Anil Kumar Choudhary : कभी सोचा ही नहीं था कि अपना ही संगठन हम लोगों के साथ अमानवीयता के इस स्तर तक उतर आएगा. 22 वर्ष पांचजन्य में आए हो गए. बुरे से बुरे दिनों में साथ निभाया. आज कंपनी के अच्छे दिन आ गए तो सभी पुराने साथी को एक एक कर निकाला जा रहा है. पिछले महीने जब चार पांच साथी को जबरन निकाल दिया गया तब सभी मित्र चिंतित हो गए.
जब हम सभी को कोई रास्ता न सूझा तो न्याय की आखरी उम्मीद के रूप में संगठन प्रमुख मा. भागवत जी एवं संघ के सभी वरिष्ठ अधिकारी को सभी बातों से अवगत कराते हुए हस्ताक्षर युक्त पत्र भेजा गया. न्याय की गुहार का असर अभी तक तो हुआ नहीं, हां, उल्टे 15 दिसम्बर को प्रबंध निदेशक एवं महाप्रबंधक ने अपने कक्ष में बुलाकर कहा कि किसी को पत्र भेजने का कोई फायदा नहीं, इस रिजायन पत्र पर अभी यहीं हस्ताक्षर करो.
मैं हैरान परेशां अनुरोध करता रहा कि साहब 52 वर्ष की उम्र में अब कौन नौकरी देगा. लेकिन मेरी एक न चली. कहा गया कि इस पत्र पर हस्ताक्षर करना ही पड़ेगा नहीं तो हम तुम्हें भी औरों की तरह टर्मिनेट कर देंगे. मैंने हस्ताक्षर नहीं किया और अगले दिन मुझे टर्मीनेट कर दिया गया. मैं तो चौराहे पर आ गया. क्या करूँ? कहाँ जाऊं? सामने परिवार का दायित्व और दूसरी तरफ संगठन का ऐसा व्यहार!
पांचजन्य में कार्यरत रहे अनिल कुमार चौधरी के फेसबुक वॉल से.