हितेश शंकर जैसी स्पष्टता बीजेपी के लिए काम कर रहे पत्रकारों / प्रचारकों में कभी नहीं देखी

Prashant Rajawat : किसी भी राजनीतिक दल के मुखपत्र, अख़बार, पत्रिकाएं और वेबसाइट। इनमे काम करने वाले पत्रकार निश्चित ही अपने दल के लिए प्रचारक की भूमिका निभाते हैं। इसमें गलत भी कुछ नहीं यहीं इन पत्रकारों का कर्तव्य है। पर जब ये स्वतंत्र पत्रकार की भूमिका में खुद को प्रस्तुत करते हैं पार्टी सेवा से इतर तब पचता नहीं मुझे। इस मामले में पाञ्चजन्य सम्पादक हितेश शंकर जी का जवाब नहीं। वर्ष 2013 में नौकरी की तलाश करते हुए पाञ्चजन्य पहुंचा था वहां जगह निकली थी।

इतने खराब अनुभव के साथ पांचजन्य से विदा लूंगी, कभी सोचा न था : अनुपमा श्रीवास्तव

Anupama Shrivastava : मैंने 1992 में पांचजन्य में अपनी सेवा आरंभ की थी। उन दिनों तरुण विजय जी संपादक हुआ करते थे। तब पांचजन्य का इतिहास पढ़ते हुए बड़ा गर्व महसूस होता था कि अटल जी, भानु प्रताप शुक्ल जी, यादव राव जी, देवेन्द्र स्वरुप जी और न जाने कितनी महान हस्तियों ने संपादक बनकर कर यहां काम किया। यहां काम करते हुए हमें लगता था कि हम भी एक मिशन में संघ कार्य कर रहे हैं। कभी लगा ही नहीं कि हम नौकरी कर रहे हैं। एक परिवार के नाते लड़ते झगड़ते 23 साल इस संस्थान में बिता दिए। लेकिन कभी सोचा नहीं था कि इतने ख़राब अनुभव के साथ पांचजन्य से विदा लूंगी। एक ऐसे संपादक के साथ 3 साल काम किया जिसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मुझे बुलाता और नमस्ते करता और कहता कि कल से आपकी सेवा समाप्त। कम से कम गर्व तो होता कि हितेश जी ने संपादक पद की गरिमा रखी। लेकिन अफ़सोस, पाञ्चजन्य का संपादक अब प्रबंधन का कर्मचारी बन गया है।

कभी सोचा नहीं था कि पांचजन्य हम लोगों के साथ अमानवीयता के इस स्तर पर उतर आएगा

Anil Kumar Choudhary : कभी सोचा ही नहीं था कि अपना ही संगठन हम लोगों के साथ अमानवीयता के इस स्तर तक उतर आएगा. 22 वर्ष पांचजन्य में आए हो गए. बुरे से बुरे दिनों में साथ निभाया. आज कंपनी के अच्छे दिन आ गए तो सभी पुराने साथी को एक एक कर निकाला जा रहा है. पिछले महीने जब चार पांच साथी को जबरन निकाल दिया गया तब सभी मित्र चिंतित हो गए.