गरवारे संस्थान में पेड न्यूज़ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
मुम्बई। पेड न्यूज कोई जुर्म नहीं है बल्कि यह सहकारिता का सिद्धान्त है। किसी भी मिडिया समूह को संचालित करने के लिए विज्ञापनों की जरुरत होती है। बदलते वक्त में एडिटोरियल ने एडवरटोरियल के पथ से गुजरते हुए पेड न्यूज़ की शक्ल अख्तियार कर ली है , लेकिन यह जरूरी नहीं है कि जिस चीज का ज्यादा विज्ञापन किया जाये वह उतनी हीबेहतर भी हो । डॉ रामजी तिवारी ने रविवार को मुम्बई विश्वविद्यालय के गरवारे संस्थान सभागार में आयोजित परिचर्चा में उक्त विचार व्यक्त किए।
गरवारे के हिंदी पत्रकारिता विभाग की ओर से संचार-संवाद श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित इस परिचर्चा में काशी विद्यापीठ स्थित मदनमोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान के पूर्व डीन डॉ राममोहन पाठक ने पेड न्यूज़ परम्परा को पश्चिमी देशों से आयातित बताते हुए अमेरिका और वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को जिम्मेदार बताया । डॉ पाठक के मुताबिक न्यूज़ खरीदी या बेची नहीं जा सकती लेकिन उसमे मिलावट की जा सकती है।
विषय प्रतिपादन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सरोज त्रिपाठी ने कहा कि आज के युग में चुनाव व्यवस्थापन के लिए पेड न्यूज़ अनिवार्य जैसी लगने लगी है इस व्यवस्था को संचालित करने के लिए अधिकतर काले धन की आवश्यकता पड़ती है।
इस परिचर्चा में वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन सरल, सैयद सलमान, ओमप्रकाश तिवारी और आफ़ताब आलम ने भी अपने विचार व्यक्त किये। संचालन ललिता गुलाटी ने किया जबकि डॉ वागीश सारस्वत ने आभार प्रदर्शन किया। दीपक कुमार सिंह, श्वेता भट्ट, राकेशमणि तिवारी, राजदेव यादव, राहुल दुबे, किरण रावल, श्याम यादव, अब्दुल हकीम, संजीत लहरी, विकास सिंह, रवि मिश्रा, लल्लन गुप्ता, स्वप्निल सुरवाड़े, तबस्सुम शाह, आदि ने परिचर्चा में सक्रिय भागीदारी की।
मुम्बई विद्यापीठ स्थित गरवारे संस्थान के हिंदी, अंग्रेजी और मराठी पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों के साथ उर्दू विभाग से संबद्ध पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों ने इस संगोष्ठी में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज करायी।