Sushobhit Saktawat : बहुत खेद के साथ यह कह रहा हूं। कोई रजनी मोरवाल हैं। “हंस” में उनकी कहानी “महुआ” छपी है, जिसकी इधर बहुत प्रशंसा हो रही है। जान पड़ता है, यह पूरी कहानी उन्होंने सुशोभित की वॉल से रचनाएं चुरा-चुराकर बना डाली हैं। पूरे पूरे पैरेग्राफ़ उन्होंने उड़ा लिए हैं। रजनी की तो पुस्तकें तक छपी हैं, और एक अज्ञातकुलशील यह लेखक है, दिल्ली दरबार से दूर होने के कारण जिसका कुछ नहीं छपा। उल्टे उसकी लिखी चीज़ें चुरा ली जाती हैं। छी:, कितनी भद्दी बात!
Krishna Kalpit : प्रिय Sushobhit Saktawat, कल रात तुमने एक नवेली लेखिका रजनी मोरवाल के विरुद्ध चोरी की जो रिपोर्ट दर्ज़ कराई है, उसे ख़ारिज़ किया जाता है। अपना ख़ज़ाना सड़कों पर खुले-आम छोड़ जाते हो और चोरी की शिकायत करते हो – इतने नादान तो तुम नहीं लगते। मेरे अभी इतने बुरे दिन नहीं आये कि मैं रजनी मोरवाल की कहानी पढूँ, लेकिन तुमने जो हिस्से लगाये हैं, उनसे यह साबित होता है कि यह प्रेरणा जैसी अमूर्त चीज़ नहीं – सरासर चोरी है। तुम्हारी कई सारी पोस्टों का कहानी में ज्यों का त्यों इस्तेमाल किया गया है।
इसमें एक और चोरी छुपी हुई है। इस कहानी में चर्चित कथाकारा मनीषा कुलश्रेष्ठ की शालभंजिका को भी चुराया गया है। रजनी मोरवाल लगता है मनीषा कुलश्रेष्ठ बनना चाहती है, जबकि इस कहानी में शालभंजिका को रणकपुर के मंदिरों से जोड़ दिया गया है, जो तथ्यात्मक रूप से ग़लत है। इस कहानी के एक हिस्से में पोर्नोग्राफिक कताई भी की गई है। लगता है रजनी मोरवाल प्रवासी कथाकार तेजेन्द्र शर्मा, स्त्री-प्रकाशक महेश भारद्वाज और बोल्ड लेखिका गीताश्री की प्रेरणा से कुछ ज़ल्दी लोकप्रिय होना चाहती है।
तुम्हारे जैसा अद्भुत गद्य लिखने वाले अभी हिंदी में बहुत कम हैं। इतना जादूभरा गद्य लिखकर तुम्हारा यह सोचना कि उसे चुराया नहीं जाएगा – तुम्हारी नादानी है। मेरा तुमसे अनुरोध है कि अपनी शिकायत वापस ले लो और रजनी मोरवाल को मुआफ़ी फ़रमाओ। हम तो एक ही मोरवाल को जानते हैं, जिसका नाम भगवानदास मोरवाल है और जो हमारा प्यारा दोस्त और शानदार लेखक है। अगर तुम्हारे दिल में हिंदुस्तानी मुसलमानों के लिये नफ़रत नहीं होती, तो मैं तुम्हें कभी का चुरा लेता, अपहरण कर लेता – उठा ले जाता।
अभी इतना ही!
तुम्हारा एक प्रशंसक,
कृष्ण कल्पित
सौजन्य : फेसबुक