Om Thanvi : प्रभाष परंपरा न्यास के आयोजन का कार्ड डरते-डरते खोला, कि फिर कोई भाजपाई ज्ञान देने को बुलाया होग। लीजिए, एक नहीं दो-दो निकले – भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा मार्गदर्शक-मंडल सदस्य मुरलीमनोहर जोशी और पूर्व भाजपा सांसद त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी।
कैसी विडंबना है। बाबरी विध्वंस के जिन गुनहगारों की प्रभाषजी ने खाट खड़ी कर दी थी (मुरली मनोहर जोशी और उनके कंधों पर झूलती उमा भारती की तसवीर इस याद के साथ कौंध-कौंध जाती है), वे आज प्रभाषजी की स्मृति में भाषण देने बुलाए जा रहे हैं? श्रोताओं में भी संघ के कार्यकर्ताओं की भीड़ होती है। यह उदारता नहीं है, राजनीति है। प्रभाषजी को कलंकित कर उनके नाम पर उस राजनीति की प्रतिष्ठा करना जिससे वे जूझ रहे थे, हद दर्जे का पाप आचरण है।
यह सिलसिला नया नहीं है। नेताओं से न्यास को कुशोभित किया जाने लगा तो मैंने न्यास से इस्तीफ़ा दे दिया था। जनसत्ता के पुराने सहयोगी रामबहादुर राय (प्रभाष न्यास के कर्ताधर्ता) अब, लगता है, ज़्यादा जोश में हैं। मोदी सरकार ने उन्हें नवाज़ा है। अहम ज़िम्मेदारियाँ दी हैं। प्रभाष न्यास का पतन भी उसमें शामिल है क्या?
Devpriya Awasthi : प्रभाष जोशी आज बहुत शिद्दत से याद आ रहे हैं। तीन दिन बाद उनका 81 वां जन्मदिन जो है। अपने अंतिम दिनों में वे दो बडे़ कामों में जुटे थे। पहला, नए संदर्भों में गांधीजी के हिंद स्वराज की व्याख्या और दूसरा, पेड मीडिया के खिलाफ हल्ला-बोल। आज ये दोनों काम पहले से ज्यादा प्रासंगिक हैं, लेकिन अब यह काम कौन करे और क्यों करे? अब तो प्रभाष जोशी को भी भगवा रंग में रंगने का अभियान परवान चढ़ रहा है।
क्या आप जानते हैं कि इस बार प्रभाषजी के जन्मदिन पर होने वाले सालाना आयोजन में मुख्य वक्ता और अध्यक्ष के रूप में किन्हें न्योता गया है? न जानते हों तो जान लीजिए।
ये शख्सियत हैं- मुरली मनोहर जोशी और त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी। पहले, भाजपा के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य और दूसरे भाजपा के पूर्व सांसद। याद करें कि बाबरी ढांचा ढहाए जाने के दौर में प्रभाष जोशी ने मुरली मनोहर जोशी और उनकी मंडली के बारे में क्या-क्या लिखा था। समय निकाल कर उनकी -हिंदू होने का अर्थ- पुस्तक के कुछ अंश भी बांच लें। भाजपा के बारे में प्रभाष जी के विचार समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है।
कहते हैं ना- समरथ को नहि दोष गोसाईं। भाजपा और संघ से जुड़े लोगों के लिए आज वह हर शख्स वंदनीय-पूजनीय और भगवाकरण के योग्य है जिसने अपने जीवन में उनके संकुचित नजरिए से न केवल दूरी बनाए रखी बल्कि उस नजरिये का जमकर विरोध भी किया। हां, कुछ वामपंथी लोग जरूर अपवाद हैं। इसलिए इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि प्रभाषजी का भगवाकरण करना भाजपा-संघ के एजेंडे में है।
मैं तो विरोध स्वरूप इस बार प्रभाष जी के स्मृति समारोह में नहीं जा रहा हूं। ऐसा करके मैं प्रभाष जोशी के वृहत परिवार से मिलने-जुलने का मौका भी गंवा रहा हूं। आप भी सोचें कि ऐसे कार्यक्रम में जाना ठीक है या नहीं।
याद दिला दूं कि प्रभाष जी के 60वें जन्मदिन पर प्रभाष प्रसंग के आयोजन में मेरी प्रमुख भूमिका रही थी। 21 वर्ष पहले इंदौर में हुआ वह आयोजन अपने आप मेंं अनूठा था। उस कार्यक्रम के लिए कोई चंदा भी नहीं किया गया था। विभिन्न संस्थाओं और व्यक्तियों ने सभी जिम्मेदारियां आपस में बांट ली थीं।
जाने माने पत्रकार ओम थानवी और देवप्रिय अवस्थी की एफबी वॉल से.
कैलाश चंद्र जैन
July 15, 2018 at 8:01 am
आजकल की भा.ज.पा भी पुरानी काग्रेस जैसी नीतियों को पर चल रही है
इसलिये यदि प्रभाष जी यदि जीवित होते तो शायद वह भी ,यही करते।