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इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ में मजीठिया पर मैनेजमेंट का रवैया : दिलेरी की पत्रकारिता का परचम और कर्मचारियों के पेट पर लात

मस्तक यानी मास्टहेड पर अंकित है journalism of courage । मतलब दिलेरी, धैर्य, निर्भयता, पराक्रम, प्रताप, वीरता, शौर्य, शूरता, साहस, हिम्मत की पत्रकारिता। इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह इन्हीं शब्दों को अपने ध्वज-पताके-परचम पर दर्ज करवा कर उसे उठाए-लहराए चल रहा है, चलता जा रहा है। इसी को अपने हक में भुना रहा है, भुनाता रहा है और आगे भी भुनाते रहने की मंशा बांधे बैठा है। एक लिहाज से यह ठीक भी है। व्यवसाय, कारोबार, धंधे का अंतिम लक्ष्य तो लाभ-फायदा-मुनाफा कमाना ही तो होता है! लेकिन सवाल है कि इसे करने वाला है कौन? आदमी, मनुष्य, इंसान? या कोई और?

<p>मस्तक यानी मास्टहेड पर अंकित है journalism of courage । मतलब दिलेरी, धैर्य, निर्भयता, पराक्रम, प्रताप, वीरता, शौर्य, शूरता, साहस, हिम्मत की पत्रकारिता। इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह इन्हीं शब्दों को अपने ध्वज-पताके-परचम पर दर्ज करवा कर उसे उठाए-लहराए चल रहा है, चलता जा रहा है। इसी को अपने हक में भुना रहा है, भुनाता रहा है और आगे भी भुनाते रहने की मंशा बांधे बैठा है। एक लिहाज से यह ठीक भी है। व्यवसाय, कारोबार, धंधे का अंतिम लक्ष्य तो लाभ-फायदा-मुनाफा कमाना ही तो होता है! लेकिन सवाल है कि इसे करने वाला है कौन? आदमी, मनुष्य, इंसान? या कोई और?</p>

मस्तक यानी मास्टहेड पर अंकित है journalism of courage । मतलब दिलेरी, धैर्य, निर्भयता, पराक्रम, प्रताप, वीरता, शौर्य, शूरता, साहस, हिम्मत की पत्रकारिता। इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह इन्हीं शब्दों को अपने ध्वज-पताके-परचम पर दर्ज करवा कर उसे उठाए-लहराए चल रहा है, चलता जा रहा है। इसी को अपने हक में भुना रहा है, भुनाता रहा है और आगे भी भुनाते रहने की मंशा बांधे बैठा है। एक लिहाज से यह ठीक भी है। व्यवसाय, कारोबार, धंधे का अंतिम लक्ष्य तो लाभ-फायदा-मुनाफा कमाना ही तो होता है! लेकिन सवाल है कि इसे करने वाला है कौन? आदमी, मनुष्य, इंसान? या कोई और?

अगर कोई और है तो जो कर रहा है यानी मुनाफा कमा रहा है, तो ठीक कर रहा है। क्योंकि उसे मानवीय सरोकारों, कत्र्तव्यों, जिम्मेदारियों और संवेदनाओं-भावनाओं, दुख-दर्द, पीड़ा-तकलीफ, परेशानी-मुसीबत, दिक्कत, मुश्किल आदि से कोई लेना-देना नहीं है। उसे तो पैसा, धन-दौलत मिलती रहनी चाहिए, आती रहनी चाहिए। इसके लिए उसे यदि बेईमानी करनी पड़े, धोखाधड़ी करनी पड़े, अवैध-अनैतिक-अमानवीय, निकृष्ट, दुर्दांत, जानलेवा, दरिंदगीपूर्ण कृत्य-करतूत-कारनामे करने पड़ें, छल-प्रपंच, झूठ आदि किसी का भी सहारा लेना पड़े तो उसे लेशमात्र झिझक, संकोच नहीं होता है। वह पैसा बटोरने-बटोरते रहने के लिए कुछ भी कर सकता है। हां, अगर मनुष्य है तो वह लोभ-लालच, स्वार्थ की परिधि-सीमा से बाहर आकर भी सोच-समझ सकता है और अपने जैसे अन्य बहुत से लोगों की भावना, इच्छा, आवश्यकता को समझ-जान सकता है।

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पर लगता नहीं कि इंडियन एक्सप्रेस का मालिकान-मैनेजमेंट मानव जाति का हिस्सा है। क्योंकि मौजूदा वक्त में वह जो कुछ अपने कर्मचारियों के साथ कर रहा है, उससे तो साफ तौर पर साबित हो गया है वह आदमी नहीं कोई पैशाचिक जन्तु है जो दुर्दमनीय महंगाई के इस दौर में अपने उन लोगों को उनके हक से महरूम कर रहा है जिनकी मेहनत, अच्छी-ऊंची सोच, गहन मानवीय सरोकारों, सतत-निश्छल चिंतन, कर्म से उसने (मालिक/मैनेजमेंट) अपना उपरोक्त परचम ऊंचा किया है, लहराया है।

मालिक विवेक गोयनका और उनके कारकूनों-कारिंदों-चमचों ने मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लागू करने की आड़ में कर्मचारियों के वेतन में बेतहाशा कटौती कर दी है। कहां तो वेज बोर्ड के सुझावों पर अमल करते हुए कर्मचारियों के वेतन संशोधित करके बढ़ाने चाहिए थे। आज की विषम परिस्थितियों के मद्देनजर उन्हें इतनी पगार और सहूलियत देनी चाहिए थी कि वे अपने काम को और बेहतरी से अंजाम दे पाते। लेकिन यहां तो विवेक गोयनका साहब और उनके कारिंदे मैनेजरों ने उनकी मौजूदा पगार को ही इतना ज्यादा कतर दिया है कि वे औंधे मुंह धड़ाम से गिर पड़े हैं। उनका सारा बजट धराशायी हो गया है। वे समझ ही नहीं पा रहे हैं करें तो करें क्या?

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कर्मचारियों को तो आसमानी उम्मीदें थीं कि मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के मुताबिक उनके वेतन में ढाई-तीन गुना की वृद्धि हो जाएगी और वे उन लंबे अर्से से लटके-अधूरे पड़े कार्यों को पूरा कर लेंगे जिनके बिना उनके जीवन में बनी हुई खामियां-कमियां उन्हें खलती-कटोचती-चुभती रहती हैं। और महंगाई की महामारी से उन्हें थोड़ी राहत मिल जाएगी। पर अमीरी की महामहिमी ओढ़े गोयनका साहब को इसका अहसास हो भी तो कैसे? उनके लिए अभाव और अभाव में जीता आदमी तो सबसे बड़ा शत्रु-दुश्मन दिखता-लगता है। उन्हें तो इस शत्रु को हद दर्जे के अभाव में जीते देख कर बहुत आनंद मिलता है। वे तो इसी आनंद में मगन हैं, लेकिन इस आनंदमयी दुनिया से बाहर आकर कभी भी या जब कभी वे इस हकीकत से रू-ब-रू होंगे कि जिस अभावग्रस्त को वे पीड़ा के सागर में डालकर मजे ले रहे हैं, वह जब जागेगा, उठ खड़ा होगा तो उनके आनंद सागर को संघर्ष के ज्वालामुखी के हवाले कर देगा। फिर वे क्या करेंगे? इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है।

बहरहाल, इंडियन एक्सप्रेस, चंडीगढ़ में मालिक और उनके चालाक-शातिर कारिंदों ने कर्मचारियों की सेलरी को इस तरह से कम किया, घटाया है कि वे आपस में ही उलझ पड़ें। एक-दूसरे पर दोषारोपण में उलझ जाएं और  अपनी एकजुटता को बिखेर दें। मसलन, प्रोडक्शन विभाग में तकरीबन सभी कर्मचारियों की सेलरी घटाई दी है। ऐडमिनिस्ट्रेशन विभाग में आधे कर्मचारियों का वेतन कम कर दिया है और आधे को छोड़ दिया है। एडिटोरियल यानी पत्रकार कर्मचारियों में एकाध को छोड़ सबकी सेलरी में इजाफा कर दिया है। मतलब कुल 38 कर्मचारियों के वेतन में कमी की गई है और 31 को बख्श दिया गया है। बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ में मजीठिया के दायरे में आने वाले कुल 69 कर्मचारी हैं।

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एक तथ्य, या कहें तकलीफ यह है कि कई ऐसे कर्मचारियों की सेलरी में कतरब्योंत की गई है जो रिटायरमेंट की कगार पर हैं। ऐसा ही एक कर्मचारी है कमल देव। उसकी सेवानिवृत्ति में महज छह माह बचे हैं और इस चतुर्थ श्रेणी कर्मी की सेलरी नौ हजार के करीब कम कर दी गई है। कमल देव तो सदमे के समुद्र में डूब गया है। मजीठिया रिपोर्ट में स्पष्टता का अभाव: कर्मचारियों को यह और ऐसा सदमा देने की तो मालिक एवं उसके कारिंदों ने तो ठान ही रखी है, सबसे दुखद और उलझाऊ तो मजीठिया वेज बोर्ड की रिपोर्ट भी है। इस रिपोर्ट पर माथापच्ची करने वालों का कहना-मानना है कि इसके अनेक नुक्ते स्पष्ट नहीं हैं। एक ही विषय पर कहीं कुछ लिखा है तो कहीं कुछ। एक ही बात का कहीं कुछ अर्थ निकल रहा है तो कहीं कुछ। रिपोर्ट की हर बात, हर प्वाइंट स्पष्ट-साफ शब्दों-वाक्यों-शब्दावली में लिखी जानी चाहिए थी। लेकिन इस रिपोर्ट में इसका बेहद अभाव है। कर्मचारी रिपोर्ट में लिखी बातों का अपने ढंग से, अपने बेहतरी के लिए अर्थ निकाल रहे हैं और मालिकान-मैनेजमेंट के लोग अपने फायदे के हिसाब से अर्थ निकाल रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि रिपोर्ट की भाषा ऐसी होती कि कर्मचारियों को अपना हिसाब-किताब लगाने में कोई दिक्कत-उलझन नहीं होती। क्यों कि यह वेज बोर्ड तो कर्मचारियों के हित, लाभ के लिए ही बना है। पर ऐसा नहीं है। इस रिपोर्ट की उलझाऊ-अस्पष्ट भाषा-शब्दावली की हर तरफ से आलोचना हो रही है। इस बारे में कर्मचारियों और उनके संगठनों की ओर से स्पष्टीकरण की मांग की जा रही है।

भूपेंद्र प्रतिबद्ध
चंडीगढ़
09417556066

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0 Comments

  1. Kashinath Matale

    December 23, 2014 at 1:10 pm

    Thanks bhadas4media.com for publishing this news.
    Also thanks to the Bhupendra Pratibaddh.

    Bhupendraji it is correct there is so many confusion in the Majithia Wage Board Report.

    Is Wage Board me employees ke representatives revised basic ke liye barabar dhyan nahi diya. Revised basic Bahot hi kam hai. Old employees ka existing emoluemnts Revised Basic se jyada hai. Fitment ke pahale step me employees ka nukshan ho raha hai. Justice Majithia Sahab ne bhi Basic 2.5% to 3.00% Badhewala hai aisa kaha hai, aur Govt ne bhi kuch aisa hi kaha tha.
    Majithia ki report government of India ne bhi basic ke bareme as it accept kiya hai, government ne kuchh bhi sudharna nahi ki.
    (i) No employee shall get more than maximum of the revised basic.
    Is clause ka employers upyog kar rahe hai.
    Isse basic kam ho raha hai.
    Aur Aape likha hai hi Wage Board implementation ke liye correct guidelines nahi hai, yeh bilkul sahi baat hai. Ispar Govermentment kchh bhi nahi kiya. Majithia Wage Board ne sabhi ka sar dard badh diya hai.
    Ladhai to ladhi hi chahiye, chaye uska parinam jyo bhi nikle.

  2. himanshu11

    December 24, 2014 at 8:33 pm

    No employee shall get more than maximum of the revised basic.
    Se pehle Yeh bhi likha hai.
    the wages shall be fixed in the revised scale at the stage next above the existing emolument.
    Please not this.

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