नीरज शर्मा–
वरिष्ठ रंगकर्मी, आकाशवाणी
मैं एक श्रोता था,श्रोता हूँ और श्रोता रहूँगा। बचपन में हमारे घर में एक छोटा सा रेडियो होता था जो ऊँचाई पर रखा रहता था और मैं एक स्टूल पर एक टाँग पर खड़ा होकर रेडियो नाटक सुना करता था। एक पैर थक जाता तो पैर बदल लेता था। समय ने करवट ली और मैं आकाशवाणी पहुँच गया और रेडियो नाटक की स्वर परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। ये था सन १९७३ ।
वहाँ मुझे मिले स्वर्गीय सत्येन्द्र शरत, मेरे मेंटोर जिन्होंने मुझे रेडियो नाटक की विधा सिखाई। आकाशवाणी केअनेक दिग्गजों के सानिध्य में मैंने रेडियो नाटक के फूलने का सहभागी बना। मैंने जब जब पिछले मुड़ कर देखा तोमुझे अनेक सोपान पीछे दिखे और अपने आप को रेडियो नाटक नए अध्यायों से गुजरता पाया । इस बीच मेरे अनेक नाटकों को आकाशवाणी वार्षिक पुरस्कार भी मिला। ये बात और है कि कलाकारों को कोई सम्मान नहीं मिला। हाँ! कभी चाय समोसा मिल जाता था। अब तो ये भी नसीब नहीं होता।
मृदुला गर्ग द्वारा लिखित नाटक “ एक और अजनबी “ नामक मेरे पहले नाटक को आकाशवाणी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था शायद १९७५ में जिसके निर्देशक थे स्वर्गीय सत्येन्द्र शरत। मैं पिछले ५ दशक से रेडियो नाटक से जुड़ा हूँ और मैंने हज़ारों नाटकों में भाग ही नहीं लिया बल्कि नाटकों और धारावाहिकों का निर्देशन भी किया है।
पिछले समय में नाटकों की जमकर रिहर्सल की जाति थी, नाटक पर बातचीत होती थी तब कहीं रेकार्ड किया जाताथा। लेकिन आज आलेख हाथ में आया, स्टुडियो में गए, एक दो पेज पढ़े और कहा जाता है कि आइये माइक्रोफ़ोन पर। किसी के पास टाईम ही नहीं है। नाटक की गुणवत्ता जाए भाड़ में।
आकाशवाणी में प्रोग्राम स्टाफ़ और इंजीनियरिंग स्टाफ़ में सदा गतिरोध रहा है जिसका परिणाम है रेडियो नाटक का अनाथ हो जाना।
रेडियो नाटक को स्थापित करने वालों में प्रमुख हैं सर्वश्री एस एस एस ठाकुर, गंगा प्रसाद माथुर, एफ सी माथुर, अनवर खाँ, पद्मश्री चिरंजीत, सत्येन्द्र शरत, दीना नाथ, विश्वप्रकाश दीक्षित बटुक, कुमुद नागर, भारत रत्न भार्गव इत्यादि। इन दिग्गजों के योगदान को नकारना मूर्खता का परिचय देना होगा। इन सभी महान दिग्गजों के साथ कामकरने का सौभाग्य मुझे प्राप्त है। इन सभी के साथ काम करके रेडियो नाटक करने की मेरी बुनियाद मज़बूत हुई।
क्या आकाशवाणी ने इनके अतुलनीय योगदान को सराहा। नहीं!
आकाशवाणी दिल्ली के स्टुडियो कॉरिडोर में लगी तस्वीरों में से एक भी तस्वीर इनमें से किसी की नहीं है। सारी तस्वीरें संगीत के दिग्गजों की हैं। बहुत अच्छी बात है परन्तु आकाशवाणी में नाटक से सौतेला व्यवहार क्यों? ये सौतेला व्यवहार आकाशवाणी में हमेशा से होता आ रहा है । रेडियो नाटक में कलाकार की फ़ीस अधिकतम ३४००रुपये है जबकि संगीत कलाकारों की फ़ीस कई गुना अधिक।
क्यों?
आकाशवाणी में रेडियो नाटक को कुचला गया है। भारत सरकार ने दो महत्वपूर्ण विभाग बनाए हैं। संगीत नाटक अकेडमी और गीत एवम् नाटक प्रभाग यानि संगीत और नाटक दोनो आवश्यक हैं तो फिर आकाशवाणी में रेडियो नाटक का तिरस्कार क्यों?
बात यहीं समाप्त नहीं होती। अब तो आकाशवाणी में मुझ जैसे वरिष्ठ नाटक कलाकार को अपमानित और प्रताड़ित भी किया जाता है और आकाशवाणी के अधिकारी मूक दर्शक बने रहते हैं।
१२ मार्च २०२१ को आकाशवाणी दिल्ली के स्टूडियो नम्बर एक में मेरे साथ ऐसा ही किया गया और ऐसा करने वाले बहुत ही जूनियर कलाकार थे। वैभव श्रीवास्तव, निखिल दीवान।
दरसल मुझे विज्ञान प्रभाग के एक धारावाहिक की १३ कड़ियों के निर्देशन के लिए बुलाया गया था। श्रुति पुरी मेरी सहायक थीं। जब मैंने इन दोनो को संवाद सही प्रकार बोलने को कहा तो इन दोनों ने मुझे ना केवल अपमानित किया बल्कि प्रताड़ित करने की पराकाष्ठा पार कर गए।
मैं जानता हूँ कि ये दोनों वहाँ के सम्बद्ध अधिकारियों के ब्लू आइड बोयज़ हैं इसीलिए किसी ने कुछ नहीं कहा और मैं अपमान का कड़वा घूँट पीकर अपनी इज़्ज़त बचाकर वहाँ से चला आया। परिणामस्वरूप मुझे ही उस सायं धारावाहिक से निकाल दिया गया।
तदुपरांत मैंने सी ई ओ प्रसाद भारती को इस बाबत एक मेल भेजी मार्च १२, २०२१ को। कोई जवाब नहीं। दस दिन बाद रिमाइंडर भेजा। कोई जवाब नहीं। फिर रिमाइंडर भेजा। तब जाकर जवाब आया की हम इसको देख रहे हैं। आप बार बार मेल ना भेजें।
मैं इंतज़ार करने लगा। २ अप्रैल को सायंस सेल के पैक्स की मेलआयी।जिसमें लिखा था की हमने आपकी बात उनदोनो कलाकारों तक पहुँचा दी है ! बस आकाशवाणीकी ज़िम्मेदारी की यही लक्ष्मण रेखा है कि अपने जीवन केपचास वर्ष रेडियो नाटक के लिए आकाशवाणी को देने वाले वरिष्ठतम कलाकार का चाहे अपमान हो, उसे चाहेआकाशवाणी के स्टूडीओ में उसे प्रताड़ित किया जाए परन्तु उनके ब्लू आइड ब्वायस वैभव श्रीवास्तव और निखिलदीवान को कुछ नहीं होना चाहिए। अनेक वर्षों से रेडियो नाटक को दबाया कुचला और नष्ट किया जा रहा है।
इसका जीता जागता प्रमाण मेरे साथ घाटी घटना ही नहीं है बल्कि आकाशवाणी के स्टूडीओ कोरिडोर में लगे चित्रों में एक भी रेडियो नाटक की विभूतियों का ना होना है। संगीत के कलाकारों के मुक़ाबले रेडियो नाटक के कलाकारों की फ़ीस कई गुना कम होना।
आकाशवाणी का ये लिंक है :
MAKE RADIO YOUR COMPANION – ADVERTISE ON RADIO TO REACH EVERYWHERE
Call 15102 – All India Toll Free Number for all queries concerning Commercial Services
Log on to www.allindiaradio.org for information regarding All India Radio
Log on to www.airworldservice.org for latest information regarding External Services of All India Radio
Log on to www.prasarbharatiarchives.co.in for online purchase of AIR & DDK archives
इस लिंक में रेडियो नाटक कहीं नहीं है। कहाँ हैं पिछले ७० के नाटकों का इतिहास? कहाँ है उन नाटकों की रिकॉर्डिंग जो हम एक पांव पर खड़े होकर सुनते थे?
नाट्यवेला, लहरें, म्यूज़िक मास्टर भोला शंकर, लोहा सिंह, ढोल की पोल, मुंतियास पहलवान , शद्दू ख़लीफ़ा , बहरी बिरादरी, आवाज़ की दुल्हन, चण्डीदास और ऐसे हज़ारों नाटक तब के और अबके जो हमने किए। क्या इन्हें लायब्रेरी निगल गयी या किसी ने इन्हें नष्ट कर दिया?
२००५ में डिजिटल करने के लिए प्रयास में एक ऑडिट किया गया था। क्या उसमें पता नहीं चला कि डिब्बे तो नाटक के हैं, परन्तु टेप कहाँ हैं?
ये अंधेर नगरी ज़रूर है लेकिन राजा चौपट नहीं है। एक कमिटी बनाकर इसकी खोजबीन होनी चाहिए और कमिटी में आकाशवाणी से बाहर के सिद्धहस्त पेशेवर लोग होने चाहिये!
कहीं ऐसा ना हो कि रेडियो नाटक भी एक दिन मोहन जोदडों और हड़प्पा की खुदाई में सिंधु घाटी की सभ्यता की भाँति निकले और एक दिन ऐसा आए कि किसी प्रसिद्ध संग्रहालय के एक विशेष विभाग में बोतलों में कुछ सैम्पल मिलें जिन पर लिखा हो ‘रेडियो नाटक’।
Comments on “कहाँ ग़ुम हो गए रेडियो के नाटक?”
बेहद दुखद और शर्मनाक। प्रसार भारती के गर्त में जाने की असली वजह यही है कि वहां टैलेंट की बजाय ब्लू आईड बॉयज़ का कल्चर बन गया है।
Definitely one of the worst experience for such a tenured and experienced artist…
Aren’t these institutions trying to bury the legacy of Radio Drama and its renowned artist’s from the past. That’s shameful.
All india Radio Natak vibag insult a very senior Artist Mr Neeraj Sharma who deserve PADAMSHREE FOR HIS CONTRIBUTION TO AIR
Such a shame full act by these people… they are not only shame for our society but they are poisoning our culture… Indian art..our ethics. Such idiotic personalities should not be allowed to work in such reputed organizations as they are ruining its name and fame … pathetic act.
Felt VV bad after reading this article, I feel this is the time to give respect to the legends. Sad to hear the young generation behave unrespectfully to senior legends like Neeraj Sharma ji.
As I have known and seen Mr Neeraj Sharma performing when he was a theatre Artist since1970. Really, a talented personality. If Door Darshan and Prasar Bharti could not make use of his vast experience and practical knowledge then I can only say that they can not differentiate between a stone and a Diamond.