भारत में टीवी पत्रकारिता के आधारस्तंभ और ‘आजतक’ के संस्थापक संपादक स्व. सुरेंद्र प्रताप सिंह (एसपी सिंह) की आज 20वीं पुण्यतिथि है, उन जैसे श्रेष्ठ पत्रकार को याद करना बहुत जरूरी है। आजतक 1995 में शुरू हुआ था और मैं इसी साल दिल्ली आया था बीएसएफ पॉलिटेक्निक से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने। शाम के समय अधिकांश छात्र recreation room में इकट्ठे होते थे जहां वो शतरंज, कैरमबोर्ड आदि खेलते थे, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं पढ़ते थे और टीवी पर फिल्म, धारावाहिक आदि देखते थे। मेरी खेल और फिल्म में कम रुचि थी। मैं अधिकांश समय समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं पढ़ने में ही बिताता था।
हां, टीवी पर समाचार जरूर देखता था। लेकिन जो सबसे प्रिय समाचार बुलेटिन था, वह था ‘आजतक’। तब इसका प्रसारण रात में 10 बजकर 20 मिनट पर होता था। और मैं इस बुलेटिन का इतना दीवाना था कि इस समय यदि कोई और कार्यक्रम लगा दिया जाता था तो मैं झगड़ा कर बैठता था। बाद में ‘आजतक’ का समय हमेशा के लिए निर्धारित हो गया और अनेक छात्र भी इसके नियमित दर्शक हो गए।
एस.पी. सिंह जिस तरीके से समाचार पढ़ते थे, वह निराला था। उनके वाचन में उतार-चढ़ाव की सहज प्रस्तुति होती थी। आंदोलन के समाचार, खुशी के समाचार, दुःखद समाचार, सभी भावपूर्ण तरीके से वे पेश करते थे। वहीं, खबरों का मिजाज ताजगी लिये हुए था, वह वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न होती थी (याद करें, गणेशजी को दूध पिलाने की घटना का भंडाफोड़ करना), क्षेत्रीय खबरों को भी राष्ट्रीय राजधानी में प्रमुखता से प्रसारित करना उनकी प्राथमिकता थी, दबाव और प्रभाव से परे वे स्वभाव से खबर दिखाते थे।
बुलेटिन का समापन तो वे और अनूठे अंदाज़ में करते थे, “ये थीं ख़बरें आजतक, इंतज़ार कीजिए कल तक।” यह सबकी ज़ुबान पर चढ़ गया था। 1997 में जब महज 49 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ तो ऐसा लगा मानो हमारा अपना कोई खास इस दुनिया से चला गया। उनके निधन के बाद अखबारों में पढ़ा कि आंध्र भवन में उनकी स्मृति में शोक-सभा आयोजित होनेवाली है। मैं अपने हॉस्टल से कम ही बाहर निकलता था। लेकिन एस.पी. सिंह से इतना लगाव हो गया था कि पता पूछते-पूछते उनकी स्मृति सभा में पहुंच गया था। पहली बार तब (ठीक से याद नहीं) प्रभाश शुंगलू, दिबांग, संजय पुगलिया, दीपक चौरसिया, आशुतोष आदि आजतक के चर्चित पत्रकारों को देखा था।
बाद में उनके लेखन से भी परिचय हुआ। आर. अनुराधा के संपादन में उनके लेखों का संकलन प्रकाशित हुआ था। हमारे मित्र पुष्कर पुष्प बहुत ही आत्मीयता और सक्रियता से गत 9 वर्षों से उनकी याद में प्रतिवर्ष कार्यक्रम करते हैं, मैं लगातार उनमें सहभागी रहा हूं। एस.पी. सिंह ने हिंदी पत्रकारिता को ऊंचाई दी। अपने पेशे के प्रति वे प्रतिबद्ध रहे। भाषायी पत्रकारिता को ऐसे सितारा पत्रकार की आज सख्त आवश्यकता है। उनकी 20वीं पुण्यतिथि पर मेरी विनम्र श्रद्धांजलि!
लेखक संजीव सिन्हा प्रवक्ता डाट काम के संपादक हैं.
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