नीतेश त्रिपाठी
हीरे की परख जौहरी ही जानता है… दीपांशु की शादी के लिए लड़की वाले आए. दीपांशु दिल्ली के एक बड़े मीडिया हाउस में सीनियर जर्नलिस्ट है. लड़का गांव से था और अपने बल-बूते मेहनत कर देश की राजधानी दिल्ली में पत्रकारिता करने पहुंचा था. दिल्ली को पत्रकारिता का हब माना जाता है, क्योंकि देश के लगभग सारे बड़े मीडिया हाउस वहीं से चलते हैं. दरअसल, गांव में जब किसी लड़के के घर लड़की वाले शादी का प्रस्ताव लेकर आते हैं तो पहले उसी गांव या अगल-बगल के गांव में लड़के वाले के घर और लड़के के बारे में पता लगाते हैं, इसमें ये पता लगाया जाता है कि फलां का लड़का क्या करता है? परिवार कैसा है?
मैं निजी तौर पर मानता हूं कि यह काम सही भी है, करना ही चाहिए, हर कोई करता है. ठगी का जमाना है, हर बाप अपनी लड़की के बेहतर मुस्तकबिल के लिए खोज-बीन करता है…तो लड़की वाले पहले दीपांशु के बारे में पता लगाने बगल के ही एक गांव चले गए. वहां उन्होंने अपने दूर के रिश्तेदार के वहां लड़के वाले के बारे में पता लगाना चाहा. रिश्तेदार ने खूब बताया, जमकर बताया. लड़के के परिवार की ख़ूब बुराई की. लड़के की बुराई की, रिश्तेदार ने कहा, लड़का बस कहने को पत्रकार है, हौवा है. पैसे नहीं कमाता. लड़की वाले का ये वही रिश्तेदार लड़के के बारे में बता रहा था जो 80 के दशक में कभी दीपांशु के घर से राशन-पानी ले जाकर अपना गुजारा चलाता था. आज उसके सुर बदल गए.
बहरहाल, सारी बुराई सुनने के बाद लड़की वाले दीपांशु के घर आये, लड़के को देखा, बात की और परिवार के बारे में जाना. फिर वह एक दूसरी जगह और गए और वहां भी दीपांशु के बारे में जानना चाहा तो सभी ने अच्छा बताया. दीपांशु के घर से जाने के बाद लड़की वाले आपस में ही रिश्तेदार की बताई बातों को लेकर सोचने लगे गए?
अब इस पूरी कहानी में गौर करने वाली बात यह है कि गांव के लोग या कुछ शहर के भी यही मानते हैं कि जो लड़का टीवी पर दिखता है वही पत्रकार है, बाकी सब झोल. उसे यह नहीं पता होता कि एक एंकर को टीवी पर लाने के पीछे पूरी टीम काम करती है. खबर लिखने से लेकर सब कुछ जो भी टीवी पर दिखता है सुनाई देता है उसमें पत्रकारों का रोल होता है.
दरअसल, पहले मीडिया को दो भागों में बांटा गया था, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक. प्रिंट में अखबार, मैगजीन और इलेक्ट्रॉनिक में रेडियो टीवी. लेकिन मौजूदा दौर में जो तीसरा धड़ा निकलकर आया है वो डिजिटल मीडिया है, काम खबरों का ही, लेकिन खबर को पेश करने का तरीका जुदा है. चुकी, कोई घटना के घटित होने पर अखबार में सुबह खबर पढ़ने को मिलती है. टीवी में तुरंत ब्रेकिंग चल जाएगी और लगभग यही काम डिजिटल में भी तुरंत हो जाता है, या यूं कहें कि कई बार डिजिटल में टीवी से भी पहले खबर चल जाती है. यह सब एंड्राइड मोबाइल और डाटा के सुलभ होने से और बढ़ गया है. हर हाथ मोबाइल, हर हाथ डाटा. हाल-फिलहाल में हर मीडिया हाउस डिजिटल में खुद का विस्तार कर रही है.
अब इन पूरी बातों का लब्बोलुआब यह है कि लड़की वालों का रिश्तेदार जिसने दीपांशु के बारे में लड़की के गार्जियन से जो बातें बताई उसे यह नहीं मालूम कि एक पत्रकार, पत्रकार होता है. वह न टीवी पत्रकार होता है न डिजिटल न अखबार का. उसमें खबर सूंघने की क्षमता हो तो वह पत्रकार है. वह शब्दों से खेलना जानता है तो वह पत्रकार है. लेकिन गांव में लोगों को पत्रकारिता या पत्रकार के बारे में कुछ नहीं पता. खैर, दीपांशु ने यह बात किसी को बताना, समझाना जरूरी नहीं समझा, उसे इसका कोई मलाल नहीं कि लोग उसके बारे में क्या समझते हैं या क्या सोचते हैं. क्योंकि उसे बेहतर पता है कि वह क्या है, उसकी हैसियत क्या है, वह समाज में क्या स्थान रखता है, उसकी कलम में कितनी ताकत है. वह किसके बीच खड़ा होने लायक है, वह किससे बात कर सकता है. वह खबरों के माध्यम से किसकी खटिया खड़ी कर सकता है. और ये सारी समझाइश वह लड़की के उस रिश्तेदार तक भी नहीं पहुंचाना चाहता, क्योंकि उसे पता है कि……………..हीरे की परख जौहरी ही जानता है.
(दीपांशु- राजस्थान के एक सुदूर गांव में रहता है और दिल्ली में एक बड़े मीडिया हाउस से जुड़ा हुआ है)
One comment on “पत्रकार, शादी और समाज”
बहुत अच्छा लिखा सर आपने और जो एन्ड में लिखा है हीरे की परख जौहरी ही जानता है। ये बिल्कुल सटीक बात बैठती है।