछ कर सकते थे, वे सब वे कर चुके हैं। जनसेवाओं से जुड़े मुद्दे, खासतौर पर स्वास्थ्य प्राथमिकता में सबसे नीचे पायदान पर हैं। ग्लोबल वार्मिंग के जो हालात हैं इनमें नई महामारियों का खतरा बना हुआ है। ऐसे में हम अगर चाहते हैं कि नई महामारियों से बचा जाए तो हमें इसके सोर्स की तरफ देखना होगा। इसके लिए केवल इनकी जानकारी हो जाना जरूरी नहीं होगा। जरूरी है कि कोई आगे बढ़कर इस पर काम करे और ये दवा कंपनियों से बेहतर कौन कर सकता है लेकिन वे नहीं करेंगी। उनके लिए ये घाटे का सौदा है। वे केवल बाजार को देखते हुए काम करते हैं। जाहिर है किसी आने वाली महामारी को रोकने के लिए काम करने में उनका कोई फायदा नहीं है।

दूसरा तरीका ये है कि सरकार इसमें उतरे। हमें याद करना होगा कि पोलियो के आतंक का खात्मा सरकार के प्रयासों से ही हुआ। सरकार की पहल से बने प्रोजेक्ट से पोलियो की सॉक वैक्सीन बनी जो कि सभी के लिए फ्री हुई लेकिन नवउदारवादी नीतियों के चलते आज सरकारें ऐसा नहीं कर सकतीं। आज न्यूयार्क और कुछ अन्य जगहों पर डॉक्टर और नर्सेज दिल दहला लेने वाले फैसले लेने को मजबूर हो गये हैं कि वे किसे बचाएं और किसे मार दें। ऐसे दर्दनाक हालात इसलिए बने हैं क्योंकि स्वास्थ्य उपकरण नहीं हैं। वेंटिलेटर्स की भारी कमी है। यही हाल अस्पताल का है। अस्पतालों में जगह नहीं है क्योंकि इस मुनाफाखोर हेल्थ सिस्टम में आदमी के लिए जगह नहीं है। यही व्यवस्था सारे सिस्टम को चला रही है। दुर्भाग्य से हमारे पास कातिल पूंजीवादी व्यवस्था है जिस पर काबू पाया जा सकता था लेकिन नवउदारवादी नीतियों के चलते नहीं पाया जा सका। ये सिस्टम ये भी कहता है कि सरकार इसमें हस्तक्षेप न करे भले प्राइवेट सेक्टर ठीक काम न करें।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ट्रंप के कार्यकाल में वाशिंगटन पूरी तरह बेकार हो चुका है। एक तरफ अमेरिका महामारी के मुहाने पर था लेकिन ट्रंप ने इसको लेकर कोई तैयारी नहीं की। यहां तक 10 फरवरी को जब ये महामारी गंभीर स्थिति में थी तब ट्रंप ने जो सालाना बजट जारी किया उसमें सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल और स्वास्थ्य से जुड़े दूसरे संस्थानों के बजट में भी कटौती कर दी गई। ऐसा लग रहा है कि इस देश को सोसियोपैथ चला रहे हैं।

ट्रंप बहुत चालाक हैं। वे एक बयान देते हैं और अगले दिन उससे उलटा बिल्कुल अलग बयान देते हैं। यानि कि जो भी होगा वे साबित कर देंगे कि ये हमने कहा था। आप इधर-उधर तीर चलाते रहेंगे और फॉक्स के इको चैंबर से बजता भोपूं उनका काम करता रहेगा। चाहे जो हो जाए वे बस एक ही रट लगाते रहेंगे, हमारे महान राष्ट्रपति, गजब के राष्ट्रपति, हमारा रक्षक करते रहेंगे। वे झूठ पर झूठ फैलाते रहेंगे। तमाम फैक्ट चेक ये बता चुके हैं कि वे अब तक 20 हजार झूठ बोल चुके हैं लेकिन वे इस पर हंसते हें। वे लगातार झूठ बोलते रहेंगे और सच गायब हो जाएगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ट्रंप एक दिन एक बयान देते हैं और फॉक्स न्यूज का भोंपू उसे अगले दिन जोर-जोर से बजाता है। अगले दिन ट्रंप उसके उलट बयान दे देते हैं। इसे फॉक्स और जोर-जोर से बजाता है। फॉक्स को कोई शर्म नहीं आती जैसा कि किसी भी तार्किक इंसान को होनी चाहिए। वे इसे ऐसा नहीं कहते कि हम पक्का नहीं कह सकते बल्कि ये जो नजर आ रहा है वो हम बता रहे। वो इसे पूरे विश्वास के साथ कहते हैं। यानि हमारे नेता ने जो कहा है हम वही बजाएंगे। जो ट्रंप कहते हैं वही अगले दिन फॉक्स पर एंकर सीन हैनिटी कहते हुए दिख जाते हैं। मर्डाक (फॉक्स न्यूज के मालिक) और ट्रंप देश और दुनिया को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि दो बड़े खतरे एक दूसरे के करीब आ रहे हैं। एक तरफ जहां ट्रंप अपनी विध्वंसकारी नीतियों के साथ बढ़ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो हैं। जो ट्रंप के साथ इस मुकाबले में लगे हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा अपराधी कौन है। महामारी के दौर में वो शख्स कह रहा था कि ब्राजीलियन को कुछ नहीं होगा। ये बस सर्दी है। ब्राजील के लोगों की प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी है। आज ब्राजील में हालात बहुत ही खराब है। खासतौर पर स्लम और उन इलाकों में जहां सरकार ने लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया है। अमेजन के जंगलों का जो हाल पिछले 15 साल में किया गया है उसके चलते अमेजन जल्द ही सबसे बड़े कॉर्बन अवशोषक की जगह सबसे बड़े Co2 उत्सर्जक में बदल जाएगा। ये सिर्फ ब्राजील के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरनाक होगा।

हमारे पास एक तरफ उत्तर में एक शख्स है जो देश को बर्बाद करने के लिए जो कुछ कर सकता है कर रहा है तो दूसरी तरफ दक्षिण में भी ऐसा शख्स है जो कम नहीं है। मुझे इस बारे में अच्छे से पता है क्योंकि मेरी पत्नी ब्राजील की हैं। वहां से खबरें आ रही हैं वे चौकाने वाली हैं। इस महामारी को लेकर दुनिया के देशों में अलग-अलग तरीके से मुकाबला किया। चीन ने लॉकडाउन किया और एक हद तक इस पर काबू पा लिया है। ताइवान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर ने इस पर काफी अच्छे से काम किया। अमेरिका को इन देशों से सीखना चाहिए। खासतौर पर जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल से, जो कि ऐसे मौके पर जर्मन लोगों के सामने तथ्यों को सामने रख रही हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेकिन ऐसे बुरे दौर में भी जो मुझे उम्मीद दिखती है वो ये है कि लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं। डॉक्टर और नर्सेज संसाधनों की कमी के बावजूद इस कठिन समय में काम कर रहे हैं। ये एक सकारात्मक संकेत है। मुझे अपने बचपन की याद है जब नाजी पूरी दुनिया में फैल रहे थे। एक के बाद एक जीत से ऐसा लगता था कि इन्हें रोका ही नहीं जा सकता। उस समय अमेरिका के नीति नियंता ये सोचने में लगे थे कि युद्ध के बाद दुनिया दो हिस्सों में होगी। एक अमेरिका के कब्जे वाली और दूसरी जर्मनी के कब्जे की दुनिया। ये एक डरावना विचार था लेकिन वो भी खत्म हो गया। अमेरिकी गृह युद्ध को याद कीजिए जब आजादी के योद्धा अलबामा में काले मजदूरों को वोट डालने के लिए उत्साहित करने पहुंच रहे थे। बावजूद इसके कि उनके लिए मौत का खतरा था। ऐसे उदाहरण हमें याद दिलाते हैं कि इंसानों ने क्या किया है और यही हमें उम्मीद दिलाते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement