उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने उन लोगों के लिए नए अवसरों के रास्ते खोल दिए हैं, जो एक साथ दो रोज़गार करना चाहते हैं। प्रदेश सरकार ने निर्धारित नियमों का अतिक्रमण करते हुए दर्जियों, निजि सचिवों, यात्रा एजेंटों, स्थावर संपदा (रियल एस्टेट) एजेंटों, सेवानिवृत्त सरकारी लिपिकों, फास्ट फूड बेचने वालों, फार्मेसिस्टों, शिक्षकों, राजनीतिज्ञों के पुत्रों और यहां तक कि हत्या के आरोपियों को भी पत्रकार के रूप मान्यता दे दी है। नियमानुसार पांच साल तक लगातार पत्रकारिता का अनुभव रखने वालों को ही मान्यता दी जा सकती है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार हाल के महीनों में 150 से अधिक ऐसे लोगों को अखिलेश सरकार ने मान्यता दी है, जिनका पत्रकारिता से कोई बहुत अधिक लेना-देना नहीं है। उदाहरण के लिए, ज्ञानेन्द्र सिंह, जो कि रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैय्या के पीआरओ के रूप में काम करते हैं, उन्हें भी राज्य स्तरीय पत्रकार के रूप में मान्यता दी गई है। उनका कार्ड नंबर 495 है। ज्ञानेन्द्र कथित रूप से एक उर्दू समाचार पत्र के संवाददाता हैं लेकिन सूत्र बताते हैं कि वह उर्दू लिख-पढ़ नहीं सकते।
राज्य सूचना विभाग के करीब 90 फीसदी कर्मचारी अपने पारिवारिक सदस्यों के नाम से समाचार पत्रों का प्रकाशन कर रहे हैं और हर महीने अपने वेतन से दोगुना पैसा अपने ही समाचार पत्र में विज्ञापन छाप कर बना रहे हैं। एक सचिवालय लिपिक, जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुआ है, उसने तुरन्त ही मान्यता ले ली। इस मान्यता के सहारे वह अत्यधिक सुरक्षा वाले सरकारी कार्यालयों में जा सकता है और उसने एक सरकारी आवास भी हथिया लिया है। विभाग ने बहुत से गैरजिम्मेदार संपादकों को भी मान्यता दे रखी है। पत्रकारिता में अचानक पैदा हुई इस रुचि का कारण ये है कि इसके माध्यम से आप बड़े नेताओं तक पहुंच बना सकते हैं। आप छोटे-छोटे समाचार पत्रों के माध्यम से पैसा बना सकते हैं जो कि तभी छपते हैं, जब उन्हें विज्ञापन मिले।
एक वरिष्ठ पत्रकार ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे लोगों को नियम कायदे ताक पर रख कर मान्यता दी जा रही है। लोकल इंटेलीजेंस की रिपोर्ट को या तो जांचा नहीं जा रहा है या फिर उसकी उपेक्षा की जा रही है। उन्होंने कहा कि हम ऐसे लोगों के साथ प्रेस गैलरी में बैठने में असहज महसूस करते हैं लेकिन कुछ कर नहीं सकते। सूत्रों ने बताया कि ज्यादातर मान्यताएं समाजवादी पार्टी के कार्यालयों की सिफारिशों पर दी गयी हैं। सत्ताधारी पार्टा के ऑफिसों के चपरासियों और ड्रइवरों की सिफारिशों पर भी राज्य सूचना विभाग ने मान्यताएं दी हैं।
उल्लेखनीय है कि लखनऊ के दो ऐसे पत्रकारों को भी मान्यता दे दी गयी है, जो हत्या के आरोपी हैं लेकिन अपने मान्यता कार्ड के सहारे उन्हें मुख्यमंत्री के दफ्तर के अन्दर-बाहर टहलते हुए देखा जा सकता है। ऐसे ही दो फर्जी पत्रकारों का हाल ही में विधानसभा में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था। दोनों पत्रकारों को विधान सभा की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग करते पकड़ा गया था। लखनऊ में पदस्थ एक आईबी अधिकारी ने बताया कि ऐसे फर्जी पत्रकार जिन्होंने रिश्वत के माध्यम से कार्ड प्राप्त किए हैं, मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं।
आईब अधिकारी ने बताया कि उन्होंने सरकारी अधिकारियों को इस ख़तरे से आगाह कर दिया है लेकिन इस संबंध में कोई भी कुछ नहीं कर रहा है क्योंकि यह सारी मान्यताएं सत्ताधारी दल की सिफारिशों पर ही दी गयी हैं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि उन्होंने करीब एक दर्जन पत्रकारों के बारे में सूचनाएं इकट्ठी की हैं, जिन्होंने अचानक ही बहुत संपत्ति अर्जित कर ली है और जिनकी गतिविधियां संदिग्ध हैं।
लखनऊ के एक भूतपूर्व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने बताया कि नेताओं की सिस्टम की सफाई में कोई रुचि नहीं है क्योंकि वही सिस्टम को गंदा कर रहे हैं। और जब कोई दुर्घटना हो जाती है, तब वे पुलिस को दोष देते हैं। सूचना विभाग के एक पूर्व निदेशक ने बताया कि बहुत से ऐसे लोग रातो-रात पत्रकार बन गए हैं, जो कभी इस काबिल नहीं थे। हाल ही में सूचना विभाग से 46 पत्रकारों की मान्यता से संबंधित फाइलें गुम हो जाने के चलते एक अधिकारी को हटा दिया गया था लेकिन इस संबंध में कोई और कार्यवाही नहीं की गई।
रमेश राजदार ई-मेल संपर्क : [email protected]