
प्रोफेसर अवी लोब ब्लैक होल इनिशिएटिव और स्टार शॉट प्रोजेक्ट जैसी बड़ी खगोलीय परियोजनाओं के संस्थापक हैं. अवी हार्वर्ड एस्ट्रोनॉमी डिपार्टमेंट के सबसे लम्बे समय से चेयरमैन हैं, लगभग पिछले १० साल से. वे कई महत्त्वाकांक्षी प्रयोग आप कर रहे हैं. एक और रोचक विषय है ओमुआमुआ ऑब्जेक्ट. अवी ने हाल में एक किताब भी लिखी है, जो ओमुआमुआ और एलियंस के बीच के सम्बन्ध को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करती है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से प्रोफेसर अवी लोब से भड़ास4मीडिया के तकनीकी निदेशक दिवाकर प्रताप सिंह द्वारा की गई बातचीत का हिंदी टेक्स्ट इस प्रकार है-
दिवाक प्रताप सिंह : पहला सवाल है ब्लैक होल इनिशिएटिव और स्टार शॉट प्रोजेक्ट क्या हैं?
अवी लोब : ये दोनों प्रयोग एक दुसरे से काफी अलग हैं. कॉमन बस एक चीज़ है, वो ये कि प्रोफेसर स्टीफेन हाकिंग ने यहाँ अप्रैल २०१६ में आकर इनका उदघाटन किया था. पहला था न्यू यॉर्क सिटी से स्टार शॉट प्रोजेक्ट, और दूसरा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ब्लैक होल इनिशिएटिव. ब्लैक होल इनिशिएटिव से शुरू करते हैं – ये दुनिया का एक मात्र रिसर्च सुविधा है जो ब्लैक होल्स को समर्पित है. जब हमने इसको स्थापित किया तब ये थोड़े वैज्ञानिकों के लिए ही रोचक था, पर हम चाहते थे कि अधिक से अधिक दार्शनिक, वैज्ञानिक, गणितज्ञ इससे जुडें. और जैसा कि आपको पता है, आज से डेढ़ साल पहले ब्लैक होल की पहली तस्वीर ली गयी थी. वो इसी प्रोजेक्ट के तहत हार्वर्ड के कांफ्रेंस रूम में ली गयी थी. स्टीफेन हाकिंग को यह प्रोजेक्ट बहुत प्रिय था क्योंकि उन्होंने जीवन पर्यंत ब्लैक होल्स के विज्ञान पर काम किया. कुछ समय पहले तक ब्लैक होल्स को लोग कोरी कल्पना मानते थे. जब हमने इस प्रोजेक्ट को शुरू ही किया था, तब एक दूसरे प्रयोग से दुनिया को पहली ग्रेविटेशनल वेव्स के सिग्नल भी यूनिवर्स के दूसरे कोने से प्राप्त हुए, जिसमें दो ब्लैक होल्स टकरा रहे थे. जब ये दो ब्लैक होल्स टकराए तो आइंस्टीन के सिद्धांत के अनुसार टाइम और स्पेस में ज़बरदस्त संकुचन हुआ, और ये संकुचन हम तक लेगो प्रयोग के माध्यम से पहुंचा. इसके लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया. तो इस तरह से, ब्लैक होल्स के होने की फिर से पुष्टि हुयी, जबकि मैं आपको बताऊँ, आइंस्टीन ने ही १९३० के आसपास यह कहा था की ब्लैक होल्स और ग्रेविटेशनल वेव्स महज कल्पना हैं. इस तरह से आइंस्टीन ने दो गलतियां कीं. वो दोनों गलतियां एक साथ इस प्रयोग से सुधार ली गयीं. जब आप एक गहन और क्लिष्ट विषय पर शोध करते हैं, तो आपको पता नहीं होता की कौन से रास्ते पर जाएँ, आप गलतियां करते हैं, इनोवेशन ऐसे ही संभव होता है. कुछ गलतियाँ करना इनोवेशन के लिए आवश्यक है. आपको रिस्क लेना होता है. पर आजकल के प्रबुद्ध लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं. वो ऐसे विषयों को बढ़ावा दे रहे हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है. इस तरह से वो हमेशा सही ही होते हैं क्योंकि वो गणित दिखाते हैं, भले ही बिना वैज्ञानिक प्रयोगों के, और वो सम्मानित भी होते रहते हैं. पर यह सही नहीं है. ब्लैक होल इनिशिएटिव के शुरू होने के बाद दूसरा नोबेल प्राइज भी २०२० में दिया गया, जो कि ब्लैक होल की तस्वीर लेने के लिए दिया गया. इस तरह से हमारे साढ़े चार साल के प्रोजेक्ट समय में ही दो नोबेल प्राइज दिए जा चुके हैं. अब ब्लैक होल्स को सब लोग मानते हैं. हमारे यहाँ बहुत से वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं. दूसरा इनिशिएटिव स्टार शॉट है. ये तब शुरू हुआ जब सिलिकॉन वैली के उद्योगपति युरी मिलनर अपनी ब्लैक लिमौसीन को मेरे ऑफिस के सामने पार्क करके मेरे सोफा पर बैठे और पूछा “क्या आप एक ऐसे प्रोजेक्ट को लीड करेंगे जिससे हम अपने जीवनकाल में ही पास के तारे तक यात्रा करेंगे?” वो भी मेरे जैसे ही ५९ साल के हैं. इसपर मैंने कहा, मतलब अगले २ दशकों में. पर पास का तारा तो 4 प्रकाश वर्ष दूर हैं. प्रकाश तक तो 4 साल लगेंगे वहाँ तक जाने में. तो हमें एक ऐसा साधन चाहिए जो प्रकाश की गति के २०% पर चल सके. अभी की तकनीक से यह संभव नहीं है. फिर हमने लाइट सेल तकनीक चुनी, जिसमें एक बहुत अधिक शक्ति की लेज़र बीम को एक बहुत छोटे ऑब्जेक्ट पर डालते हैं, और वो कुछ मिनट में ही प्रकाश की गति से २०% गति पा लेता है. हम इस सिद्धांत पर नयी तकनीक बनाने पर काम कर रहे हैं. युरी मिलनर इसके लिए फण्ड दे रहे हैं. इस प्रोजेक्ट से हमको पास के तारे के पास मौजूद ग्रहों की जानकारी भी मिलेगी, ख़ास कर प्रोक्सिमा बी. ये देखना रोचक होगा कि वहां पर जीवन है या नहीं.
सवाल : मेरी जानकारी के अनुसार स्टीफेन हाकिंग ने लेक्सिंग्टन में आपके घर से ये दोनों प्रोजेक्ट लांच किये थे?
जवाब : जी, ये बहुत रोचक था. वो अपनी बड़ी टीम के साथ आये थे. उनके लिए हमने अपने घर में ख़ास सुविधायें बनवाईं. हमने उनको एक ख़ास ज्यूइश त्यौहार के लिए आमंत्रित किया था. उन्हें बहुत आनंद आया. मेरी पत्नी ने उनके लिए ख़ास डिश बनाईं और उन्होंने सबका स्वाद लिया. उन्होंने वहां से स्पीच भी दी थी जिसमें उन्होंने इन दोनों इनिशिएटिव पर बात की. मेरे हिसाब से वो एक विलक्षण व्यक्ति थे. क्योंकि उनके जैसी शारीरिक स्थिति में , जबकि वो बिलकुल भी नहीं हिल सकते थे, कोई भी व्यक्ति बहुत अधिक दुखी होगा. पर वो जीवन के लिए बहुत पॉजिटिव थे. एक शाम उन्होंने कहा, मैं बोर हो रहा हूँ चलो बार चला जाए और कुछ मज़े किये जाएँ. वो जीवन से भरे हुए थे, बहुत पॉजिटिव थे. ये हम सबके लिए एक सीख है कि जब हम विपरीत परिस्थिति मे हों तो उसका सामना कैसे करें. आपको उनसे बहुत प्रेरणा मिलती है. जैसा कि ऑस्कर वाइल्ड ने सौ साल से भी पहले कह दिया था, “हम सब एक गड्ढे में फंसे हैं, पर हममें से कुछ फिर भी सितारों को देख रहे हैं”
सवाल : जी सही कहा आपने. और जों लोग स्टीफेन हाकिंग से मिले हैं वो बहुत ही भाग्यशाली हैं, जैसे कि आपका परिवार.
जवाब : हाँ वो एक महान प्रेरणा थे. मेरी बेटी उनको बहुत पसंद करती थी. न केवल फिजिक्स बल्कि जीवन के लिए नज़रिए को लेकर भी. आप जानते हैं, कोरोना के दौरान मैंने रोजाना जॉगिंग करने का सोचा. एक दिन मैं स्लिप हुआ और मुझे काफी चोट आयी. मैं घायल वापस आया. अस्पताल जाना पडा. तब मुझे एक दम से ख्याल आया, कि स्टीफेन हाकिंग जब इतना सह सकते हैं तो मैं क्या इतना भी नहीं कर सकता? सो अगले दिन मैं फिर से सुबह ५ बजे जॉगिंग कर रहा था.
सवाल : जी, वो एक प्रेरणा थे, आपके लिए, मेरे लिए और पूरी दुनिया के लिए. अवी, आपकी किताब का नाम है “बुद्धिमान सभ्यता का पहला चिन्ह”. क्या आप बता सकते हैं कि ओमुआमुआ ऑब्जेक्ट, बुद्धिमान सभ्यता का पहला चिन्ह क्यों और कैसे है?
जवाब : जी बिलकुल. दरअसल ओमुआमुआ पहला ऑब्जेक्ट है जोकि पृथ्वी के निकट आया, और हमारे सोलर सिस्टम के बाहर से आया था. ये वैसे ही है कि जो चीज़ आपको दूर सड़क पर देखने को मिलती है वो आपको अपने घर के पिछवाड़े में दिखाई दे जाए. सबसे पहले इसको हवाई के वैज्ञानिकों ने देखा था, उन्होंने उसको हवाईयन भाषा में ये नाम दिया, जिसका मतलब होता है संदेशवाहक. पहले कहा गया कि ये एक कॉमेट है, पर कॉमेट में बर्फ होती है और आइस टेल दिखाई देती है जो इसमें नहीं थी. जब ये घुमते हुए तेज गति से जा रहा था, इसकी चमक कभी कभी १० गुना तक बढ़ जाती थी. चमक हमको तभी दिखती है जब सूर्य के प्रकाश का रेफ्लेकशन हम तक आये. इसका मतलब ये हुआ कि इस ऑब्जेक्ट का जो एरिया प्रकाश को रिफ्लेक्ट कर रहा था, वो घूमता हुए १० गुना तक बढ़ जा रहा था. जिसका एक ही मतलब हो सकता है, कि ये ऑब्जेक्ट फ्लैट है. पैन केक के जैसे. सिगार के जैसे नहीं , जैसा की कुछ लोगों ने बताया. फिर जब ये सूर्य के पास से गुजरा तो इसकी गति बहुत तेजी से बढ़ी. तब मैंने गहन स्टडी करके एक साइंटिफिक पेपर में बताया कि ऐसा सूर्य के प्रकाश से मिली गति के कारण हो रहा है. तो ये एक लाइट सेल हो सकती है. और लाइट सेल प्रकृति नहीं बनाती. सो निष्कर्ष ये निकला कि ये एक कृत्रिम ऑब्जेक्ट ही हो सकता है. कुछ महीने पहले सितम्बर २०२० में बिलकुल ऐसा ही एक और ऑब्जेक्ट दिखा है. पर बाद में मालूम पडा ये हमारा ही राकेट बूस्टर था जो स्पेस में पहुच गया था. मतलब इस बार हम जान पाए ये क्या है, पर ओमुआमुआ के बार में अभी तक ऐसी कोई जानकारी मिल नहीं पाई है.
सवाल : मैंने आपका पेपर पढ़ा है, और आपकी किताब भी. ये भी लिखा है कि ओमुआमुआ स्थिर है पर हमारा सोलर सिस्टम स्पेस में तेज गति से मूव करता है, इसलिए ये ओमुआमुआ से टकरा गया?
जवाब : जी, ये ऑब्जेक्ट सोलर सिस्टम के फ्रेम ऑफ़ रिफरेन्स में नहीं था इसलिए ये बहार का ही है, पर हाँ इसके बारे में एक और ख़ास बात थी, कि ये लोकल स्टैण्डर्ड ऑफ़ रेस्ट के फ्रेम के हिसाब से स्थिर था. ये फ्रेम आपको तब मिलता है जब आप सारे तारों की गति का हिसाब लगायें, और शून्य गति वाले बिंदु तक पहुँच जाएँ. ये वहां पर स्थिर था. आस पास के ५०० तारे गतिशील थे. सो इसके किसी तारे से आने की संभावना न के बराबर है. हमारा सूर्य जो की स्पेस में बहुत तेज गति से मूव करता है, इससे आ टकराया.
सवाल : फिर अगला सवाल उठता है, जैसा की फर्मी के पैराडॉक्स में कहा गया – सब लोग कहाँ हैं? क्या आपको लगता है कि अब हम इस सवाल का जवाब खोज पाएंगे?
जवाब : हाँ, इसपर मैं कहूँगा की फर्मी पैराडॉक्स मेरे हिसाब से थोडा घमंड वादी है. मेरी पत्नी के बहुत सारे मित्रों की ख्वाहिश थी कि एक राजकुमार सफ़ेद घोड़े पर उनसे शादी करने आएगा. पर ऐसा हुआ नहीं. हम हमेशा ऐसा क्यूँ सोचते हैं कि हम बहुत ख़ास हैं? कोई हम से मिलना क्यों चाहेगा? इतने दशकों से खगोलीय वैज्ञानिक होकर मैंने एक ख़ास चीज़ सीखी है, जो है विनम्रता. यूनिवर्स बहुत बड़ा है. कोई भी सभ्यता बहुत थोड़े समय के लिए जीती है. जन आप सड़क पर चलते हैं तो आस पास के कीड़े मकोड़ों से मिलते बतियाते हुए नहीं चलते हैं. हो सकता है बाकी सभ्यताएं कभी रही हों, पर कब की समाप्त हो चुकी हों. यूनिवर्स के ज्यादातर तारे सूर्य से बहुत पहले बन चुके थे. अरबों साल पहले. इसलिए बहुत सी सभ्यताएं जो पहले रही होंगी, अब तक समाप्त हो चुकी हैं. हम रेडियो सिग्नल से उनको ढूंढ रहे थे. पर इतनी पुराणी सभ्यताओं के सिग्नल भी अरबों साल पहले समाप्त हो चुके होंगे. आप बस उनसे ही बात कर सकते हैं जो आपके समय के आसपास जीवित हैं, जैसे आप फ़ोन पर बात करते हैं. आज आप अगर चाहें कि माया सभ्यता से फ़ोन पर बात कर लें, तो आप नहीं कर सकते. क्योंकि वो समाप्त हो चुके हैं. पर आपके पास फिर भी उनके होने के सबूत मौजूद हैं. इसी तरह से हमें पुरानी समाप्त हो चुकी सभ्यताओं के चिन्ह पृथ्वी के बाहर मिल सकते हैं. हमें जब कोई वस्तु दिखती है तो हम जान लेते हैं कि प्राकृतिक है या कृत्रिम. हमें आवश्यकता है की हम और ज्यादा कैमरा लगाये, ताकि जब अगला ऐसा अजीब ऑब्जेक्ट हमें दिखे, तो हम कैमरा से उसका परीक्षण कर पाएं. एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती हैं, पर मेरे लिए ये ६६ हज़ार शब्दों के बराबर है, क्योंकि मेरी किताब में तने ही शब्द हैं. अगर मेरे पास ओमुँमुआ का फोटो होता तो ६६ हज़ार शब्द न लिखता. पर आजकल के बहुत से वैज्ञानिक ऐसी खोज पर बात भी नहीं करना चाहते. और मैं इसपर खुश नहीं हूँ. ज्यादातर तारे सूर्य के जैसे हैं और सबके ग्रह भी हैं, वो भी उतनी दूरी पर जितनी हमारी सूर्य से हैं. जब परिस्थिति एक जैसी है तो किसी तारे के आसपास जीवन भी एक जैसा हो सकता है. हमने सोचा था कि हम यूनिवर्स का केंद्र हैं, ये सब झूठ था. हमें सच के लिए तैयार रहना चाहिए.
सवाल : तो अगला इससे जुडा सवाल, अमरीका की कुछ एजेंसियों ने ये माना है की कुछ UFO बाहर से आयी हो सकती हैं. एक अमेरिकन अखबार के खुलासे के बाद उन्हें मानना पडा. क्या हम अपने जीवन में बुद्धिमान एलियंस को देख पाएंगे?
जवाब : मुझे लगता है कि अगर हम अंधे बने रहने का नाटक करते रहेंगे, तो ऐसा कुछ कभी देख नहीं पाएंगे. वैज्ञानिक छूटते ही कहते हैं, एलियंस हो ही नहीं सकते. इसके बाद ही वे आगे बात करना शुरू करते हैं. वो ख़ास सबूत मांगते हैं. पर हम ऐसे ख़ास सबूत कैसे जुटा पायंगे जब हमें इसके लिए फंडिंग ही न मिल पाए? जब नए वैज्ञानिकों को धमकाया जाता रहेगा कि वो ऐसा कुछ सोचें ही न? आजकल वैज्ञानिक स्वम्भू बने हुए हैं. जहाँ तक UFO रिपोर्ट्स की बात है, उनमें से ज्यादातर के गवाह होते हैं. इसलिए मुझे अमेरिकन सरकार के दस्तावेजों में उतनी रूचि नहीं है. मुझे लगता है की हमें मॉडर्न कैमरे लगाकर, ऑडियो सेंसर लगाकर उन जगहों की जाँच करनी चाहिए. गवाहों के बयानों मात्र से कुछ मिलने वाला नहीं है. प्रयोग करने होंगे. जैसे कुछ बच्चों को बड़े बताते रहते हैं कि ये करो, वो करो. पर बचे अपने मन की ही करते हैं. हमें वही करना है. आँखें खुली रखकर हर पहलू को जांचना है. किसी के मना कर देने पर मान नहीं जाना है. अब हमारे पास बहुत बढ़िया कैमरे हैं. बहुत अच्छा काम किया जा सकता है.
सवाल : इस साल हम जेम्स वेब टेलिस्कोप आकाश में स्थापित करने जा रहे है. उससे आपको कितनी संभावनाएं दिखती हैं?
जवाब : हाँ कुछ मदद मिल सकती है, पर वो एक नैरो फील्ड वाला टेलिस्कोप है. आकाश के बड़े हिस्से पर नज़र रखने के लिए आपको ब्रॉड व्यू वाला टेलिस्कोप चाहिए. तीन साल के अन्दर वेरा रूबिन ऑब्जर्वेटरी आने वाली है. ये इतना शक्तिशाली होगा कि हर महीने ओमुँमुआ जैसा एक ऑब्जेक्ट ढूंढ सकता है. फिर हम इन ख़ास ऑब्जेक्ट का परीक्षण कर सकते हैं. मैं भविष्य को लेकर बहुत उत्साहित हूँ, पर ये सब तभी हो पायेगा जब हम वैज्ञानिक खुलकर बातें करें. पुराने ज़माने में बहस होती थी की मानव शरीर को नहीं चीरना चाहिए क्योंकि उसमें जादुई शक्तियां हैं, अन्दर आत्मा भी है. तब अगर वैज्ञानिक कहते कि हम तो मानव शरीर के बारे में बात नहीं करेंगे, तो चिकित्सा विज्ञान का क्या होता? इसलिए ये विज्ञान का कर्त्तव्य है कि हम अपने नज़रिए को खुला रखें.
सवाल : मैं इस बारे मैं कुछ लेख पढ़ रहा था. वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे पास बहुत स्पष्ट सबूत होने चाहिए, प्रयोगिक तौर पर सिद्ध किया हुआ सिद्धांत होना चाहिए. तभी हमें बात करनी चाहिए. ऐसी बातों को आप किस तरह लेते हैं?
जवाब : मेरा मानना है बहुत ज्यादा रुढ़िवादी होना हमें पीछे ले जाता है. हमारे पास जब डाटा है तो हमें उसपर बहस करनी चाहिए. किसी को ओमुँमुआ हाइड्रोजन का क्लाउड लगता है, किसी को कॉमेट. हालाँकि वैज्ञानिक रूप से ये साफ़ हो गया कि ऐसा नहीं है. आपको पता है गलीलियो को विज्ञान की नयी बातें करने के लिए गिरफ्तारी में रखा गया था. हमें जिद्दी नहीं होना चाहिए. जो हमें दिख रहा है उसपर बात करनी चाहिए. जैसे की डार्क मैटर की बात है, किसी को मालूम ही नहीं की वो क्या है. अगर हम दिमाग खुला रखकर सारी संभावनाओं की बात नहीं करेंगे तो सच्चाई तक कैसे पहुंचेंगे? ऐसे ही बहुत से रहस्यमय चीजे हैं, जैसे मल्टी वर्स और स्ट्रिंग थ्योरी. उसपर तो वैज्ञानिक बात करने को तैयार है, जिसका कोई साक्ष्य नहीं है. पर बाकी चीजों पर नहीं.
सवाल : जी यह एक अजीब स्थिति है. वैज्ञानिक बिना आधार वाली चीजों की काफी बातें कर रहे हैं. पर जिसका साक्ष्य है उससे ऑंखें मूंदे हुए हैं. जहाँ तक मैंने आपकी किताब पढ़ी है, उसमें कोई हवाई दावा नहीं है, बल्कि और अधिक प्रयोग करने की ज़रुरत पर बल दिया गया है.
जवाब : जी बिलकुल, आप कैमरे लगाकर उसको देख सकते हैं, प्रोव भेज सकते हैं. बहुत से तरीके हैं. मल्टी वर्स वगैरह को साबित करने का ऐसा कोई तरीका है ही नहीं. जैसे सुपर सिमिट्री के सिद्धांत को LHC में टेस्ट किया गया. उसका कोई साक्ष्य नहीं मिला. अब वो कहते हैं कि अच्छा जब नहीं मिला तो थ्योरी में थोडा बदलाव कर लेते हैं. अब दूसरी तरह से उसको सिद्ध करने का प्रयास हो रहा है. कुल मिलाकर बात ये है कि जब तक आप पूरी तरह से अपने आपको इसमें झोंक नहीं देते, आपको नतीजे नहीं मिलने वाले. एक वैज्ञानिक का काम होता है कि वो प्रकृति की व्याख्या करे, न कि अपने आप को स्मार्ट सिद्ध करने की कोशिश करे.
सवाल : अवि, भारत में आपके काम को लेकर बहुत उत्साह और चर्चा है. क्या आपकी किताब एक्स्ट्रा टेरेसट्रीयल ठीक दाम पर भारत में उपलब्ध होगी? क्या आपके प्रकाशक का ऐसा कोई प्लान है?
जवाब : हाँ, आपके लिए UK वाला वर्ज़न है. मैं अपने प्रकाशक को फिर से बोलूंगा कि भारत में वो आसानी से उपलब्ध हो. यह किताब २० से अधिक देशों में वितरित हो रही है. प्रकाशित होने के कुछ दिन में ही हमारी किताब न्यू यॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलर लिस्ट में सातवें स्थान पर पहुँच गयी है. जोकि बराक ओबामा और मिशेल ओबामा की किताबों के बीच में है. न्यू यॉर्क टाइम्स ने अपनी समीक्षा में इसकी बहुत तारीफ की है, और आज ही एक सम्पादकीय भी लिखा है, और कहा है “एलियंस ज़रूर मौजूद हैं”. एक घंटे पहले बीबीसी ने मुझसे पूछा कि मैं अभी के वैज्ञानिक कल्चर को मैं कैसे देखता हूँ. मुझे लगता है कि आने वाली जनरेशन को नए तरीके से काम करना होगा, ज्यादा से ज्यादा रिस्क लेना होगा.
सवाल : आखिर में भारत के लोगों को कुछ कहना चाहेंगे?
जवाब : मेरे बहुत से साथी वैज्ञानिक भारत से हैं. मनस्वी लिंगम के साथ मैने एक हज़ार पेजेज की एक पाठ्य पुस्तक भी लिखी है जो ६ महीने के बाद आयेगी. यह कई तरह की एलियन सभ्यताओं के बारे में बात करेगी जैसे कि साधारण माइक्रोबियल से लेकर उन्नत सभ्यताओं वाले एलियन. इसके अलावा हंसा पद्मनाभन के साथ मैंने कई पेपर्स लिखे हैं. मुझे लगता है भारत में बहुत प्रतिभा है. मुझे उम्मीद है भारत के ज्यादा से ज्यादा बच्चे वैज्ञानिक बनेंगे.
सवाल : धन्यवाद अवि, आपने हमें इतना समय दिया उसके लिए. आपको आने वाले किताब के लिए बहुत बहुत शुभ कामनाएं.
जवाब: धन्यवाद, आपसे बात करके अच्छा लगा.
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