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दैनिक भास्कर में पूरे तीन दशक से अधिक की सेवा के बाद राजाराम जी रिटायर हो गए

Abhishek Upadhyay : राजाराम जी आज रिटायर हो गए। दैनिक भास्कर में पूरे तीन दशक से अधिक की सेवा के बाद। ये तक़दीर ही थी कि मैं, Pankaj Pandey और Pradeep Surin, हम तीनो आज शाम मैसूर कैफ़े में साथ-साथ कॉफ़ी पीकर निकले ही थे। कि सुरीन ने ज़िक्र किया -“आज राजा राम जी का रिटायरमेंट है।”  हम तीनों ही अनायास आईएनएस स्थित भास्कर के ऑफिस की ओर चल पड़े। कभी हम तीनों साथ-साथ इसी अख़बार में थे। आईएनएस के भास्कर ऑफिस का दरवाज़ा खोलते ही राजाराम जी नज़र आए। सभी के बीच बैठे अपने पुराने सालों को याद कर रहे थे। हमे देखते ही एक एक के गले से लिपट गए। एक पल में एक सदी जी लेना जैसा कुछ सामने था। राजाराम जी साल 1987 से लगातार संसद जा रहे हैं। मैं साल 2012 में पहली बार रेगुलर रिपोर्टिंग के लिए संसद गया।

Abhishek Upadhyay : राजाराम जी आज रिटायर हो गए। दैनिक भास्कर में पूरे तीन दशक से अधिक की सेवा के बाद। ये तक़दीर ही थी कि मैं, Pankaj Pandey और Pradeep Surin, हम तीनो आज शाम मैसूर कैफ़े में साथ-साथ कॉफ़ी पीकर निकले ही थे। कि सुरीन ने ज़िक्र किया -“आज राजा राम जी का रिटायरमेंट है।”  हम तीनों ही अनायास आईएनएस स्थित भास्कर के ऑफिस की ओर चल पड़े। कभी हम तीनों साथ-साथ इसी अख़बार में थे। आईएनएस के भास्कर ऑफिस का दरवाज़ा खोलते ही राजाराम जी नज़र आए। सभी के बीच बैठे अपने पुराने सालों को याद कर रहे थे। हमे देखते ही एक एक के गले से लिपट गए। एक पल में एक सदी जी लेना जैसा कुछ सामने था। राजाराम जी साल 1987 से लगातार संसद जा रहे हैं। मैं साल 2012 में पहली बार रेगुलर रिपोर्टिंग के लिए संसद गया।

राजाराम जी मुझे रोज़ ही मिल जाते। हाथों में पार्लियामेंट्री सवाल जवाब के मोटे कागज़ात उठाये। इन्हें वे रोज़ ही पार्लियामेंट से ऑफिस ले जाते थे। न जाने क्या आत्मीयता थी कि जब भी मिलते, यूँ लगता कि सालों से जानता हूँ। दिल के रिश्तों की महक ही अलग होती है। शायद मेरी आँखों में उन्हें दीखता था कि इस पार्लियामेंट के बारे में मैं कुछ भी नही जानता। ईमान और तज़ुर्बे की आंच में पकी आँखें बेहद सच्ची और साफ़ होती हैं। ‘भइया, ये वाली नींबू की चाय ज़रूर पीजियेगा, बहुत अच्छी होती है।” “कभी भूख लगे तो उस वाली कैंटीन में खाना खाइएगा।” ये भी बताते, ” अरे यहां क्या कर रहे हैं, आज राज्यसभा में आपके मंत्रालय की रिपोर्ट पेश हुई, उस कमरे से मिल जायेगी। एक कॉपी मेरे भी पास है।” आज राजाराम जी बोल रहे थे। पिछले 30 सालों में इस एक शख्स ने कितनो को क्या क्या दिया। वक़्त मेरी आँखों के आगे किसी चलचित्र की तरह घूम रहा था।

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एक शख्स जिसका एडिटोरियल से बस इतना ही वास्ता रहा कि वो पूरी नौकरी अपने कंधों पर ‘एडिटोरियल दस्तावेज़’ ढोता रहा। आज जब बोल रहा था, तो मैं स्तब्ध था। “इस रिपोर्टर को ये खबर बताई, उस राज्य की विधानसभा में हंगामा हुआ। उसे वो खबर बताई, उस राज्य की असेम्बली में बवाल हो गया।” ये कोई दावे नही थे। एक भीतर तक झकझोर देने वाली हक़ीक़त थी, जिसके हामी भरने वाले एक नही अनेक थे।

“मुझे सबसे अच्छे संपादक अलोक मेहता लगे। सुख-दुःख पूछते रहते थे। मदद करते थे। हरीश गुप्ता से मेरा झगड़ा हुआ। बड़ा अजीब नेचर था उनका। पर एक बात बोलूं, वो आदमी खबरों का मास्टर था। फोन पर ही पूरी खबर लिखवा देता था।” उस दौर में जब हम लोग ‘समालोचना’ शब्द भूल चुके हैं। या तो सिर्फ तारीफें करते हैं। या सिर्फ गरियाते हैं। राजाराम जी, उस संपादक के एक पहलू विशेष की खुलकर तारीफ़ कर रहे थे, जिसमे उनके सम्बन्ध उतने अच्छे नही रहे।

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“एक किताब लिखना चाहता हूँ मैं। अपने इस पूरे जीवन पर। कभी न कभी लिखूंगा। एक साल। दो साल। तीन साल। कितना भी लगे। पर लिखूंगा ज़रूर।” मैं उस किताब की प्रस्तावना उनकी बूढ़ी आँखों में पढ़ रहा था। जिसकी पहली ही लाइन मोहब्बत और ममत्व की स्याही से पगी हुई थी। “अभी घर नही बैठना चाहता मैं। कुछ भी मिल जाए। पैसे की बात नही। बस काम करना चाहता हूँ। रोज़ कुछ नई जानकारी मिलती है। नए-नए लोग मिलते हैं। सही भी और गलत भी। अगर मेरे लायक कहीं कुछ भी होगा। तो आप लोग ज़रूर देखिएगा। उनकी आँखें एक एक कर हम सभी की ओर घूम गईं।” उनके रिटायरमेंट की कचौड़ी और मिठाई अब भी ज़बान पर रखी हुई है।

निकलते वक़्त एक बार फिर से गले मिले। घर के बूढ़े बरगद की तरह। नई फूटी कोपलों को अपनी ममत्वभरी छाँह में समेटे हुए। उनसे विदा लेकर अब वापिस ऑफिस के रास्ते में हूँ। कानो में बार बार कुछ शब्द गूँज रहे हैं- “मैं अभी घर नही बैठना चाहता। कुछ होगा तो बताइयेगा।” दुआ है और कोशिश भी कि ये ‘कुछ’ जल्द ही सामने आए। राजाराम जी जैसे लोग कभी रिटायर नही होते। उन्हें कभी रिटायर होना भी नही चाहिए।

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इंडिया टीवी में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की एफबी वॉल से.

उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं…

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Pradeep Surin ऑफिस में घुसते ही राजाराम जी के बोलने से पहले ही उन्हें प्रणाम बोलता रहा हूं. कई बार सिर्फ नज़रों नज़रों में ही बातचीत होती थी. आज जब वे अपने तर्जुबे को साझा कर रहे थे तो मुस्कुरा रहे थे. पर शायद पहली बार राजाराम जी की आंखें और गला होंठो का साथ नहीं दे रहे थे. बहुत ही भावुक लम्हा था… संसद के चाय स्टॉल में सबसे ज्यादा उन्हीं की कमी खलेगी… !!!

Pankaj Pandey अभिषेक भाई राजाराम जी के लिए संबोधन ही उनके प्रति सबके आदर को दर्शाता है। शायद ही कोई हो जिसके मुंह से कभी बिना जी लगाये राजाराम निकला हो। भास्कर के सारे पुराने दिग्गजों का इतिहास कितनी बार उन्होंने सुनाया। जब भी मैं ऑफिस पहुँचता था हँसते हुए मेरे पास पहुँच जाते थे चाय का कप और पानी लेकर। साथ में कैसे हैं सर। कभी अपसेट देखा तो तुरंत भांप जाते थे। उन्हें आभास भर हो जाए कौन नाराजगी की वजह है उसका सारा चिटठा मेरे सामने खोलने लग जाते। अरे सर इनका क्या है। ये तो ऐसे ही हैं। बस एक मुस्कान से ही सामना चाहिए था उन्हें। दुःख दर्द जानना, समझना, साझेदार बनना उनकी आदत में शुमार था। कभी खुद भी किसी परेशानी से दो चार हुए तो सीधे मेरे पास चले आते थे। पांडेय जी एक बात कहनी है आपसे। हां राजाराम जी बताइये न। और बस तुरंत मन की बात। मैं भी कहता था अरे कोई बात नही आप चिंता मत कीजिये। कभी कोई हिसाब किताब नहीं। आत्मीयता बेहिसाब ही होती है। यही भाव था कि आज जैसे सुना लगा ही नहीं कि मैं तो दो साल पहले भास्कर छोड़ आया हूँ तुरंत चला गया अभिषेक भाई के साथ उनके विदाई समारोह में। सुरीन धन्यवाद तुमने बताया। संतोष जी ने खड़े होकर हमारा स्वागत करते हुए हमारी झिझक मिटा दी कि अब हम इस ऑफिस का हिस्सा नहीं हैं। सुरीन तो तैयार ही बैठा था। मीनाक्षी जी,गणेश अन्य सभी साथी सबको धन्यवाद। राजाराम जी आपका तो गले लगने का अंदाज कैसे मानस पटल से हटेगा। बहुत शुभकामनायें। आपकी स्वस्थ मंगलकारी यात्रा के अगले पड़ाव के लिए।

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Qamer Baig कलमकार कभी रिटायर्ड नहीं होते पहले पत्रकार फिर कहानीकार ,रचना कार ,इतिहास कार उनकी लिखने की कला में और निखार आता रहता है और अगर कोई आप जैसा साहित्यकार हो शब्दों से खेलने वाला तो फिर सोने पर सुहागा हो जाता है ऐसे लोग फील्ड छोड़ देते हैं लेकिन उनके सोर्स वैसे ही रहते हैं और उनका अनुभव आगे जा कर उनकी लिखी किताबो में नजर आता है. मुझे आज भी याद है की आप उस समय ibn7 छोड़ कर मुम्बई टीवी 9 ज्वाइन किये थे फिर आप ने वंहा से वापस आ कर भास्कर ज्वाइन किया था मैं दिल्ली आया था आप की ऑफिस भी गया आप मिले नहीं और बड़ी मुश्किल से आप का नम्बर लेकर बात भी हुई फिर मुलाकात भी हुई थी खड़े खड़े मिले और चाय भी नहीं पिलाये थे शायद उस समय आप बीजी थे किसी कहानी की तलाश में जाने की तैयारी थी । मैं उस समय न्यूज़ चॅनेल में काम की तलाश में आया था आप से भी कहा था कुछ होगा तो बताइयेगा आज तक किसी भी दोस्त या किसी अपनों ने भी कोई भी मदद नहीं की खुद के अनुभव और काबिलियत पर काम भी मिला और एक अलग मुकाम भी हासिल किया बस येही कहूँगा की दोस्तों का साथ और गुरु का आशीर्वाद बना रहे ।

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