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साहित्य

पुतिन पागल आदमी है, सिक है और पैरासाइट है : आलोक धन्वा

पंकज चतुर्वेदी-

संघर्षधर्मी कवि आलोक धन्वा के यूक्रेन पर हुए रूसी हमले पर विचार…

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आज आलोकधन्वा ने कहा: “ये जो यूक्रेन पर हमला किया है पुतिन ने, पागल है यह आदमी, ‘सिक’ है और ‘पैरासाइट’ है।”

मैंने पूछा : ‘पैरासाइट’ क्यों कह रहे हैं?

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आलोकधन्वा बोले : “इसलिए कि हथियारों का सौदागर है वह, उन्हीं के बल पर आगे बढ़ना चाहता है, और उसने किया क्या है हथियार इकट्ठा करने के अलावा? उत्पादन का कोई तंत्र विकसित नहीं किया।

“वह याद नहीं करना चाहता कि रूस में ज़ारशाही कई सदियों पुरानी थी और कितनी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी, तब बोल्शेविक क्रांति हुई। लेनिन के नेतृत्व में एक नया देश बना था। अंग्रेज़ी लेखक एच. जी. वेल्स जब मॉस्को गये, तो उनसे मिले। उन्हें आश्चर्य हुआ कि रात के दो बजे भी वह जाग रहे थे, क्रेमलिन में उनके आवास में रोशनी थी। .. लेनिन मामूली कोट-पैंट पहने हुए, टिन के मग में क्वास (रूसी पेय) पी रहे थे।

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“अब पुतिन ने युद्ध शुरू कर दिया है। युद्ध के सबसे ज़्यादा ‘विक्टिम’ वे होते हैं, जो रोज़ रोटी कमाते और खाते हैं। किसानों, मज़दूरों और बाज़ार पर निर्भर कमज़ोर निम्न वर्गों को भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। युद्ध सिर्फ़ आगे के मोर्चे पर नहीं लड़ा जाता, उसमें पीछे रहनेवाली स्त्रियाँ, बच्चे और बूढ़े सबसे ज़्यादा पीड़ा पाते हैं।

“युद्ध का मतलब क्या है? कि दुनिया के सबसे ताक़तवर देश तय करते हैं कि हम कैसा जीवन जियेंगे: गैस, तेल और रोज़मर्रा की ज़रूरत के दूसरे सामान किस दाम पर बिकेंगे! जिसके पास ताक़त होगी, दुनिया उसकी होगी। यही मतलब है इसका और इससे सबसे ज़्यादा निराशा लिखने-पढ़ने वाले लोगों को होती है, क्योंकि किताबों का, मानवीय ज्ञान का सबसे ज़्यादा निषेध हिंसा करती है।

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“टॉल्सटॉय ने एक शब्द नहीं लिखा है युद्ध के समर्थन में, जबकि ख़ुद उन्हें एक बार लड़ाई में जाना पड़ा था। आप मेरे जैसे कवि से क्या अपेक्षा करते हैं कि मैं युद्ध का समर्थन करूँ और प्यार और शांति की बात न करूँ, जो कि सबसे ज़रूरी बात है? हिंदी का कोई साहित्यकार जाना चाहेगा युद्ध में? रेणु हथियार लेकर लड़े थे, नेपाल की राजशाही के ख़िलाफ़।

“लोगों ने दुनिया को सुंदर बनाने के लिए कितनी ऊँचाइयाँ हासिल कीं! युद्ध करनेवाली ताक़तें इन ऊँचाइयों की शत्रु हैं। अगर सबसे सस्ती कोई चीज़ उनके लिए है, तो वह आदमी की जान है। वे हमेशा दिमाग़ चलाते रहते हैं कि कैसे इनसानों को मारा जाए, कैसे उनकी संप्रभुता ख़त्म की जाए! यह सबसे बड़ा तमाशा है उनके लिए। उन्हें सबसे प्रिय है: मनुष्य को मारने का तमाशा। …

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आलोकधन्वा;

प्रस्तुति: पंकज चतुर्वेदी

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