जब खुद नेताओं ने पत्रकारों को बताया कि उनका सही नाम क्या है और इसे कैसे लिखा जाए

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Shambhunath Shukla : ग्लासनोस्त दर्शन के प्रणेता और सोवियत संघ के कर्ताधर्ता मिखाइल गोर्बाचेव साल 1988 में भारत आए तो दिल्ली के सारे अखबारों को सोवियत सूचना केंद्र ने एक-एक पेज का विज्ञापन दिया। हमारे जनसत्ता को भी दिया गया। मगर उनका नाम गलत न छपे इसलिए कनाट प्लेस के बाराखंभा रोड स्थित सोवियत सूचना केंद्र का एक रूसी अधिकारी हमारे दफ्तर आया और उसने बताया कि साहब आप लोग हमारे नेता का नाम गलत लिखते हैं। उनका सही नाम गोर्बाचेव नहीं गोर्बाच्येव है।

 

उस रूसी अधिकारी ने स्याही वाले पेन से नागरी लिपि में गोर्बाच्येव का नाम इतना सुघड़ लिखा कि हम उसके मुरीद हो गए। चौधरी चरण सिंह के अंतिम दिनों में उनके विलायतपलट सुपुत्र अजित सिंह ने एक दिन स्वयं आकर बताया कि साहब हमारा नाम अजित सिंह है अजीत सिंह नहीं जैसा कि आप जनसत्ताई लोग लिखते हो। नीतिश कुमार ने खुद हमारे संपादक प्रभाष जोशी को फोन कर बताया था कि मेरा नाम नीतिश कुमार है नीतीश कुमार नहीं। लेकिन आज तक मुझे यह बात समझ नहीं आई कि जब खुद पूर्व प्रधानमंत्री दस्तखत करते समय अपना नाम अटलबिहारी वाजपेयी लिखा करते थे तो अरुण जेटली जैसे बच्चों की हिम्मत कैसे पड़ गई उनका नाम बिगाड़ कर अटलबिहारी बाजपाई बोलने की।

वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला के फेसबुक वॉल से.



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