नीरू जैन-
डिजिटल कंटेंट के क्षेत्र में बहुत से कैटेगरी हैं जिनमें मनोरंजन, राजनीति ,धर्म ,पत्रकारिता ,साइंस, फिक्शन इत्यादि होता है। बहुत से यूट्यूबर अपनी रुचि और क्षमता के हिसाब से कंटेंट बनाकर अपने चैनल पर डालते हैं। वे लोकप्रिय भी होते हैं। यह कमाई का साधन भी है। इसी श्रृंखला में सुचेष्टा सिंह और उनकी सहयोगी का यूट्यूब चैनल ‘पुष्पा जिज्जी’ के नाम से लोकप्रिय है।
Read more: ‘पुष्पा जिज्जी ‘ का यूट्यूब चैनलइस चैनल का विषय राजनीति पर व्यंग्य टिप्पणी है। भाषा बुंदेली है। सुचेष्टा सिंह और उनकी सहयोगी दोनों घरेलू महिलाओं की भांति, दो बहनों के किरदार में, घर में बैठे हुए मजेदार बातचीत के द्वारा राजनीति पर चुटीला व्यंग्य करती नजर आती हैं। वे दोनों घरेलू महिलाओ की भांति ही साड़ी, सिर पर पल्लू, मेकअप के गेटअप में रहती हैं। बातचीत करने का स्टाइल बिल्कुल घरेलू महिलाओं के जैसा है। इसमें पुष्पा थोड़ी शांत,गंभीर, ठहरी हुई सोच की महिला दिखती हैं। पद्मा चंचल, बहुत बोलने वाली, अधीर नजर आती है। यह 1:30- 2 मिनट की रील्स बनाती हैं ,जिनके मुद्दे समकालीन रोजमर्रा की राजनीति से होते हैं।
धर्म, राजनीति ,धर्म की राजनीति और हिंदू राजनीति पर लिखने या डिजिटल कंटेंट बनाने वालों की एक बड़ी जमात है। इसमें गंभीर किस्म के अध्येताओं से लेकर, लेखक, हल्की -गंभीर कविताएं करने वाले कवि और कंटेंट क्रिएटर शामिल हैं। यह सभी किसी न किसी एक आधार को लेकर अपना काम करते हैं। इस भीड़ में पुष्पा जिज्जी की बतकही अपने अनूठेपन के कारण ध्यान खींचती है।
दो-तीन वजहों से मुझे इनके कंटेंट में अनूठापन नजर आता है। इसमें पहली वजह है- इनके कंटेंट की भाषा का बुंदेली होना अर्थात एक क्षेत्र विशेष में बोली जाने वाली देसी बोली। क्षेत्रीय बोली क्षेत्र विशेष के लोगों से जुड़ने का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह स्थानीय राग को व्यंजित करती है। एक अन्य अर्थ में बोली लोगों से जुड़ाव को, उन्हें चेतना संपन्न बनाने का जरिया भी है। पुष्पा जिज्जी में यह दूसरी वजह अधिक बलवती प्रतीत होती है। शिक्षा तथा अपने परिवारिक माहौल के कारण उनमें जो राजनीतिक चेतना बनी, उसे बुंदेली के द्वारा उन लोगों में प्रसारित करना जिन्हें चेतना संपन्न होने के उतने अवसर नहीं मिले।
पुष्पा जिज्जी के टारगेट ऑडियंस हैं घरेलू महिलाएं। मामूली पढ़ी-लिखी या अधिक से अधिक बीए की शिक्षा प्राप्त महिलाएं। ये महिलाएं 35 वर्ष की उम्र के बाद घर गृहस्थी की दुनिया में इस कदर रम जाती हैं कि पिछले जीवन की पढ़ाई उन्हें पिछले जन्म की याद सरीखी लगती है। कपड़ों, बर्तनों, खाना बनाने, सब्जी, मसालों और रिश्तेदारों की दुनिया ही उनकी दुनिया हो जाती है। यह जीवन उनकी शरणगाह भी है और चेतना की दृष्टि से देखें तो कब्रगाह भी। वे अपने जीवन के निर्णय लेने में पति या घर के पुरुषों पर बुरी तरह निर्भर होती हैं। दीन दुनिया की खबर उन्हें पुरुषों के नजरिए से सुनने को मिलती है। इस बात में उनके लिए भली-बुरी , दोनो संभावनाएं हैं। ऐसी स्त्रियों के कानों में जब राजनीति के रोजमर्रा के मुद्दे सुनाई देते हैं तो वे उन्हें किस प्रकार ग्रहण करेंगी, उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी, क्या वे ऐसे मुद्दों से स्वयं को जोड़ सकेंगी, पुष्पा जिज्जी का चैनल इस चेतना का प्रसार करता है।
पुष्पा और पद्मा दो बहनों या देवरानी जेठानी की भांति घरेलू बातचीत करती हैं। बहुधा वे हां में हां मिलाने के स्टाइल में कभी एक तो कभी दोनों व्यंग्य विषय की स्तुति करती हैं। पर पाठक को तुरंत ही समझ आ जाता है कि महिमागान के नाम पर टांग खिंचाई हो रही है। इस बात को व्यक्त करने में दोनों की विदग्धता , वाकपटुता और कौशल कमाल का है।
अपनी रील्स के माध्यम से पुष्पा जिज्जी महिलाओं में जिन मूल्यों का प्रसार करती हैं वे हैं- निर्भीकता ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,अपने हक के लिए खड़े होने का साहस। नारीवाद के बहुत से रूप हमारे बौद्धिक वर्ग में प्रचलित हैं । इनमें से कई गंभीर आक्रोश के स्वर में अपनी बात कहते हैं। पुष्पा जिज्जी यह कार्य हँसी- हँसी में कर जाती हैं।
देखें ये पुष्पा जिज्जी का चैनल-