Pawan Lalchand : जीवन के छत्तीस बरस पूरे हुए… सैंतीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ… मित्रों की शुभकामनायें मोबाइल पर आने लगी हैं लगातार बारह बजते ही… लिहाजा पहली बार लगा कि फेसबुक पर लिख दूँ अपने जन्मदिन का स्टेट्स… देर रात की पारी की कुछ खबरें निपटा रहा हूँ… बेटे को सुलाने के उपक्रम में लगी जीवनसंगिनी को दूसरे कमरे में इंतजार है कि दीवार के पार चल रही मेरी खबरों की ख़ुराफ़ात खत्म हो तो रात्रि और निद्रा का मार्गप्रशस्त करते हुए अपने आने वाले साल की कुछ ख़ुराफ़ातों का इज़हार करूँ….
लेकिन कमबख़्त मोबाइल और खबर के बीच बचता क्या है बच्चे… हाँ इस दरमियाँ बाहर सुरक्षाकर्मी लगातार व्हिस्ल बजा रहा है और मुझे लग रहा है जैसे वो सुरक्षागार्ड भी मेरे जन्मदिन पर केक कटने का प्रतीक्षा में अधीर हुआ जा रहा है… बीच बीच में व्हाट्सअप और मैसेंजर किसी के होने की जिंगल सुना जा रहे हैं… केक काटना मेरे बस की बात नहीं… हाँ खबरों के खेल में नश्तर गुज़रे दिनों में चलाते रहे हैं.. लाज़िम है आने वाले वर्षों में तेवर और हमलावर होंगे…
पत्रकार पवन लालचंद के एफबी वॉल से.
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