रामशंकर सिंह-
सबसे पहले दि टेलिग्राफ, हिंदू , उसके बाद डेक्कन हेराल्ड और न्यू इंडियन एक्सप्रेस फिर गुजरात समाचार , दैनिक भास्कर, इंडिया टुडे और अब आउटलुक का परिवर्तित रूप सामने आया है। धीरे धीरे हिम्मत और ग़ैरत जाग भी सकती है जैसे चेतन भगत की जगी या फिर ….. देखते हैं कि मीडिया में कितना कुछ बचा है या सब नष्ट हो गया।
एक बात गाँठ बांध लें परिवर्तन किसी मीडिया का मोहताज नहीं होता। साथ आओ तो अच्छा और न आओ तो और भी अच्छा ! आपात्काल के समय भी इक्का दुक्का अपवादों को छोड़कर सारी मीडिया इंदिरा गांधी के साथ थी और जैसे ही चुनाव हुये अमृतसर से कोलकाता तक इंदिरागांधी साफ हो गईं।
सुरेश प्रताप सिंह-
चर्चित पत्रिका “आउटलुक” के कवर पेज को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि खतरा कितना गंभीर है. सरकार ही खो गई है.
सब कुछ याद रखा जाएगा… दुनिया के पत्रकारिता के इतिहास में वर्ष 2021 के भारत को हमेशा याद रखा जाएगा. एक ऐसी सरकार जिसने साल 2014 में “अच्छे दिन” लाने का वादा किया था. उसके बाद सात साल में धीरे-धीरे स्थिति यह हो गई की अस्पताल में बेड, आॅक्सीजन और दवाई के अभाव में लोग दम तोड़ने लगे. गंगा नदी में सैकड़ों शवों को बहते हुए लोगों ने देखा, जिसे कौआ, चील, कुत्ते और सियार नोचते रहे.
कोरोना से बीमार मां-बाप को बचाने के लिए आॅक्सीजन चाहिए और इसके लिए बच्चों को इतने घिनौने समझौते करने पड़ रहे हैं कि उसकी कल्पना से ही रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं. ऐसी खबरें मिल रही हैं, जिसे लिखा नहीं जा सकता. अस्पताल में भर्ती बीमार पति के सामने ही पत्नी का दुपट्टा खींचा जा रहा है और असहाय पति अपनी आंखों के सामने सब कुछ देखता रह जाता है. यह कैसा “न्यू इंडिया” है ? स्कील इंडिया का सच सामने आ गया है. इसकी तो कभी लोगों ने कल्पना भी नहीं की थी. मुर्दों को कंधा देने के लिए भी लोग रुपये ले रहे हैं. श्मशान में कफन की चोरी हो रही है.
संगीतकार पंडित राजन मिश्र जिन्हें भारत सरकार ने सम्मानित किया था, वे अस्पताल में आॅक्सीजन और दवाई के अभाव में दम तोड़ दिए. उसके बाद उनके नाम से बनारस में बीएचयू के स्टेडियम में 750 बेड का कोविड अस्पताल बनाया गया. उनके बेटे रजनीश मिश्र ने कहा कि हमें दु:ख है कि मेरे पिताजी आॅक्सीजन के अभाव में अस्पताल में दम तोड़ दिए. अब वे वापस नहीं आ सकते. “विकास” की पहली शर्त है कि लोगों को पहले अस्पताल में बेड, दवाई और आॅक्सीजन उपलब्ध हो.
उनका वक्तव्य यह साबित करता है कि “विकास” की हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं ? बनारस में 300 से अधिक घरों, पुस्तकालय को जमींदोज करके मुक्तिधाम बन रहा है. इसके लिए कई मंदिर भी तोड़े गए. मणिकर्णिका घाट पर आधुनिक श्मशान गृह बनाने की कवायद चल रही है. गंगा उसपार अब भी “रेत की नहर” बन रही है. इसमें 8-10 जेसीबी रात-दिन बालू की खोदाई कर रही हैं. सबको पता है कि एक माह बाद बारिश में जब गंगा का जलस्तर बढ़ेगा तो रेत की नहर जलधारा में बह जाएगी. मूर्तियां, मंदिर और नया संसद भवन तो जिंदगी बची तब बाद में भी बन सकता है. चर्चित पत्रिका “आउटलुक” के कवर पेज को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि खतरा कितना गंभीर है. सरकार ही खो गई है.
श्याम सिंह रावत-
क्या यह माना जाये कि देश में सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली पत्रिका ‘इंडिया टुडे’ के मालिक और पिछले सात साल से मोदी की गोदी में बैठकर चाटुकारिता करते रहे अरुण पुरी की आत्मा जाग गई है या यह उनकी कोई नई चाल है?
क्या अरुण पुरी का हृदय परिवर्तन हो गया है जो वे इन सात वर्षों में पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करने वाली सामग्री अपनी पत्रिका में प्रकाशित कर रहे हैं? क्या कारण है कि वे मोदी सरकार की कोरोना संकट से निपटने में विफलता और बीमारी से बेमौत मरने वाले निर्दोष लोगों की वृद्धि से द्रवित होकर ‘नाकाम सरकार’ शीर्षक वाली विषय-वस्तु के साथ एक अंक छापने को तैयार हो गये हैं?
क्या यह मोदी के डूबते जहाज में से सबसे पहले भागने वाले चूहे का संकेत है? उनके ‘इंडिया टुडे’ समूह के टीवी चैनलों की नीतियों में ऐसा परिवर्तन देखने में अभी तक तो नहीं आया है तो फिर इसे क्या कहेंगे?
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