पत्रकारों की सबसे बड़ी प्रॉब्लम है कि उनको हर तीसरा पत्रकार बिका हुआ या एकदम नासमझ बेवक़ूफ़ और बेहद कम पढ़ा लिखा हुआ लगता है. एक समय था जब कुछ बड़े टीवी पत्रकार डिजिटल मीडिया को कचरा समझते थे और उसमे काम करने वालो को इडियट्स जो पत्रकार बनने के काबिल नहीं थे. आज उनमे से मैक्सिमम यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर पर ज्ञान की धारा पेलते हैं.
आज सुशांत केस में उन्हें मीडिया को गाली देने में शब्दों की कोई कमी नहीं हो रही है. ‘दिल्ली में बर्फ गिरी’ ‘स्वर्ग का द्वार’ ‘इन्द्राणी ने सैंडविच खाया’, ‘अमिताभ को आयी खांसी’ सरीखे ब्रेकिंग चलाने चलवाने वाले आज ज्ञान की गंगोत्री बने है. आरुषि केस में ‘पापी पापा’ के स्लग से १ घंटे का पैकेज चलाने चलवाने वाले, राजेश तलवार को स्टूडियो में ‘टांग’ देने वाले लोग आज सुशांत केस में मोरालिटी की दुहाई दे रहे हैं..
एक चैनल ने तो आरुषि के नाम पर किसी का ‘पोर्न’ वीडियो चलवा दिया था.. आज फेसबुक यूट्यूब पर वही नुमाईइंदे ज्ञान दे रहे हैं… एक लाइन की बात है – ज्यादा ज्ञान न बघारिये, आपका समय गया, जिसका है वो सर पर चढ़ के नाच रहा है, कल वो भी जायेगा, फिर कोई और आएगा और वो भी नाचेगा … मीडियम यहीं रहेगा… लोग बदलेंगे, पहले आपको फीडबैक नहीं मिला करता था इसलिए अभीतक आप सस्टेन कर गए, नहीं तो कहीं के लायक नहीं रहते.
बाकि बात रही पत्रकारिता की तो वो हमेशा ज़िंदा रहेगी, लोगों को जैसा कंटेंट चाहिए कहीं से भी ढूंढ के पढ़ देख लेंगे. पत्रकार आम जनता की नज़र में जोकर बन चूका है.. जो टीवी स्टूडियो से लेकर यूट्यूब चैनल तक सुबह शाम जोकरई कर रहा है और लोग चटखारा ले के TRP, व्यूज दे रहे है. जोकर से ज्यादा नहीं रह गए हैं सब. अंतर बस इतना है कि पहले के जोकर्स को पता नहीं चल पता था वो किस लेवल के जोकर हैं, आज १० मिनट के अंदर ट्विटर पर ट्रेंड हो जाता है… ट्रॉल्स नाम की प्रजाति को आप भले गाली दें, वो आपको आइना तो दिखा ही जाता है. आप चले जायेंगे वो यहीं रहेगा. उसके साथ रहने की आदत डालें नहीं तो पतली गली काफी है इंडिया में.
तो काम की बात – अपना काम करते चलें. लोग आपको पढ़ेंगे देखेंगे सुनेंगे सिर्फ तभी जब आप अच्छा काम करेंगे… आप ‘दूसरों को क्या करना चाहिए’ पे लगे रहेंगे तो लोग ‘आपको क्या करना चाहिए’ पे आ जायेंगे तब आप न इधर के रह पाएंगे न उधर के.
प्रत्यूष रंजन की फेसबुक वॉल से.