Shivam Yadav-
पत्रकार जब विपत्ति में हो तो उसका मीडिया संस्थान उसके साथ कैसा रवैया अपनाता है, यह सबसे महत्वपूर्ण है. युवा पत्रकार प्रतीक खरे ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए एक मीडिया संस्थान पर निशाना साधा है. इसमें उन्होंने दो उदाहरण दिए हैं और समझाने की कोशिश की है कि किस तरह हाथी के दांत दिखाने और खाने के अलग-अलग होते हैं.
प्रतीक खरे देश की एक मात्र बहुभाषीय समाचार एजेंसी (तथाकथित रूप से कहीं जाने वाली) हिंदुस्थान समाचार के उप सम्पादक व रिपोर्टर रहे हैं। अब वह प्रेरणा मीडिया में काम करते हैं।
उन्होंने अपनी पोस्ट में समाचार एजेंसी का बिना नाम लिए निशाना साधा है। उन्होंने बताया कि किस तरह एजेंसी अपने कर्मचारियों को पैसा नहीं दे पा रही है। साथ ही अपने ही घर में अपनी विचारधारा से लड़ रही है।
प्रतीक खरे बेबाक हैं. मुझे याद है जब एक बार वह मेरे साथ मीटिंग में थे तो उनसे समाचार सम्पादक ने कुछ वाहियात भाषा में बात की. उस मीटिंग में वह सबसे कम उम्र के पत्रकार थे. तब उन्होंने समाचार संपादक से कहा था कि महोदय हम आपके सहकर्मी हैं, नौकर नहीं! उसके बाद मीटिंग हाल में सन्नाटा छा गया! इसके बाद समाचार सम्पादक ने खरे साहब से माफी मांगी.
वह अलग बात है कि इसका हरिजाना कुछ समय बाद उन्हें नौकरी गंवा कर चुकानी पड़ी! लेकिन यह भी सत्य है कि संस्थान ने उनसे नौकरी तो छीन ली लेकिन उन्हें बेरोज़गार नहीं कर सकी!
देखें प्रतीक खरे की फेसबुक पोस्ट……
कोरोना महामारी में एक चीज अच्छी हुई है, वह है व्यक्ति और संस्थाओं की हकीकत सामने ला दी है।
जिस समय संस्थान लोगों को लात मार कर बाहर कर रहे हैं वैसे समय में दैनिक भास्कर जैसा संस्थान कोरोना से जान गंवाने वाले अपने साथियों के परिवार के साथ खड़ा है। वो भी पूरे एक साल तक खड़ा रहेगा। मरने के बाद भी उनका वेतन उनके परिवार को दिया जाएगा।
जो संस्थान अपने आप को सबसे ज्यादा राष्ट्रवादी और वसूलों वाला बताता था, देश का एक मात्र राष्ट्रवादी मीडिया संस्थान बताता है, अपना इतिहास अंग्रेजों से भी पुराना (यह कुछ ज्यादा हो गया!) बताता है, वह कोरोना काल में कहां हैं? सुना तो यहाँ तक था कि उनके पत्रकार जब तक पत्रकार वार्ता में नहीं पहुंचते थे तो पत्रकार वार्ता शुरू नहीं होती थी! वो अलग बात है अब उनके पत्रकारों को कोई पत्रकार वार्ता में घुसने ही नहीं देता! इस ऐतिहासिक संस्थान ने कोरोना काल में अपने 60 से अधिक कर्मचारियों को एक झटके में हटा दिया। जो काम कर रहें उनको वेतन नहीं दे पा रहे। लगभग 3 माह से कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया। इस कथित राष्ट्रवादी संस्थान को दैनिक भास्कर से कुछ सीखना चाहिए।