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मध्य प्रदेश के सागर में हॉकरों की हड़ताल, नहीं बंटे अखबार

सोमवार 21 सितंबर को मध्य प्रदेश के सागर जिले में अखबार नहीं बंटे। हॉकरों ने हड़ताल कर रखी है। वे अपना कमीशन बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो मध्य भारत के इस मशहूर शहर में पहली बार पाठकों को अखबार पढऩे से वंचित रहना पड़ा है। सबसे ज्यादा आघात दैनिक भास्कर को लगा है। पहली बार उसका प्रबंधन अपनी खबरी पोटली को पाठकों के समक्ष पेश कर पाने में नाकाम रहा है।

<p>सोमवार 21 सितंबर को मध्य प्रदेश के सागर जिले में अखबार नहीं बंटे। हॉकरों ने हड़ताल कर रखी है। वे अपना कमीशन बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो मध्य भारत के इस मशहूर शहर में पहली बार पाठकों को अखबार पढऩे से वंचित रहना पड़ा है। सबसे ज्यादा आघात दैनिक भास्कर को लगा है। पहली बार उसका प्रबंधन अपनी खबरी पोटली को पाठकों के समक्ष पेश कर पाने में नाकाम रहा है।</p>

सोमवार 21 सितंबर को मध्य प्रदेश के सागर जिले में अखबार नहीं बंटे। हॉकरों ने हड़ताल कर रखी है। वे अपना कमीशन बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो मध्य भारत के इस मशहूर शहर में पहली बार पाठकों को अखबार पढऩे से वंचित रहना पड़ा है। सबसे ज्यादा आघात दैनिक भास्कर को लगा है। पहली बार उसका प्रबंधन अपनी खबरी पोटली को पाठकों के समक्ष पेश कर पाने में नाकाम रहा है।

राजस्थान पत्रिका के तकरीबन साढ़े तीन सप्ताह पहले सागर से अपना प्रकाशन शुरू करने की वजह से यहां से निकलने वाले अखबारों में एक अलग और नई तरह की होड़ शुरू हो गई है। अभी तक यहां दैनिक भास्कर का वर्चस्व रहा है जिसमें पत्रिका ने बहुत बड़ा विघ्न डाल दिया है। खबरों के मामले में खींचतान, होड़, संघर्ष बढ़ा ही है, मार्केट कैप्चर करने की प्रतिद्वंद्विता भी जबर्दस्त ढंग से बढ़ी है। इस बीच अखबार लोगों तक पहुंचाने वालों यानी हॉकरों को भी अपनी कमाई में थोड़ा इजाफा करने की लालसा जागी है। इसे पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कमीशन को बढ़ाने की मांग अखबार प्रबंधकों के सामने रख दी। हॉकरों की मांग अखबार मालिकों ने मानने से मना कर दिया। उल्टे अपनी हेकड़ी दिखाने लगे कि -देखते हैं हॉकर अखबार कैसे नहीं बांटते हैं! हॉकरों को यहां तक बोल दिया कि अखबार तुम नहीं बांटोगे तो हम अपने लोगों से बंटवा लेंगे।

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लेकिन यह मैनेजमेंट की महज भभकी ही निकली और हॉकरों ने अखबार नहीं उठाया। इससे सबसे ज्यादा झटका दैनिक भास्कर को लगा है। भास्कर सोमवार को मार्केट में नजर ही नहीं आया। उसे लगा कि कर्मचारियों का रक्त चूसने की तरह वह हॉकरों की मेहनत को भी यूं ही लूटते रहेंगे और वे मौन धरे हमें सहते-बर्दास्त करते रहेंगे। पर हॉकरों ने लुटेरों-शोषकों को उनकी औकात दिखा दी। और मना कर दिया अखबारी गट्ठर पाठकों के दर पर फेंकना। साफ कह दिया- हमारा कमीशन हमारी अपेक्षा के अनुसार बढ़ाओ, तभी अखबार हम घर-घर डालेंगे।

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