प्रवीण सिंह-
‘ओपनहाइमर’ देखकर मैं एक ही निष्कर्ष पर पहुंचा कि विज्ञान के साथ नैतिकता बहुत जरूरी है। कोई तकनीक एक बार अस्तित्व में आ गई तो फिर वह कैसे इस्तेमाल होगी, कोई नहीं जानता। 300-350 साल में फिजिक्स में जो विकास हुआ, उसका चरम ‘फैटमैन और ‘लिटिल मैन’ थे।
एक बार न्यूक्लियर बम विकसित हो जाने के बाद इसे बनाने वाले के हाथ में कुछ नहीं रह गया। उसे सिर्फ इसलिए ट्रॉयल का सामना करना पड़ा क्योंकि वह अब अपने ही विकसित वेपन के इस्तेमाल को गैर जरूरी मानता था।
हथियार विकसित करने वाले लगभग सभी आविष्कारकों को जीवन भर पश्चाताप की आग में जलना पड़ा। ओपनहाइमर हों, अल्फ्रेड नोबेल हों या मिखाइल क्लासिनकोव।
विज्ञान और तकनीक के साथ अगर नैतिकता जुड़ती है तो न्यूक्लियर पावर को न्यूक्लियर एनर्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। वरना वह महाविनाशक साबित होगी। नोबेल ने डायनामाइट खोजा। हजारों जानें ली। लेकिन दूसरी ओर डायनामाइट ने कठोर चट्टानें उडाकर सड़कें बनाने और रेलवे ट्रैक बिछाने में मदद की।
अभी एकदम लेटेस्ट तकनीक है जीन एडिटिंग। इससे कई अनुवांशिक बीमारियां ठीक हो सकती हैं। लेकिन इसका इस्तेमाल डिजाइनर इंसान बनाने में भी हो सकता है।
इसके अलावा AI तकनीक की भी बात कर लेते हैं। इसे विकसित करने वाला अब कह रहा है कि इससे बहुत बड़ा खतरा है। जो कि दिख भी रहा है। डीप फेक एडिटिंग इसी का हिस्सा है। लेकिन अब मामला इसे विकसित करने वाले के हाथ से निकल चुका है। विज्ञान और तकनीक का यूज कैसे करना है, हमें ये सीखना चाहिए। उसके लिए एक नैतिक मूल्य विकसित किए जाने चाहिए। कानून की बजाए नैतिक मूल्य इसलिए क्योंकि नैतिकता ज्यादा प्रभावी टूल है। लेकिन इसे धर्म की नैतिकता न समझा जाए।