पेंशन इजाफे के लिए पीएफ कमिश्‍नर के समक्ष दावा पेश करना वक्‍त का तकाजा

सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील 10013-10014 ऑफ 2016 पर 4 अक्‍टूबर 2016 को दिया है आदेश

मजीठिया की मारामारी के इस दौर में यदि कोई मीडिया कर्मी पेंशन की बात करने लगे तो मीडिया सर्कल का बहुतायत आंखें तरेरने से गुरेज नहीं करेगा। वह सवालिया लहजे में तानेबाजी पर भी उतर जाए तो कोई असहज बात नहीं होगी। क्‍योंकि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफरिशों पर किसी भी रूप में अमल नहीं हुआ है, मैनेजमेंट से इसके लिए जारी जंग अभी तक किसी मुकाम पर नहीं पहुंची है, और इसी दरम्‍यान कुछ लोग पेंशन का राग अलापने लगे हैं। निश्चित ही, यह प्रतिक्रिया स्‍वाभाविक होगी। वह क्‍यों पेंशन की मगजमारी में फंसेगा जिसे अब तक या इससे पहले कभी भी इतनी सेलरी-वेतन-पगार-मजदूरी नहीं मिली जिससे वह एक निश्चिंत जीवनयापन की कल्‍पना भी कर सके। वह तो ऐसे हालात में जीता है कि मिले-अर्जित मेहनताने से किसी तरह जीने की अनिवार्य वस्‍तुओं को हासिल कर पाता है। वह इसी उधेड़बुन में रहता है कि कब पगार की तिथि आए और सांसों को सहज ढंग से चलाने का सामान जुटा पाए। सेलरी राशि कब फुर्र हो जाती है, पता ही नहीं चलता।

मजीठिया वेज अवॉर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अचंभित करने वाला होगा

एक बार फिर सन्‍नाटे का आलम है। हर कंठ ने चुप्‍पी-खामोशी का उपकरण धारण कर रखा है। यह म्‍यूट यंत्र उन आवाजों पर भी हावी है जो कभी सर्वोच्‍च अदालत, वकीलों, केस करने के अगुआ लोगों और उनके समर्थकों-संग चलने वालों के हर रुख, हर कदम, हर पहल, हर चर्चा की केवल और केवल आलोचना करते रहते थे। उन्‍हें केवल खराबी-बुराई ही नजर आती थी-आती रही है। मीन-मेख निकालना जिनका परम कर्त्‍तव्‍य रहा है। लेकिन अंदरखाते इन केसों की सकारात्‍मक उपलब्धियों पर दावा जताने, अपना हक जताने, उसे पाने की चाहत रखने की मरमर भी उनके कंठों से अविरल-अनवरत फूटती रही है।

‘ईयर ऑफ विक्टिम्‍स’ और मजीठिया मामले में इंसाफ की आस

मजीठिया वेज अवॉर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अवमानना केसों की सुनवाई ठहर गई है। रुक गई है। एक तरह से विराम लग गया है। तारीख पड़नी बंद हो गई है। तारीख क्‍यों नहीं पड़ रही है, इस पर कुछ वक्‍त पहले अटकलें भी लगती थीं, अब वो भी बंद हैं। सन्‍नाटा पसर गया है। हर शोर, हर गरजती-गूंजती-दहाड़ती, हंगामेदार आवाज इन्‍हें निकालने वाले गलों में शायद कहीं फंस कर रह गई है। या हो सकता है कि इन्‍हें निकालने वाले गलों ने साइलेंसर धारण कर लिया हो। जो भी हो, यह स्थिति है आस छुड़ाने वाली, निराशा में डुबाने वाली, उम्‍मीद छुड़वाने वाली, नाउम्‍मीदी से सराबोर करने वाली, सारे किए-धरे पर पानी फिरवाने वाली।

नवागत की आड़ में अनभिज्ञता का स्‍वांग कर रहे यूपी के लेबर कमिश्‍नर

पेशी के वक्‍त सुप्रीम कोर्ट में सच बोलने से बचने का रास्‍ता ढूंढ रहे हैं : लटकती तलवार तले अनभिज्ञता का नकाब, ऐसे हैं यूपी के लेबर कमिश्नर जनाब। ठीक समझे हैं, उत्‍तर प्रदेश के नवागत माननीय श्रम उच्‍चाधिकारी इसी तरह के हैं। या कहें कि ऐसे ही बने हुए हैं और अनजानेपन का स्‍वांग कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं। वह ऐसे पेश आ रहे हैं मानों मजीठिया वेज बोर्ड से जुड़ी हुई किसी भी बात को नहीं जानते। उनके कार्यालय में पहले की मैडम लेबर कमिश्‍नर के कार्यकाल में प्रिंट मीडिया के तमाम कर्मचारियों ने मजीठिया वेज बोर्ड अवॉर्ड से जुड़ीं अपनी अनेकानेक समस्‍याओं, मैनेजमेंट की प्रताड़ना, मजीठिया के मुताबिक बनती सेलरी दिलाने की लिखित मांग, मालिकान द्वारा न देने की ढेरों तिकड़मों-बदमाशियों-साजिशों आदि के बारे में उनको अवगत कराना, अपना हक पाने के लिए उनके कार्यालय के चक्‍कर काटते रहना और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को आधा-अधूरा, तथ्‍यों को तोड़-मरोड़ कर अखबार मालिकों के फेवर वाली स्‍टेटस रिपोर्ट बनाकर भेजना आदि-इत्‍यादि हकीकत-सच्‍चाई से वे अनभिज्ञ बने हुए हैं।

लेबर कमिश्ररों से जिरह में मैनेजमेंट और श्रम विभाग की नंगई हो जाएगी बेपर्दा

मजीठिया वेज अवॉर्ड पाने की जंग लड़ रहे लोगों को निस्संदेह मिलेगा इंसाफ : न्याय में विलंब यानी न्याय नहीं – यह एक आम कहावत या कहें कि मुहावरा बन गया है, जो सिस्टम की न्यायिक व्यवस्था, न्याय की स्थिति, न्याय की दशा-दिशा से उपजा है। न्याय-इंसाफ की अतीत से लेकर वर्तमान तक की स्थिति, इसके मिलने में बेतहाशा विलंब, अनेक-अगणित उतार-चढ़ाव, अस्थिरता-अनिश्चितता और अन्यान्य बाधाएं-अड़चनें इंसाफ की जंग लड़ रहे लोगों के हौसले को पस्त कर देती हैं। उसे ऐसे मुकाम पर पहुंचा देती हैं कि वह निराश होकर बोल पड़ता है – छोड़ो यार! इस मुकदमेबाजी से कुछ नहीं होने वाला, कुछ नहीं मिलने वाला। इससे अच्छा है कि खामोश होकर-चुप होकर घर बैठें। या इसी तरह के न जाने कितने ख्याल, भाव-विचार मन में दंड-बैठक करते हैं, करते रहते हैं। इसी मनोदशा में कुछ लोग वास्तव में निष्क्रियता के शिकार हो जाते हैं और कुछ लोग, या कहें कि ज्यादातर लोग इस स्थिति में बहुत देर तक नहीं रह पाते। जल्दी ही बाहर निकल आते हैं, इससे उबर जाते हैं और फिर,  शुरू की गई लड़ाई को उसके मुकाम तक पहुंचाने के लिए नए संकल्प के साथ मैदान में कूद पड़ते हैं।

श्रम अफसरों के धमकाने के मामले से नई दुनिया प्रबंधन के होश उड़े

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित प्रसिद्ध अखबार नई दुनिया में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतन हासिल करने के लिए यहां कार्यरत सभी पत्रकार एवं गैर पत्रकार कर्मचारी लामबंद हो गए हैं। इसके लिए वे न्यायपालिका से लेकर सरकारी तंत्र के हर उस पुर्जे को आजमाने में मशगूल हैं जो उनकी इस मांग को पूरा कराने में निर्णायक सहायता कर सके। या कहें कि उन्हें मजीठिया दिलवा सके। इस जीवनदायी महान काम के लिए कर्मचारियों ने श्रम विभाग का भी दरवाजा खटखटाया है। खुशी की बात यह है कि श्रम महकमा खुलकर उनकी मदद में उतर आया है।

इंडियन एक्सप्रेस के सभी संस्करणों को अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित कर मजीठिया देने की खानापूर्ति कर रहे हैं विवेक गोयनका

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खिल्ली उड़ाने में जुटे हुए हैं भारत के हिंदी-अंग्रेजी समेत दर्जनों भाषाओं के अखबार व पत्र-पत्रिकाएं


: इंडियन एक्सप्रेस लखनऊ के कर्मचारियों को मजीठिया के नाम पर लगा दी गहरी चपत : इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह के मालिक-मैनेजमेंट का एक ही रोना है कि उसकी आय-कमाई इतनी नहीं है कि पत्रकार एवं गैर पत्रकार कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुसार बढ़ाकर वेतन एवं अन्य लाभ-फायदे दिए जा सकें। अपनी इस रोनी अदा को स्थाई रूप देने के लिए उन्होंने बनावटी-झूठी दलीलों का पुलिंदा बना-तैयार करके रखा हुआ है। उन्होंने सबसे पुख्ता, पर उतनी ही झूठी, गैर कानूनी दलील-तर्क, खासकर लखनऊ संस्करण के संबंध में यह गढ़ रखी है कि उनका यह संस्करण कमाई के मामले में फिसड्डी है। इस एडीशन में कमाई इतनी भी नहीं हो रही है कि हम कर्मचारियों को मौजूदा सेलरी ही सहजता से दे सकें, मजीठिया के हिसाब से वेतन देना तो दूर की बात है। लेकिन जब से सुप्रीम कोर्ट का डंडा चलना शुरू हुआ है तो मालिकान ने उसकी चोट से बचने के लिए इस संस्करण में भी मजीठिया देने का एलान किया हुआ है। वो भी पांचवीं श्रेणी का स्केल।

ये संपादक लोग अपने चैनल के अंदर कर्मचारियों के चल रहे सतत् शोषण-उत्पीडऩ से अनजान क्यों बने रहते हैं

: मजीठिया पर सुप्रीम कोर्ट की नोटिस को चैनलों ने भी खबर आइटम बनाने की जहमत नहीं उठाई : ‘पी 7 चैनल के पत्रकार कर्मचारी लंबी लड़ाई के मूड में हैं।’ इस चैनल के पत्रकारों के जारी आंदोलन और उनकी तैयारियों की बाबत भड़ास पर प्रकाशित इस पंक्ति सरीखी अनेक पंक्तियों एवं फोटुओं-छवियों से पूरी तरह साफ हो जाता है कि इस चैनल के पत्रकार कर्मचारी अपने मालिक की बेईमानी, वादाखिलाफी, कर्मचारियों को उनका हक-पगार-सेलरी-बकाया-दूसरे लाभ देने के लिए किए गए समझौते के उलट आचरण-बर्ताव करने का दोटूक, फैसलाकुन, निर्णायक जवाब देने के लिए तैयार-तत्पर-सक्रिय हो गए हैं। उनके रुख से साफ है कि वे किसी भी सूरत में झुकेंगे नहीं और अपना हक लेकर, अपनी मांगें पूरी करा कर रहेंगे।

इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ में मजीठिया पर मैनेजमेंट का रवैया : दिलेरी की पत्रकारिता का परचम और कर्मचारियों के पेट पर लात

मस्तक यानी मास्टहेड पर अंकित है journalism of courage । मतलब दिलेरी, धैर्य, निर्भयता, पराक्रम, प्रताप, वीरता, शौर्य, शूरता, साहस, हिम्मत की पत्रकारिता। इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह इन्हीं शब्दों को अपने ध्वज-पताके-परचम पर दर्ज करवा कर उसे उठाए-लहराए चल रहा है, चलता जा रहा है। इसी को अपने हक में भुना रहा है, भुनाता रहा है और आगे भी भुनाते रहने की मंशा बांधे बैठा है। एक लिहाज से यह ठीक भी है। व्यवसाय, कारोबार, धंधे का अंतिम लक्ष्य तो लाभ-फायदा-मुनाफा कमाना ही तो होता है! लेकिन सवाल है कि इसे करने वाला है कौन? आदमी, मनुष्य, इंसान? या कोई और?

इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ के 38 कर्मचारियों का वेतन कम कर दिया गया

: गंभीर मसला है वेतन कटौती का : इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ के 38 कर्मचारियों का वेतन कम कर दिया गया है जबकि मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक सभी का वेतन ढाई से तीन गुना तक बढऩा चाहिए। कर्मचारियों को उम्मीद थी, उनका आकलन था कि नए वेज बोर्ड के क्रियान्वयन से उनकी सेलरी में भरपूर इजाफा होगा। लेकिन हो उल्टा गया। अब कर्मचारी बहुत परेशान हैं। असल में मालिक विवेक गोयनका की मंशा-नीयत ही ऐसी है कि कर्मचारियों को मजीठिया के पूरे लाभ कर्मचारियों को न दिए जाएं।

भास्कर के मालिकों की इच्छा पूरी न हो सकी, सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से बेहाल

 

सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई दो महीने की मियाद खत्म होने में अब थोड़ा ही वक्त शेष रह गया है। यही वह गंभीर, गलाकाटू या कहें कि जानलेवा खंजर-तलवार, नए जमाने का वह आयुध है जो यदि प्राण बख्श भी दे तो चेत-चेतना को कदापि नहीं बख्शेगा। मतलब, जान बच भी जाए तो शेष जीवन अचेतावस्था में ही गुजरने के सारे बंदोबस्त मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश ने कम से कम दैनिक भास्कर के महामहिम मालिकों के लिए तो कर ही दिए हैं। भास्कर मालिकान ने मजीठिया से बचने के लिए अपने भरसक सारे जुगत – कोशिश – उपाय – प्रयास कर लिए, यहां तक कि उन कर्मचारियों को भी येन-केन प्रकारेण अपने पक्ष में करने, धमकाने-फुसलाने-बहलाने, खरीदने, सेटलमेंट-समझौता करने के अथक-अनवरत प्रयास किए, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली।

सलाखों के भय से ‘चंडीगढ़ इंडियन एक्सप्रेस’ ने मजीठिया आधा-अधूरा लागू किया, …लेकिन भास्कर कर्मियों का क्या होगा?

सबके दुख-सुख, विपदा-विपत्ति, परेशानी-मुसीबत, संकट-कष्ट, मुश्किल-दिक्कत, आपत्ति-आफत आदि-इत्यादि को अपनी कलम-लेखनी, कंप्यूटर के की-बोर्ड से स्टोरी-आर्टिकल, समाचार-खबर की आकृति में ढाल कर अखबारों, समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की अनवरत मशक्कत-कसरत करने वाले मीडिया कर्मियों को अपने ही गुजारे के लिए मिलने वाली पगार अमृत समान हो गई है। हां जी, अमृत समान! मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लेकर अखबारों के कर्मचारियों और मालिकान के बीच चल रही लड़ाई शायद इसी पौराणिक कथा का दूसरा, पर परिवर्तित रूप लगती है।

रस से रिक्त हो गया है पीएम मोदी का बनारस

बीते पखवाड़े पूर्वी उत्तर प्रदेश के भ्रमण पर था। इसकी विधिवत शुरुआत बनारस या वाराणसी में ट्रेन से उतरने के बाद सडक मार्ग से बस के जरिये हुई। लेकिन बस के सफर ने जिस-जिस तरह के जितने झांसे दिए, धोखाधड़ी की, चकमे दिए, बस जाएगी-नहीं जाएगी, के जितने सच्चे-झूठे पाठ पढ़ाए गए, बातें बनाई गईं, आनाकानी की गई, बहाने बनाए गए, उसकी मिसाल अपने अब तक के इस जीवन में मैंने न तो कहीं देखी, न सुनी, न ही पढ़ी है। यूपी सरकार की बस पवन सेवा में आजमगढ़ जाने के लिए जब मैं पत्नी संग सवार हुआ तो उसमें पहले से सवार समस्त यात्रीगण बेहद असमंजस में फंसे अनिश्चितता के भंवर में हिचकोले ले रहे थे। बस के कंडक्टर और ड्राइवर कभी कहते बस जाएगी, कभी कहते नहीं जाएगी। कभी ऐलानिया तौर पर बोल पड़ते, उतर जाइए-उतर जाइए बस कैंसिल हो गई, अब नहीं जाएगी, दूसरी बस जा रही है, उसमें बैठ जाइए, वह आजमगढ़ जाएगी। उहापोह का ऐसा माहौल इन दोनों बस कर्मचारियों ने बना रखा था कि सारे बस यात्री बेहद परेशान हो गए।