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सुख-दुख

कोरोना महामारी में पत्रकारों को बीमा और आर्थिक मदद की दरकार

कोरोना महामारी के दौर में पूरे देश में लाॅकडाउन जारी है। इस अदृश्य दुश्मन से हर कोई बचना चाहता है। इस समय घर से बाहर समय गुजारना जान को खतरे में डालने जैसा है। लेकिन कोरोना योद्धा के रूप में डाॅक्टर, पुलिस, सफाईकर्मी और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मीडियाकर्मी भी जान का जोखिम लेकर प्रतिदिन अपना फर्ज निभा रहे हैं। इन विषम परिस्थितियों में भी पत्रकार क्षेत्र में रहकर विभिन्न सूचनायें एवं समाचार आम जनता तक पहुॅंचा रहे हैं। मीडियाकर्मियों को अन्य योद्धाओं की तरह तालियाँ तो मिली हैं लेकिन कोरोना बचाव के लिये आवश्यक उपकरण, स्वास्थ्य बीमा और आर्थिक सहयोग जैसी उनकी माँगों को अनसुना किया जा रहा है।

वायरस संक्रमण की संभावनाओं के बीच कोरोना काल में पत्रकार और मीडिया संस्थानों का जीवन दांव पर लगा हुआ है। केन्द्र सरकार ने अन्य कोरोना योद्धाओं के लिये तो संक्रमण से मृत्यु होने पर 50 लाख के बीमा की घोषणा की है लेकिन पत्रकारों को इससे अछूता रखा गया है। जबकि कोरोना से लड़ाई में वे सरकारी वेतनभोगी अन्य योद्धाओं के साथ खड़े हैं। तमाम पत्रकार संगठनों द्वारा राज्य सरकारों से पत्रकारों के लिये कोरोना सुरक्षा बीमा और लाॅकडाउन के दौरान आर्थिक सहयोग की मांग लगातार की जा रही है। लेकिन पत्रकारों को सहयोग की अपेक्षाओं पर सरकारी रवैया निराश करने वाला है ।

मीडिया रिर्पोट के मुताबिक महाराष्ट्र के मुंबई में एक मीडिया हाउस द्वारा 167 पत्रकारों के कराये गये कोरोना टेस्ट में 53 पत्रकार इस वायरस से संक्रमित पाये गये हैं। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में एक पत्रकार को कोरोना पाॅजिटिव मिलने से उसके साथियों सहित प्रशासनिक अधिकारियों में भी हड़कम्प मच गया। मध्यप्रदेश, पंजाब, हिमाचल, असम, तमिलनाडू आदि प्रदेशों में भी पत्रकारों के कोरोना से संक्रमित होने की सूचनाऐं हैं । इन परिस्थितियों में रिर्पोटिंग कर रहे पत्रकारों को संक्रमण का कितना खतरा है, इसके लिये ये खबरें आँखें खोल देने वाली हैं।

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इसके बावजूद भी पत्रकार अपनी भूमिका पूरी निष्ठा से निभा रहे हैं। लेकिन इस निष्ठा के बदले कोरोना कवच के रूप में पत्रकारों के हिस्से में कुछ विधायक, सांसद और मंत्रियों द्वारा की गयीं दिखावटी घोषणाओं के बेअसर पत्र और कुछ सामाजिक संस्थाओं द्वारा बांटी गयी सेनेटाईजर की शीशियां ही आई हैं।

दिल्ली में बढ़ते कोरोना वायरस मामलों के मद्देनजर केजरीवाल सरकार ने मीडियाकर्मियों के लिये फ्री कोरोना टेस्ट की सुविधा शुरू की है। हरियाणा और उत्तराखण्ड राज्य में पत्रकारों को कोराना वारियर्स मानते हुए संक्रमण से मृत्यु होने पर आश्रितों को 10 लाख रूपये बीमा राशि देने का प्राविधान किया गया है। लेकिन उत्तर प्रदेश में शासन से इस संबंध में कोई घोषणा नहीं हुई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार डाॅ. रहीश सिंह के अनुसार ‘‘विभिन्न पत्रकार संगठनों एवं मान्यता समिति के माध्यम से मीडियाकर्मियों की मांग सरकार तक पहुंची हैं। फिलहाल लाॅकडाउन में सरकार का ध्यान आमजन की मूलभूत आवश्यक्ताओं को पूरा करने पर केन्द्रित है लेकिन यह विषय भी संज्ञान में है।’’

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गौरतलब है कि कोरोना के डर से उद्योग, व्यापार और छोटे कामधंधों पर तालाबंदी है। उत्तर प्रदेश सरकार सामान्य बेसहाराजनों से लेकर दिहाड़ी मजदूर परिवारों तक राशन एवं आर्थिक सहायता पहुंचाने पर जोर दे रही है, लेकिन दूसरे वर्गों को भी सहायता की दरकार है। केवल पत्रकारिता पर जीवन यापन करने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के पत्रकारों की हालत तो दिहाड़ी मजदूरों से भी अधिक खराब है। वे इस सुविधा का भी लाभ नहीं ले पा रहे हैं। अखबार के घटते पन्नों और पत्रकार संगठनों के बेअसर होते पत्रों के साथ ही इनकी उम्मीदें भी सिमटती जा रही हैं।

कोरोना महामारी में पूर्णकालिक पत्रकारों के सामने दोनों ओर से परेशानी है। बेहद कम वेतन पर नौकरी कर रहे पत्रकारों के एक समूह को घर से बाहर निकलकर रिर्पोटिंग करने पर वायरस संक्रमण से खतरा है, तो दूसरी ओर सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर घर बिठा दिये गये बहुत से पत्रकारों को छटनी का डर सता रहा है। लघु संस्थानों से जुड़े हुये एवं अंशकालिक पत्रकारों का तो राम ही मालिक है ।

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इस समय छोटे अखबारों की क्या कहें, बड़े मीडिया घरानों को अपने सभी संस्करण निकाल पाना दूभर हो गया है। इलैक्ट्राॅनिक चैनल भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। आने वाले दिनों में बाजार में पूरी तरह मंदी हावी होने के आसार हैं। ऐसे में सरकारी विज्ञापनों के भी एक साल तक बंदी की आशंकाओं के बीच भारत में कोरोना वायरस के समाप्त होने तक कई छोटे-मझोले अखबार और चैनल दम तोड़ दें, तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।

ऐसे में पत्रकारों के सामने जीवन और कैरियर सुरक्षा को लेकर कोरोना से भी बड़ी चिंतायें हैं । केन्द्र एवं प्रदेश सरकारों द्वारा कोरोना योद्धा तमगे के बावजूद पत्रकारों को बीमा सुरक्षा और आर्थिक सहयोग नहीं मिल रहा है। उन्हे इसकी सख्त दरकार है । सरकार को इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

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