Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

राहुल गांधी द्वारा Pliable कहे जाने से नाराज हैं ANI की मालकिन उर्फ संपादिका स्मिता प्रकाश!

अनिल जैन : लीजिए, अब प्रधान जी के चर्चित ‘इंटरव्यू’ को लेकर जारी बहस में स्मिता प्रकाश भी कूद पडीं। वही स्मिता प्रकाश जिनके सामने बैठकर दो दिन पहले प्रधान जी राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे। स्मिता प्रकाश इंटरव्यू को प्रायोजित बताए जाने को लेकर राहुल गांधी से नाराज हैं। वे राहुल को चुनौती दे रही हैं कि वे साबित करें कि इंटरव्यू प्रायोजित था। अब चूंकि वे विवाद में कूद पडी हैं तो उनको लेकर भी सवाल उठना लाजिमी है कि वे कैसे पत्रकार हो गईं? कितने वर्षों से वे इस पेशे में हैं और उन्होंने एएनआई से पहले किन-किन मीडिया संस्थानों में काम किया है?

दरअसल, स्मिता प्रकाश टीवी न्यूज एजेंसी एएनआई के मालिक की पुत्र वधू हैं। तमाम टीवी चैनलों को खबरें सप्लाय करने वाली इस एजेंसी की शुरुआत उनके ससुर ने वाजपेयी सरकार के दौर में उस समय के उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की मदद से की थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

स्मिता प्रकाश के ससुर अब बुजुर्ग हो चुके हैं और जब से उनके बेटे ने अपने पिता से एएनआई का प्रबंधन अपने हाथों में लिया है तब से स्मिता प्रकाश ही उसकी मैनेजिंग एडिटर हैं। वैसे भी ज्यादातर मीडिया संस्थानों में उनके मालिक या उनके परिवार के सदस्य ही प्रधान संपादक और प्रबंध संपादक हैं, भले ही पत्रकारिता या पढने-लिखने से उनका कोई सरोकार न हो। इसलिए एएनआई में भी ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

कुछ दिनों पहले रॉफेल जहाज बनाने वाली दसॉल्ड के सीईओ का इंटरव्यू करने भी स्मिता प्रकाश ही गई थीं। भारत की एक अन्य सबसे पुरानी, सबसे बडी और स्थापित समाचार एजेंसी ने भी दसॉल्ट के सीईओ से इंटरव्यू के लिए समय मांगा था लेकिन समय दिया गया सिर्फ एएनआई को। ऐसा क्यों हुआ, यह समझना मुश्किल नहीं है। बहरहाल बात निकली है तो दूर तलक तो जाएगी ही।

Paramendra Mohan : जब नेता बौखलाते हैं तो मीडिया को निशाना बनाते हैं और इसकी वजह होती है मीडिया में मौजूद उन लोगों की पूर्वाग्रही, पक्षपाती सोच, जो खुद को खुदा समझ बैठे हैं। ये मौका देते हैं और नेता मौका लपक लेते हैं, नेता मौका लपकते हैं तो उनके चाटुकार इसे प्रचारित-प्रसारित कर देते हैं। राहुल गांधी ने पीएम मोदी का इंटरव्यू लेने वाली स्मिता प्रकाश को pliable करार दे डाला, प्रेस कांफ्रेंस में ये कहकर निशाना साधा कि वो नरम सवाल कर रही थीं और अपने सवालों में ही जवाब भी बता रही थीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सीधे शब्दों में कहें तो राहुल का आरोप ये है कि पीएम का इंटरव्यू मैनेज्ड था। राहुल के इस बयान के जवाब में अरुण जेटली का कहना है कि इमरजेंसी तानाशाह के पोते ने अपना असली DNA दिखा दिया है। उन्होंने एक स्वतंत्र संपादक पर हमला किया है और डराया है। अब आपको इतनी ख़बर जानकर ये महसूस होगा कि कांग्रेस मीडिया विरोधी है और बीजेपी स्वतंत्र पत्रकारिता की पक्षधर, लेकिन इन्हीं जेटली जी का मीडिया की स्वतंत्रता के प्रति प्रेम की पड़ताल के लिए हमने गूगल करके देखा कि जब उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी रिटायर्ड जनरल वी के सिंह ने मीडिया को प्रेस्टीट्यूट कहकर नवाजा था, तब जेटली जी ने क्या राय रखी थी तो अफसोस…कुछ भी नहीं मिला।

दरअसल, यही सच्चाई है, ये राजनेता सिर्फ राजनीति करते हैं, इनके हमलों, इनके बयानों को संजीदगी से लेने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ये तभी बोलते हैं, जब बात इनके खिलाफ जाती है, वर्ना तो सबकुछ फील गुड होता है इनके लिए। मजेदार बात ये है कि नेताओं को तो राजनीति ही करनी है, लेकिन मीडिया के कुछ लोग आखिर क्यों राजनीति कर रहे हैं? अगर इन्हें राजनीति करनी है तो फिर मीडिया में क्यों हैं? मुखौटों के पीछे छिपे चंद मीडियाकर्मियों ने पूरे पत्रकारिता जगत को बदनाम करके रख दिया है। कुछ लोग मोदी विरोध की आग में इस कदर जले जा रहे हैं कि उन्हें सबकुछ तबाह-बर्बाद नज़र आ रहा है तो कुछ लोग मोदी भक्ति में इस कदर बिछे जा रहे हैं कि भारत सोने की चिड़िया ही बनता जा रहा हो। इस दो धड़ों के बीच तीसरा धड़ा यानी वो धड़ा, जो टीआरपी की मारामारी और दो ध्रुवों में बंटे दर्शकों के बावजूद निष्पक्ष पत्रकारिता पर अड़ा है, वो पिसता-पिछड़ता चला जा रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नतीजा ये है कि हम सब आज इस कड़वी सच्चाई को मानने पर मजबूर हैं कि बिना खेमाबंदी पत्रकारिता सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। हालात ये है कि दर्शकों को निष्पक्षता न समझ आती है, न पसंद आती है, उन्हें ख़बरें नहीं चाहिए, उन्हें ख़बरों में भाजपाई-कांग्रेसी रंग चाहिए, पॉलिश्ड चावल जैसे दिखने में अच्छा लगता है, वैसे ही राजनीति की कोटिंग चढ़ी हुई ख़बरें इन्हें अच्छी लगती है। अगर आपको दर्शकों के इस मिजाज को आंकना हो तो आप मोदी या राहुल की तारीफ या आलोचना वाले पोस्ट करके आंक सकते हैं, यही टेस्ट ऑफ इंडिया है और इस टेस्ट को बनाया है दलीय प्रतिबद्धताओं वाले चंद बड़े पत्रकारों ने, जिनका खामियाजा भुगत रहा है पूरा मीडिया, वर्ना राहुल को ये कहने की हिम्मत न होती कि संपादक pliable है। अगर मीडिया को खुद की साख बचानी है तो जिम्मेदारी उन लोगों को निभानी है, जिनका इस दौर में भी ये ध्येय है कि पत्रकारिता निष्पक्ष होनी चाहिए।

पत्रकारद्वय अनिल जैन और परमेंद्र मोहन की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
3 Comments

3 Comments

  1. anu

    January 4, 2019 at 3:52 pm

    very nice..bhai kya sahi kaha aapne.. kuch media wale sirf rajniti karne walo ke raaj aur raag darbari hee hai….

  2. S.R.Kanswal

    January 5, 2019 at 10:38 am

    दलाल मीडिया को दलाल बोलना
    भौत गलत बात है।

  3. नागेश पाण्डेय

    January 7, 2019 at 3:15 pm

    अन्धेरे में तो अपना साया भी साथ छोर देता है।
    मीडिया का अधिकान्स धरा कुछ दिनो से सत्ता की चापलुसी कर रहा है
    चापलूस मीडिया देसहित मे नही

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement