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सियासत

प्रधानमंत्री को ‘जुमलेबाज’ कहे जाने से हाईकोर्ट नाराज़!

Sanjeev Kumar-

दिल्ली हाई कोर्ट ने उमर खालिद की जमानत की सुनवाई के दौरान उनके अमरावती के भाषण को जिस तरह पढ़ा है, उसे देखते हुए अब आपको लिखने-बोलने में ये सावधानियाँ बरतनी पड़ेंगी:

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  1. ‘क्रांतिकारी इस्तक़बाल’ या ‘इंकलाबी सलाम’ कतई न करें।
  2. किसी सभा में वक्ता का परिचय यह कहकर न दें कि अब जनाब फलाँ अपने इंकलाबी ख़यालात पेश करेंगे।
  3. प्रधानमंत्री का ज़िक्र करते हुए ‘सब चंगा सी’ जैसे हल्के वाक्य न बोलें। आखिर वे प्रधानमंत्री हैं! (अलबत्ता प्रधानमंत्री होने के कारण वे किसी सभा में जो चाहें और जैसे चाहें, बोल सकते हैं। समझ गयीं न, दीदीss! ओssss दीदी!)
  4. ‘जुमला’ जैसे शब्द से परहेज करें, भले ही स्वयं गृहमंत्री ने कभी सार्वजनिक रूप से चुनावी जुमलों की बात स्वीकार की हो (हर किसी के खाते में 15 लाख रुपये पहुंचेंगे वाली बात पर)।
  5. हिंदुत्ववादियों के खिलाफ़ कुछ बोलने से पहले सोच लें कि उसे हिंदुओं के खिलाफ़ माना जा सकता है। मसलन, अगर आपने हिंदुत्ववादियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘जिस समय आपके पुरखे अंग्रेजों के तलवे चाट रहे थे’ वगैरह, तो माना जाएगा कि आपने पूरे हिन्दू समुदाय को बुरा-भला कहा है और किसी एक ही समुदाय को—इस मामले में मुसलमानों को—अंग्रेजों से लड़ने का श्रेय दे रहे हैं।
  6. आपका ऐसा कहना विभिन्न समूहों के बीच सांप्रदायिक विद्वेष भड़काने का प्रयास माना जा सकता है।
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