एक भक्त ने यशवंत को ‘कुत्ता, कमीना और सूअर’ कहा…. देखें फिर क्या हुआ!

Yashwant Singh : एक गालीबाज भक्त का माफीनामा देखिए…. वैसे, भक्त भी मनुष्य ही होते हैं। अगर वे क्षमा दिल से मांग लेते हैं तो उन्हें माफ कर देना चाहिए। मैंने माफ किया शिवा! वैसे भी, जिन शब्दों को तुम गाली मानकर मुझे कहे हो, उन शब्दों के प्रतीक रीयल जीवों से मैं बेहद प्यार …

तो इस कारण RSS वाले आदिवासियों को वनवासी कहते हैं!

आरएसएस का आदिवासियों को वनवासी कहने का षड्यंत्र… यह सर्वविदित है कि आरएसएस हमेशा से आदिवासियों को आदिवासी न कह कर वनवासी कहती है। इसके पीछे बहुत बड़ी चाल है जिसे समझने की ज़रूरत है। यह सभी जानते हैं कि हमारे देश मे विभिन्न विभिन्न समुदाय रहते हैं जिनके अपने अपने धर्म तथा अलग अलग …

खुशफहमी की शिकार भाजपा को आईना दिखाएंगे कार्यकर्ता!

भले ही भारतीय जनता पार्टी और उसकी मातृ संस्था आरएसएस खुद अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई है कि उसके कार्यकर्ता तथा स्वयं सेवक पार्टी व सरकार की नीतियों से खुश हैं। हालांकि वे कितने प्रसन्न हैं, यह उनका दिल ही जानता है। आपसी बातचीत में उनका दर्द छलक भी पड़ता है। भ्रष्टाचार पर जीरो …

शीर्षासन की मुद्रा में संघ!

Dr. Ved Pratap Vaidik : शीर्षासन की मुद्रा में संघ… राष्ट्रीय स्वयंसवेक के सरसंघचालक मोहन भागवत के भाषण में मैं तीसरे दिन नहीं जा सका, क्योंकि उसी समय मुझे एक पुस्तक विमोचन करना था लेकिन आज बड़ी सुबह कई बुजुर्ग स्वयंसेवकों के गुस्सेभरे फोन मुझे आ गए और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मोहन भागवत …

उन्नीस का चुनाव बीजेपी जीत गई तो हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संविधान संशोधन हो जाएगा! देखें वीडियो

पुलिस महकमें में ऊँचे ओहदे पर तैनात अमिताभ ठाकुर जो विगत में भी लगातार विवादित टिप्पणिया करते रहे हैं, इसी क्रम में इन्होंने कल 28 अगस्त 2014 को फेसबुक महात्मा गाँधी एवं महिला समाज पर बेहद ही आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए कहा कि बापू “गैर औरतों के साथ नंगे अथवा अन्यथा सार्वजनिक रूप से सोते थे” और महात्मा गाँधी विवाहित और अविवाहित महिलाओ के साथ शारीरिक संबध बनाया करते थे। कल से इस पोस्ट पर तमाम सरकारी और गैरसरकारी लोग राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर घिनौनें लेख लिख रहे हैं जिसमें यहाँ तक लिखा गया कि वे गाँधी को अपना राष्ट्रपिता मानने से इनकार करते हैं।

एक संप्रभु राष्ट्र को पर्दे के पीछे से हांकती अदृश्य शक्ति

यह प्रश्न पहले भी कई बार सार्वजनिक बहस के केंद्र में आ चुका है कि क्या सप्रभुता सम्पन्न भारतीय गणराज्य को दो भिन्न-भिन्न शक्तियां संचालित कर सकती हैं? एक, संविधान सम्मत और दूसरी अंसवैधानिक। संवैधानिक व्यवस्था के तहत निश्चित प्रक्रिया का पालन करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार के विषय में सभी जानते हैं लेकिन बहुत …

नोएडा पुलिस ने संघ विचारक और प्रवक्ता राकेश सिन्हा को जबरन उठा लिया

Sheetal P Singh : हेडब्रेकिंग न्यूज़… दलित जैसा दिखने भर पर (दुबले पतले साँवले, मेहनतकश पर भोजनविहीन) संघी विचारक राकेश सिन्हा को योगी जी की पुलिस धर ले गई! बाल बाल बचे क्योंकि यूपी में तो आजकल एनकाउंटर का सीज़न चल रहा है! हाँफते काँपते मोदी जी और योगी जी को खबर किये ट्वीट से! …

क्या आरएसएस के किसी आदमी ने ब्रिटिश हुकूमत से लड़ाई नहीं लड़ी?

Urmilesh Urmil : ‘आप’ वाले बीच-बीच में तमाम तरह के ग़लत फैसले और मूर्खताएं भी करते रहते हैं पर धीरे-धीरे उनमें कुछ राजनीतिक-प्रौढ़ता भी आ रही है। दिल्ली विधानसभा की गैलरी में में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले अनेक महान् योद्धाओं और नेताओं के कुल 70 चित्र लगे हैं। उनमें एक चित्र महान् योद्धा टीपू सुल्तान का भी है।

मोदी और तोगड़िया : ये जंग हिंदू चहरे के लिए है!

देश में इन दिनों एक सवाल सबके पास है कि प्रवीण तोगड़िया और बीजेपी सरकार के बीच आखिर तकरार है क्या? क्या वजह है कि तोगड़िया ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और क्या वजह है कि वो ये कह रहे हैं कि एनकाउंटर की साजिश रची जा रही है। तो जरा लौटिए 2017 दिसंबर के महीने में, क्यों कि संघ से जुड़े सूत्र कहते हैं कि विश्व हिंदू परिषद जो कि संघ की अनुषांगिक शाखा है, इसके इतिहास में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव करवाए गए। इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि संघ के भीतर ही दो खेमे बन गए थे। एक खेमा चंपत राय को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहता है तो दूसरा खेमा प्रवीण तोगड़िया को अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में देखना चाहता था। लिहाजा तय किया गया कि इसके लिए चुनाव करवाए जाएंगे।

कांग्रेस के दिग्गी राजा संघ के करीबी शंकराचार्य की शरण में पहुंचे! (देखें वीडियो)

मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा पहुंचे हरिद्वार. उनके साथ संत प्रमोद कृष्णम भी थे जो कांग्रेस के करीबी माने जाते हैं. ये दोनों कनखल स्थित जगतगुरु आश्रम पहुंचे. इन लोगों ने जगतगुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम महाराज से मुलाकात की. जगतगुरु शंकराचार्य को आरएसएस का बेहद करीबी बताया जाता …

संघी वर्तमान को भी तोड़-मरोड़ देते हैं! (संदर्भ : गौरी लंकेश को ईसाई बताना और दफनाए जाने का जिक्र करना )

Rajiv Nayan Bahuguna : इतिहास तो छोड़िए, जिस निर्लज्जता और मूर्खता के साथ संघी वर्तमान को भी तोड़ मरोड़ देते हैं, वह हतप्रभ कर देता है। विदित हो कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ इलाकों में गंगा को गंगे, गीता को गीते, नेता को नेते और पत्रिका को पत्रिके कहा-लिखा जाता है। तदनुसार गौरी लंकेश की पत्रिका का नाम है- लंकेश पत्रिके। इसे मरोड़ कर वह बेशर्म कह रहे हैं कि उसका नाम गौरी लंकेश पेट्रिक है। वह ईसाई थी और उसे दफनाया गया। बता दूं कि दक्षिण के कई हिन्दू समुदायों में दाह की बजाय भू-समाधि दी जाती है। मसलन आद्य शंकराचार्य के माता पिता की भू-समाधि का प्रकरण अधिसंख्य जानते हैं।

संघियों की संकीर्ण मानसिकता देखिए

Priyabhanshu Ranjan : संघियों की संकीर्ण मानसिकता देखिए… ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के 75 साल पूरे होने के मौके पर RSS के प्रचारक रहे भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने हमेशा की तरह अपने भाषण (लफ्फाजी) में जवाहर लाल नेहरू का कहीं कोई जिक्र नहीं किया। न ही इशारों में कुछ कहा कि आजादी की लड़ाई में नेहरू का भी योगदान था। मोदी ने अपने भाषण में इस बात का भी जिक्र करना जरूरी नहीं समझा कि ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के बंबई अधिवेशन में 8 अगस्त 1942 को पारित हुआ था। भला, अपने मुंह से कांग्रेस का नाम कैसे ले लेते ‘साहेब’?

डा. आंबेडकर को ठिकाने लगाने की आरएसएस की एक और कोशिश

Kanwal Bharti : डा. आंबेडकर को ठिकाने लगाने की आरएसएस की एक और कोशिश…  दूरदर्शन पर खबर थी, रामानुजाचार्य की जयंती पर, प्रधानमंत्री मोदीजी ने कहा है कि रामानुजाचार्य के दर्शन से डा. आंबेडकर भी प्रभावित थे. यह जुमलेबाज़ मोदी जी का झूठ नहीं है, बल्कि यह वह एजेंडा है, जिसे आरएसएस ने डा. आंबेडकर के लिए तैयार किया है. इस एजेंडे के दो बिंदु हैं, एक- डा, आंबेडकर को मुस्लिम विरोधी बनाना, और दो, डा. आंबेडकर को हिन्दूवादी बनाना. वैसे, उन्हें मुस्लिम-विरोधी बनाना भी हिन्दूवादी बनाना ही है. यह काम वो नब्बे के दशक से ही कर रहे हैं.

हितेश शंकर जैसी स्पष्टता बीजेपी के लिए काम कर रहे पत्रकारों / प्रचारकों में कभी नहीं देखी

Prashant Rajawat : किसी भी राजनीतिक दल के मुखपत्र, अख़बार, पत्रिकाएं और वेबसाइट। इनमे काम करने वाले पत्रकार निश्चित ही अपने दल के लिए प्रचारक की भूमिका निभाते हैं। इसमें गलत भी कुछ नहीं यहीं इन पत्रकारों का कर्तव्य है। पर जब ये स्वतंत्र पत्रकार की भूमिका में खुद को प्रस्तुत करते हैं पार्टी सेवा से इतर तब पचता नहीं मुझे। इस मामले में पाञ्चजन्य सम्पादक हितेश शंकर जी का जवाब नहीं। वर्ष 2013 में नौकरी की तलाश करते हुए पाञ्चजन्य पहुंचा था वहां जगह निकली थी।

झूठ की फैक्ट्री तो आप चला रहे हैं राकेश सिन्हा जी!

आरएसएस विचारक प्रोफेसर राकेश सिन्हा जी ने बीबीसी हिन्दी सेवा को दिये साक्षात्कार में यह दावा किया है कि -“संघ में कोई साधारण से साधारण कार्यकर्ता भी जातिवादी व्यवहार नहीं करता है.” सिन्हा ने यह दावा मेरे इस आरोप के जवाब में किया है, जिसमें मैने आरएसएस के लोगो द्वारा मेरे साथ किये गये जातिगत भेदभाव की कहानी सार्वजनिक की. मैं फिर से दौहरा रहा हूं कि- “आरएसएस एक सवर्ण मानसिकता का पूर्णत: जातिवादी चरित्र का अलोकतांत्रिक संगठन है, जो इस देश के संविधान को खत्म करके मनुस्मृति पर आधारित धार्मिक हिन्दुराष्ट्र बनाना चाहता है.”

लोकसभा टीवी पर अब आरएसएस को महान बताने का कार्यक्रम चलता रहता है…

Dilip Khan : लोकसभा टीवी मुझे साल भर पहले तक अच्छा लगता था। मैं दूसरों को सजेस्ट करता था कि देखा करो। लेकिन इन दिनों ये चैनल बीजेपी भी नहीं बल्कि संघ का मुखपत्र बन गया है। जब-तब RSS को इस पर महान बताने का कार्यक्रम चलता रहता है।

संघ के मुताबिक टीवी पर ब्रेन लेश डिसकसन, इसमें शामिल होते हैं अपठित पत्रकार जिन्हें भारतीय संस्कृति का ज्ञान नहीं (देखें वीडियो)

मऊ : भारत में चाहें जो बड़ी समस्या चल रही हो, सूखा हो, महंगाई हो, भ्रष्टाचार हो लेकिन आरएसएस वालों का हमेशा एक राग बजता है. वह है राग मुसलमान. घुमा फिरा कर कोई ऐसा मुद्दा ले आते हैं जिससे मुसलमानों को चुनौती दी जा सके और पूरे भारत की बहस इसी मसले पर शिफ्ट किया जा सके. दुर्भाग्य से मीडिया का बड़ा हिस्सा भी इसी उलझावों में बह जाता है और भाजपा-संघ का भोंपू बनते हुए मूल मुद्दों से हटते हुए इन्हीं नान इशूज को इशू बना देता है. हालांकि संघ नेता फिर भी टीवी वालों को बख्शते नहीं और कहते हैं कि चैनलों पर ब्रेनलेस डिसकशन चलती है और इसमें अपठित पत्रकार भाग लेते हैं जिन्हें भारतीय संस्कृति का ज्ञान नहीं. मतलब कि अगर संघ का चले तो वो सारे चैनल बंद करा के सिर्फ एक संघ नाम से चैनल चलाएं और उसमें जो कुछ ज्ञान दिया जाएगा, उसे ही प्रसाद के रूप में पाने के लिए देश भर के दर्शक बाध्य होंगे.

भिंडरावाले और गोडसे के कितने पूजने वालों को देशद्रोह में जेल भेजा!

जेएनयू प्रकरण पर कुछ सवाल हैं जो मुंह बाए जवाब मांग रहे हैं। मालूम है कि जिम्मेदार लोग जवाब नहीं देंगे, फिर भी। लेकिन उससे पहले नोट कर लें-

1. देश को बर्बाद करने की कोई भी आवाज़, कोई नारा मंजूर नहीं। जो भी गुनाहगार हो कानून उसे माकूल सजा देगा।
2. कोई माई का लाल या कोई सिरफिरा संगठन न देश के टुकड़े कर सकता है न बर्बाद कर सकता है। जो ऐसी बात भी करेगा वो यकीनन “देशद्रोही” है।
3. किसी नामाकूल से या देशभक्ति के किसी ठेकेदार से कोई सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।
4. कोई भी किसी भी मुद्दे पर असहमत है तो ये उसका हक़ है। हां कोई भी। कोई माई का लाल असहमति को “देशद्रोह” कहता है तो ये उसकी समझ है।

इतने खराब अनुभव के साथ पांचजन्य से विदा लूंगी, कभी सोचा न था : अनुपमा श्रीवास्तव

Anupama Shrivastava : मैंने 1992 में पांचजन्य में अपनी सेवा आरंभ की थी। उन दिनों तरुण विजय जी संपादक हुआ करते थे। तब पांचजन्य का इतिहास पढ़ते हुए बड़ा गर्व महसूस होता था कि अटल जी, भानु प्रताप शुक्ल जी, यादव राव जी, देवेन्द्र स्वरुप जी और न जाने कितनी महान हस्तियों ने संपादक बनकर कर यहां काम किया। यहां काम करते हुए हमें लगता था कि हम भी एक मिशन में संघ कार्य कर रहे हैं। कभी लगा ही नहीं कि हम नौकरी कर रहे हैं। एक परिवार के नाते लड़ते झगड़ते 23 साल इस संस्थान में बिता दिए। लेकिन कभी सोचा नहीं था कि इतने ख़राब अनुभव के साथ पांचजन्य से विदा लूंगी। एक ऐसे संपादक के साथ 3 साल काम किया जिसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मुझे बुलाता और नमस्ते करता और कहता कि कल से आपकी सेवा समाप्त। कम से कम गर्व तो होता कि हितेश जी ने संपादक पद की गरिमा रखी। लेकिन अफ़सोस, पाञ्चजन्य का संपादक अब प्रबंधन का कर्मचारी बन गया है।

कभी सोचा नहीं था कि पांचजन्य हम लोगों के साथ अमानवीयता के इस स्तर पर उतर आएगा

Anil Kumar Choudhary : कभी सोचा ही नहीं था कि अपना ही संगठन हम लोगों के साथ अमानवीयता के इस स्तर तक उतर आएगा. 22 वर्ष पांचजन्य में आए हो गए. बुरे से बुरे दिनों में साथ निभाया. आज कंपनी के अच्छे दिन आ गए तो सभी पुराने साथी को एक एक कर निकाला जा रहा है. पिछले महीने जब चार पांच साथी को जबरन निकाल दिया गया तब सभी मित्र चिंतित हो गए.

मोदीजी, नागपुर में बैठे पेशवा लोग बहुत डेंजरस हैं, उन्होंने चुनाव न जिता पाने पर आडवाणी जी को नहीं छोड़ा

Dilip C Mandal :  नरेंद्र मोदी साहेब, ये यूपी है यूपी. उत्तर के पेरियार ललई सिंह यादव की मिट्टी है. मान्यवर कांशीराम की प्रमुख कर्मभूमि. महामना रामस्वरूप वर्मा और चौधरी चरण सिंह का सूबा. वैसे तो यह कबीर और रैदास की भी जन्मभूमि है. इधर 2017 में भी आपके लिए ठीक नहीं है. यहां का मूड आज आप देख ही चुके हैं. वैसे, मुझे नहीं मालूम कि यूपी से पहले के जब आप सारे विधानसभा चुनाव हार चुके होंगे, तो RSS केंद्र में नेतृत्व परिवर्तन कर चुका होगा या नहीं. नागपुर में बैठे पेशवा लोग बहुत डेंजरस हैं. उन्होंने चुनाव न जिता पाने पर आडवाणी जी को नहीं छोड़ा, तो आप क्या चीज हैं.

बीजेपी महासचिव राम माधव ने मोदी की लाहौर यात्रा पर संघी गोबर डाल दिया

Mahendra Mishra : भारत, पाक और बांग्लादेश एक ही जिगर के टुकड़े हैं। क्रूर हालात ने इन तीनों को एक दूसरे से अलग कर दिया। इनके बीच दोस्ती और मेल-मिलाप हो। एकता और भाईचारा का माहौल बने। अमन और शांति में विश्वास करने वाले किसी शख्स की इससे बड़ी चाहत और क्या हो सकती है । इस दिशा में किसी पहल का स्वागत करने वालों में हम जैसे लाखों लोगों समेत व्यापक जनता सरहद के दोनों तरफ मौजूद है। इसी जज्बे में लोग प्रधानमंत्री मोदी की लाहौर यात्रा का स्वागत भी कर रहे हैं। लेकिन इस यात्रा का क्या यही सच है? शायद नहीं। यह तभी संभव है जब मोदी जी नागपुर को आखिरी प्रणाम कह दें।

संघ ने बिहार हार का ठीकरा मीडिया पर फोड़ा, पढ़ें क्या छपा है ‘पांचजन्य’ में

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस यानि संघ के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ के एक आलेख में मीडिया पर पूर्वाग्रह का आरोप लगाया गया है. आरएसएस समर्थित जर्नल में बुद्धिजीवियों द्वारा अवार्ड वापसी की घटनाओं और केरल हाउस गोमांस मामले को मीडिया द्वारा अधिक उछाले जाने का आरोप लगाया गया है. इसमें दावा किया गया है, ‘इन दिनों टीवी देखने वालों को ऐसा लगता होगा कि देश खतरे में है, सामाजिक सहिष्णुता घट रही है, गृह युद्ध जैसी स्थिति है, ऐसा कि जैसा चारों ओर रक्तपात हुआ हो.’ पांचजन्य के इस लेख में कहा गया है – ‘बिहार चुनाव के समय बनाया गया यह कृत्रिम माहौल टीवी देखने वाले किसी भी व्यक्ति को भयभीत कर देगा.’

एबीपी न्यूज़ पर संबित पात्रा के साथ राकेश सिन्हा ने तो मुनव्वर राना और अतुल अंजान को लगभग नोंच डाला था!

Sheetal P Singh : प्रो. राकेश सिन्हा ने आज RSS के ९० साल के होने और उसके राजनीतिक मंच के दिल्ली के तख़्त पर आसीत रहने के दिन गर्वोक्ति ज़ाहिर की है कि अब उनकी विचारधारा ही चलेगी और दिनोंदिन और बढ़ेगी, दुनिया इसे मान रही है, विश्व गुरू, आदि अनादि! टीवी की संध्या बहसों में वे पिछले कुछ वर्षों में संघ के विचारक के तौर पर स्थापित हैं, वामपंथ सेक्युलरिज़्म और भौतिकवाद को गया गुज़रा, इतिहास के “कूरेदान” में पड़ा मान कर ख़ारिज कर दिया करते हैं! हाल ही में एबीपी न्यूज़ पर मुनव्वर राना और अतुल कुमार अंजान को तो संबित पात्रा के साथ उन्होंने लगभग नोंच डाला था, कई बार लगा हाथापाई अब हुई तब हुई।

मीडिया भी उसकी अंगुलियों पर नाच रहा

यह ‘सुपर पंच’ है! ‘मैं हिंदुओं को मारने आया था… मुझे हिंदुओं को मारने में मजा आता है…!’ तमाम खबरों के माथे पर बैठे इस हेडिंग ने एक झटके में वह काम कर दिया, जो पिछले कई दिनों से लगातार कभी अचानक कलाम की मौत का संयोग तो उसके बरक्स सचेतन कभी याकूब को फांसी, कभी डीएनए तो कभी पोर्न जैसे शिगूफ़ों की कूथम-कुत्था नहीं कर पा रही थी…! अब ललित-गेट क्या था… व्यापमं का व्यापक घोटाला क्या था… जाति जनगणना का सवाल कहां गया… इन सब सवालों को गहरी नींद में सुला दिया जा चुका है…!

आईआईटी पर बरसा आरएसएस का मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’

आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने अब आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान को भारत विरोधी और हिन्दू विरोधी गतिविधियों का केंद्र करार दिया है। कुछ आईआईएम द्वारा सरकार के कदमों के विरोध के पीछे राजनीतिक उद्देश्य होने का जिक्र करते हुए लेख में कहा गया है कि वामदल और कांग्रेस अभी भी प्रतिष्ठित संस्थाओं पर नियंत्रण किये हुए हैं और दोनों दल संचालक मंडल और निदेशकों के जरिये एक संस्थान पर ‘वैचारिक नियंत्रण’ के संचालक (मास्टर) हैं।

‘बजरंगी भाईजान’ मोहन भागवत और उनके ”हिंदू राष्‍ट्र” को दिया गया सलमान का रिटर्न गिफ्ट है

Bajrangi Bhaijaan देखे 24 घंटे हो गए। अब इस पर लिखना सेफ रहेगा। दरअसल, कल पहले हाफ के बाद इंटरवल में मेरा सिर दर्द करने लगा था। जब फिल्‍म खत्‍म हुई तो अच्‍छा फील होने लगा। कुल मिलाकर मैं कनफ्यूज़ हो गया कि फिल्‍म ठीक थी या बुरी, अलबत्‍ता एक निष्‍कर्ष तो कल ही निकाल लिया था कि यह फिल्‍म कमाई खूब करेगी। कल से लेकर अब तक दिमाग को फ्रीलांस स्थिति में छोड़ने के बाद मैंने इस फिल्‍म के बारे में कुछ निष्‍कर्ष निकाले हैं जो सामने रख रहा हूं। हो सकता है ईद पर ऐसी बातें शोभा न दें, लेकिन सलमान भाई अगर ईद के नाम पर ही इसे बेच रहे हैं तो इसका पंचनामा भी ईद पर ही किया जाना चाहिए।

दुनिया देखी तो समझ में आया, संघ का थॉट पूरा एक गोरखधंधा

मुझे संघ की थॉट प्रोसेस नापसन्द हैं। नापसन्द क्या मुझे वो सिस्टम वाहियात लगता है दरअसल। अब पूछेंगे क्यों? क्योंकि..मैं 10 साल संघ के सरस्वती शिशु मन्दिर से पासआउट हूँ। स्कूल से बाहर निकली और जब थोड़ी दुनिया देखी तो समझ आया कि वो तो पूरा एक गोरखधंधा है। कैसे? स्कूल छोटा था। अगर दोपहर की शिफ्ट के …

केजरीवाल सरकार के मीडिया परिपत्र आरएसएस का निशाना

मीडिया के खिलाफ छह मई को जारी किए गए मानहानि संबंधी परिपत्र को तानाशाही वाला करार देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र आर्गनाइजर में अरविंद केजरीवाल सरकार की आलोचना की गयी है. इसमें कहा गया है कि यह भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनने का कथित प्रयास है जो संदेश देता है कि  सिक्के के दोनों पहलू मेरे हैं.

नसीबलाल, पेट्रोल मूल्यवृद्धि, विकसवा, काशी, संघ, शक्ति प्रदर्शन और जॉम (देखें वीडियो)

Yashwant Singh : पिछले दिनों मैं बनारस गया हुआ था तो दिल्ली वापसी के वास्ते ट्रेन पकड़ने के लिए एक मित्र की बाइक पर सवार होकर स्टेशन की तरफ जा रहा था. भेलूपुर और रथयात्रा चौराहे के बीच पहुंचा तो देखा कि अचानक सड़क पर जाम लगने लगा है. थोड़ा आगे बढ़ने पर पता चला कि तंग गलियों-पतली सड़कों के लिए कुख्यात बनारस की इस मुख्य सड़क के दाहिने हिस्से पर संघियों का कब्जा हो चुका था. यूं लंबा रेला था. लाठी कंधे पर रखे संघी कार्यकर्ता पथ संचलन या पद संचलन, जो भी होता हो, कर रहे थे. लंबी लाइन और यूं सड़क कब्जा कर शक्ति प्रदर्शन करते देखकर अचानक मेरे मुंह से निकल गया- वाह… क्या बात है, ग़ज़ब. अगर दिल्ली या किसी शहर में किसान मजूर अपनी बात रखने के लिए प्रदर्शन करने आते हैं और सड़क जाम हो जाता है तो यही संघी कहते फिरते हैं कि ऐसे जनजीवन ठप कर देना ठीक नहीं होता, कितनी परेशानी होती है सबको, कोई बीमार व्यक्ति जाम में फंस जाएगा तो क्या करेगा.. ब्ला ब्ला ब्ला.

यशवंत सिंह

आरएसएस, एल्विन टॉफलर और मोदी

अगर आपने एल्विन टॉफलर को नहीं पढा है तो पढ़ लीजिये। शुरुआत थर्ड वेब से कीजिये। क्योंकि आने वाले दिनो में मोदी सरकार भी उसी तरह टेक्नालाजी को परिवर्तन का सबसे बडा आधार बनायेगी जैसे एल्विन टाफलर की किताबों में पढ़ने पर आपको मिलेगा। डिजिटल भारत की कल्पना मोदी यू ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उनके जहन में भी एल्विन टाफलर है। दरअसल, यह संवाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भीतर स्वयंसेवको का हैं। और पहली बार सरसंघचालक मोहन भागवत को लग रहा है कि नरेन्द्र मोदी भारत की दिशा को बदल सकते हैं।

RSS के ‘ऑर्गनाइजर’ ने ये क्या छाप दिया !!

नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मीडिया मोर्चे पर एक ऐसी चूक उजागर हो गई है, जिस पर उसे भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है। संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ में जम्मू-कश्मीर का एक भाग पाकिस्तान में दर्शाया गया है। 

पूंजीपतियों की पक्षधरता के मामले में कांग्रेसी ममो के बाप निकले भाजपाई नमो!

: इसीलिए संघ और सरकार ने मिलजुल कर खेला है आक्रामक धर्म और कड़े आर्थिक सुधार का खेल : जनविरोधी और पूंजीपतियों की पक्षधर आर्थिक नीतियों को तेजी से लागू कराने के लिए धर्म पर बहस को केंद्रित कराने की रणनीति ताकि जनता इसी में उलझ कर रह जाए : सुधार की रफ्तार मनमोहन सरकार से कही ज्यादा तेज है। संघ के तेवर वाजपेयी सरकार के दौर से कहीं ज्यादा तीखे है । तो क्या मोदी सरकार के दौर में दोनों रास्ते एक दूसरे को साध रहे हैं या फिर पूर्ण सत्ता का सुख एक दूसरे को इसका एहसास करा रहा है कि पहले उसका विस्तार हो जाये फिर एक दूसरे को देख लेंगे।

संघ की उड़ान को थामना सोनिया-राहुल के बस में नहीं : पुण्य प्रसून बाजपेयी

जिस सियासी राजनीतिक का राग नरेन्द्र मोदी ने छेड़ा है और जिस हिन्दुत्व की ढपली आरएसएस बजा रही है, कांग्रेस ना तो उसे समझ पायेगी और ना ही कांग्रेस के पास मौजूदा वक्त में मोदी के राग और संघ की ढपली का कोई काट  है। दरअसल, पहली बार सोनिया गांधी और राहुल गांधी की राजनीतिक समझ नरेन्द्र मोदी की सियासत के जादू को समझ पाने में नाकाम साबित हो रही है  तो इसकी बडी वजह मोदी नहीं आरएसएस है। और इसे ना तो सोनिया-राहुल समझ पा रहे है और ना ही कांग्रेस का कोई धुरंधर। अहमद पटेल से लेकर जनार्दन  द्विवेदी और एंटनी से लेकर चिदबरंम तक सत्ता में रहते हुये हिन्दु इथोस  को समझ नहीं पाये। और ना ही संघ की उस ताकत को समझ पाये जिसे इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी ने बाखूबी समझा।

तो IIT दिल्ली के प्रमुख रघुनाथ शिवगाँवकर ने इसलिए दिया इस्तीफा

Satyendra Ps : भाजपा और संघ के लुटेरे किसी भी सही आदमी को रहने नहीं देंगे। सुब्रहमन्यम स्वामी 1972 और 1991 के बीच पढाए का मेहनताना 70 लाख रुपये देने के लिए IIT दिल्ली के प्रमुख रघुनाथ शिवगाँवकर पर दबाव बनाए हुए थे। पढ़ाते क्या होंगे पता नहीं लेकिन केन्द्रीय संस्थानों में भुगतान को लेकर कोई दिक्कत नहीं होती, सब जानते हैं! साथ ही रघुनाथ से कहा जा रहा था कि सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट अकादमी खोलने के लिए iit कैम्पस में जगह दी जाए!

Vicious Conspiracy of the Sangh Parivar to fan Communal Tensions in the North-East Delhi

The thumping electoral victory of Narendra Modi led BJP in this Lok Sabha polls has undoubtedly given fresh lease of life to the communal fascist forces in India. Needless to mention that this fascist machinery remains at work even when not in power. However, of late, the fascist brigade, at the helm of which is Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), has tried to enforce its agenda of polarisation along communal lines throughout the country, both intensively as well as extensively. Be it the Trilokpuri riots in Delhi or the frenzy surrounding the all concocted ‘love jihad’; burning down of a church in North East Delhi or the recent ‘ghar wapasi’ (conversion) campaigns, the fascist engine has been running incessantly and spewing the communal venom. The latest in line of their attacks is their unwarrantable as well as unconstitutional claim over public spaces.

आज ये कहना कि वे हमारे माल हैं, आरएसएस की बेहयाई है

सांप्रदायिकता पूंजीवाद और औद्योगिक सभ्यता की देन है। बाजार हथियाने के लिए बाजारवादी शक्तियां सांप्रदायिकता का हथकंडा अपनाती हैं। अपनी सांप्रदाकियता की धार को तेज करने के लिए वे अतीत को भी सांप्रदायिक बनाने का कुत्सित प्रयास करती हैं। इसमें कोई शक नहीं कि सामंती काल में भी मंदिर-मस्जिद ढहाए गए पर उसके पीछे सोच सांप्रदायिक नहीं विजित नरेश के सारे प्रतीकों को ध्वस्त करना था। हिंदू शासकों ने भी जब कोई राज्य जीता तो वहां के मंदिर तोड़े और पठानों व मुगलों ने भी जब कोई मुस्लिम राजा को हराया तब मस्जिदें भी तोड़ीं।

Dangerous Hindutva portents : Doordarshan as RSS’s publicity agent

By Praful Bidwai

Hindutva crossed another red line in Indian politics on October 3 when the state-owned Doordarshan news channel made a live broadcast, for the first time ever, of the Vijayadashami (Dussehra) address of a Rashtriya Swyamsevak Sangh chief.

The speech, ritually delivered annually from Nagpur, is meant to convey to swayamsevaks the thinking of the Sangh on current issues and define the RSS’s own relationship with the Bharatiya Janata Party. It is thus an internal matter of the Sangh Parivar, patently lacking any value or relevance for the general public.

विकास पाठक ने आरएसएस क्यों छोड़ा और बीबीसी ने इसे अपने यहां क्यों छापा?

विकास पाठक जेएनयू से पढ़े हैं. पत्रकार रहे हैं. इन दिनों शारदा यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं. बीबीसी संवाददाता सलमान रावी ने विकास पाठक से उनके संघ से जुड़ने से और अलग होने को लेकर विस्तार से बात की. फिर उस बातचीत को विकास पाठक की तरफ से बीबीसी की वेबसाइट पर प्रकाशित करा दिया. ऐसे दौर में जब मोदी, भाजपा और संघ को हरओर महिमामंडित करने का दौर चल पड़ा है, बीबीसी ने संघ को लेकर एक शख्स की जुड़ाव व विलगाव यात्रा को प्रकाशित कर यह साबित किया है कि चारण-भाट बनने के इस दौर में कुछ सच्चे मीडिया ग्रुप भी हैं. कम्युनिस्ट हों या संघी हों, दोनों को लेकर क्रिटिकल खबरें सामने आनी चाहिए ताकि जनता को, पाठकों को खुद फैसला करने में सहूलियत हो और उन्हें दोनों अच्छे बुरे पहलू पता रहे. नीचे बीबीसी में छपी खबर है.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया


जब निजी चैनल भागवत के संबोधन का सजीव प्रसारण कर सकते हैं तो दूरदर्शन क्यों नहीं: जावड़ेकर

DD

नई दिल्ली: कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं और नेताओं ने रविवार को दिल्ली में प्रदर्शन कर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के इस्तीफे की मांग की। पार्टी का आरोप है कि जावड़ेकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के भाषण का नागपुर से सीधा प्रसारण दिखाने के लिए दूरदर्शन को मजबूर किया था।