इस बीच खबर है कि प्रधानमंत्री ने अपना आरोप दोहराया, मुसलमानों का जिक्र नहीं किया चुनाव आयोग ने मोदी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की या मोदी के भाषण पर हंगामा जैसा शीर्षक ढूंढ़ने पर मिलेगा। पेश है, आज के शीर्षक और तथ्य यह है कि चुनाव आयोग पर इसका कोई असर नहीं हुआ है!
संजय कुमार सिंह
आज के अखबारों में सबसे ज्यादा ढूंढ़ी जाने वाली खबर यही होगी कि चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री और भाजपा के चुनाव प्रचारक के खिलाफ कोई कार्रवाई की या नहीं की। की तो क्या और नहीं की तो कब करेगा अथवा करेगा कि नहीं। ऐसी खबरें आज के अखबारों में आम होनी चाहिये थी पर सिर्फ टेलीग्राफ और हिन्दुस्तान टाइम्स में इस आशय की खबरें हैं। अकेले द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने की अपनी खबर से बताया है कि नागरिकों ने प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। साथ की एक खबर के अनुसार चुनाव आयोग ने कहा है, “कोई टिप्पणी नहीं”। इस खबर के अनुसार वतन के राह में संविधान बचाओ नागरिक अभियान की पहल पर 17421 लोगों के दस्तखत वाला एक बयान चुनाव आयोग को दिया गया है। जिसमें मोदी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। अखबार ने नो कमेंट : ईसी शीर्षक से बताया है कि मोदी ने क्या कहा इसपर चुनाव आयोग ने कहा है, हम टिप्पणी करने से इनकार करते हैं और इसके साथ अखबार ने बताया है कि कानून क्या कहता है। इसमें भारतीय अपराध प्रक्रिया संहिता, जनप्रतिनिधित्व कानून की संबंधित धारा और आदर्श आचार संहिता का उल्लेख करके बताया गया है कि प्रधानमंत्री ने जो कहा वह कैसे कितना गलत और आपत्तिजनक है।
राजस्थान में प्रधानमंत्री के आपत्तिजनक भाषण के बाद देश में बहुत कुछ हुआ जो (और जो नहीं हुआ वह भी) बहुत महत्वपूर्ण है। इस लिहाज से आज के अखबारों ने किसे कितना महत्व दिया – जानना दिलचस्प है। अखबारों को देखने और उनकी खबरों की चर्चा से पहले मैं संभावनाएं बता देता हूं इससे आप यह भी समझ सकेंगे कि किसने क्या नहीं किया। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री के भाषण के बाद चुनाव आयोग स्वयं कार्रवाई कर सकता था, शिकायतों पर गौर करने के लिए समय लेते हुए प्रधानमंत्री को चेतावनी दे सकता था, विपक्षी दल चुनाव आयोग से शिकायत कर सकते थे, चुनाव आयोग इसपर कोई कार्रवाई करता, आश्वासन देता तो वह भी खबर हो सकती थी, कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वह भी खबर है और प्रधानमंत्री अपने आरोप या अपना भाषण दोहरा सकते थे और वह भी खबर है। विवादों से दूर, इन सबसे अलग या इनके साथ किसी और खबर को लीड बना सकते थे।
सरकार की ओर से हेडलाइन मैनेजमेंट चल रहा है और यह यूं ही नहीं है। आज भी ऐसी खबरें हैं। पहली, बंगाल में 24 हजार शिक्षकों की नियुक्ति रद्द दूसरी सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित। पश्चिम बंगाल की खबर द टेलीग्राफ और अमर उजाला में लीड है। द टेलीग्राफ को कोलकाता का ही अखबार है इसलिए वहां तो सामान्य है लेकिन अमर उजाला में बंगाल की खबरों को महत्व मिलता है क्योंकि भाजपा पश्चिम बंगाल में पांव जमाने की कोशिश में है और तृणमूल कांग्रेस तथा उसकी सरकार की जड़ खोदने में लगी है। चुनाव के समय ऐसी खबरें गर्म लोहे पर चोट करने की तरह है। इसलिए पश्चिम बंगाल में नियुक्ति रद्द लीड है। ममता बनर्जी ने कहा है कि यह आदेश अवैध है, इसे चुनौती देंगी। पर यह सभी अखबारों में कैसे छप सकता है। मुझे नवोदय टाइम्स की खबर के साथ छपा दिखा।
अमर उजाला में प्रधानमंत्री का कल का अलीगढ़ का भाषण जो लगभग राजस्थान जैसा ही है, लीड के बराबर में है। कांग्रेस ने चुनाव आयोग से प्रधानमंत्री की शिकायत की यह दो कॉलम की खबर है जो आठ यानी 16 लाइनों में निपट गई है। चुनाव आयोग ने क्या कहा या कोई कार्रवाई की अथवा नहीं या कब तक कार्रवाई करेगा ऐसी कोई खबर अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है। भाजपा ने राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत की है – शीर्षक से एक खबर सिंगल कॉलम से थोड़ी बड़ी है। आप मान सकते हैं कि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत की तो भाजपा ने राहुल गांधी के खिलाफ है। अमर उजाला ने दोनों खबरें छाप दीं बात बराबर हो गई। आगे दूसरे अखबारों की खबरें बताउंगा तो आप समझेंगे कि अखबार ने कौन सी खबरें पहले पन्ने पर नहीं ली है। आज सूरत के भाजपा उम्मीदवार के निर्विरोध निर्वाचित किये जाने की खबर है। मुझे लगता है कि यह भी चंडीगढ़ जैसा मामला है। वहां बैलट पेपर खारिज कर दिये गये थे यहां नामांकन पत्र खारिज कर दिये गये हैं। इससे पहले खजुराहो में कामग्रेस उम्मीदवार का पर्चा खारिज हो चुका है। बाकी के लोगों ने आश्चर्यजनक ढंग से अपना पर्चा वापस ले लिया और चुनाव अधिकारी ने उसे निर्विरोध निर्वाचित कर दिया जो मैदान में रह गया था। संयोग से वह भाजपा उम्मीदवार है। अमर उजाला ने इस खबर के साथ राहुल गांधी के सोशल मीडिया पोस्ट की खबर, असली सूरत फिर उजागर शीर्षक से छापी है।
नवोदय टाइम्स ने प्रधानमंत्री द्वारा अपने आरोप दोहराये जाने को और भी सांप्रदायिक ढंग से छाप दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा है तो उसे छापना गलत है या नहीं यह संपादकीय विवेक का मामला है और इसमें कोई पक्का नियम नहीं है। छापने के पक्ष में और खिलाफ भी तर्क दिये जा सकते हैं इसलिए तय करना मुश्किल तो है ही। फिर भी प्रधानमंत्री की खबर कांग्रेस के घोषणा पत्र पर आधारित बताई जा रही है और राजस्थान की घोषणा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे प्रधानमंत्री से मिलकर उन्हें अपना घोषणापत्र देने के लिए समय मांगा है। ऐसे प्रधानमंत्री का यह कहना कि माताओं के मंगलसूत्र पर कांग्रेस की नजर है और उसे लीड बनाया जाना, वह भी चुनाव के समय खास मायने रखता है। यह अलग बात है कि नवोदय टाइम्स ने इस खबर के बराबर में कांग्रेस नेता जयराम रमेश का यह कहा छापा है कि, “मोदी सरकार में महिलाओं ने सबसे ज्यादा गहने बेचे”।
इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, (प्रधानमंत्री ने) संपत्ति के पुनर्वितरण का अपना दावा दोहराया (फ्लैग शीर्षक है)। अखबार की लीड का शीर्षक है, एक दिन बाद प्रधान मंत्री ने अलीगढ़ में कहा तीन तलाक खत्म किया, हज कोटा बढ़ाया। इस खबर का इंट्रो है, तुष्टिकरण की राजनीति के लिए कांग्रेस, समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा कहा, समाज के लिए इनलोगों ने कुछ नहीं किया। तीन कॉलम की इस लीड के साथ दो कॉलम में की खबर का शीर्षक है, कांग्रेस ने कहा प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराइये, यह ईसी (चुनाव आयोग) का भी ट्रायल है। आज हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड का शीर्षक है, मोदी की राजस्थान रैली की टिप्पणी ने राजनीतिक हंगामा शुरू किया। इस खबर के साथ विवादास्पद टिप्पणी, मोदी ने कांग्रेस की आलोचना की, कांग्रेस ने शिकायत दर्ज कराई, खरगे ने हमला बोला शीर्षक से खबरें हैं। अखबार ने इसके साथ बताया है कि अमित शाह भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई और संपत्ति के पुनर्वितरण के मुद्दे को रेखांकित कर बताया है कि चुनाव प्रचार में भाजपा के दोनों नेताओं ने बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह को चरितार्थ कर रखा है। इन खबरों के साथ अखबार ने खरगे ने पलटवार किया शीर्षक से लिखा है कि मोदी जी ने जो कहा वह न सिर्फ हेट स्पीच या घृणा भाषण है बल्कि ध्यान बांटने की सोची समझी योजना है। कांग्रेस प्रेसिडेंट ने कहा है कि किसी भी प्रधानमंत्री ने अपने पद का सम्मान इतना नहीं गिराया था जितना नरेन्द्र मोदी ने गिराया है। इसके साथ यह भी खबर होती कि चुनाव आयोग ने अभी तक कुछ नहीं किया है तो उसपर भी दबाव बनता कि लोग उसके कुछ करने का इंतजार कर रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में भी कुछ क्रांतिकारी नहीं है। हालांकि, कांग्रेस ने शिकायत की और उसे लीड बनाने का मामला भी कम नहीं है। दस साल से वह भी भाजपा मैनेज कर ले जा रहा थी। आज लीड का शीर्षक है, प्रधानमंत्री के भाषण पर कांग्रेस चुनाव आयोग की शरण में, भाजपा ने कहा कि जैसा है वैसा ही कहा है और अगर खबर का इंट्रो है, मोदी को अयोग्य ठहराया जाये, सिर्फ कार्रवाई पर्याप्त नहीं है तो दूसरी खबर का इंट्रो है,पार्टी ने कहा है कि मोदी ने जनभावना को रखा है। कई पत्रकारों और स्वतंत्र लोगों ने कहा है कि कांग्रेस को लेकर मोदी का पक्ष गलत है और मनमोहन सिंह ने ऐसा नहीं कहा था जबकि भाजपा ने मनमोहन सिंह के अपनी बात रखने के तुरंत बाद ऐसा कह दिया था जबकि कांग्रेस और प्रधानमंत्री कार्यालय ने उस समय भी स्पष्टीकरण जारी किया था। अब यह यू ट्यूब चर्चा में है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रधानमंत्री द्वारा अपने आरोप दोहराने की खबर को चार कॉलम में लीड के नीचे छापा है। अलीगढ़ में मुसलमानों का संदर्भ देने से बचे। संभव है, प्रधानमंत्री को अपनी गलती और हो सकने वाली कार्रवाई का अंदेशा हो और वे गलत आरोप दोहराने से बचे हों। लेकिन अपराध तो एक बार हो ही चुका है उसपर कार्रवाई की सूचना नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह भी बताया है कि चुनाव आयोग ने भाषण का वीडियो और ट्रांसक्रिप्ट मांगा है और यह मंगलवार तक उसे सौंपा जाना है।
द हिन्दू ने अपने इंटरनेशनल एडिशन में छह कॉलम की लीड लगाई है, कांग्रेस ने मोदी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। इसके बाद भी मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो उनके, भारत की जनता और यहां की चुनाव व्यवस्था के बारे में विदेशों में क्या राय बनेगी यह समझना मुश्किल नहीं है।