राजस्थान पत्रिका में सेंट्रलाइज व्यवस्था होने के बाद नए-नए संपादक बने कथित पत्रकार भी अब रंग दिखाने लगे हैं। चापलूसी और चमचागिरी कर कई योग्य पत्रकारों के सीने पर पैर रखकर कुर्सी हासिल करने वाले कुछ संपादक अब मुख्यालय के आदेश की भी अवहेलना करने से बाज नहीं आ रहे।
इनमें से कई तो ऐसे हैं, जिन्हें स्थानीय संपादक शब्द को अंग्रेजी में लिखना तक नहीं आता फिर भी वे संपादक बनकर अपने से वरिष्ठ और योग्य कर्मचारियों पर ऑर्डर चला रहे हैं। कई संपादक तो दूसरे से काम करवाकर अपने नाम से उसे सोशल मीडिया पर वायरल भी कर रहे हैं ताकि अधिकारियों की नजर में वे ही श्रेष्ठ रहे।
हालांकि अब सेंट्रलाइज व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। कई कर्मचारी घर से काम कर रहे हैं। ऐसे में अब इन संपादकों की कुर्सी डोलती हुई नजर आ रही है।
अब बात करते हैं मुद्दे की। दरअसल २१ मार्च को पत्रिका में एक सर्कुलर जारी हुआ था, जिसमें एक सप्ताह तक साप्ताहिक अवकाश और अवकाश निरस्त करने की सूचना थी।
यह सर्कुलर सभी कर्मचारियों को तुरंत बता दिया गया।
सात दिन बाद भी उक्त सर्कुलर दिखाकर अवकाश निरस्त किए गए, लेकिन १५ अप्रैल के आसपास पत्रिका मुख्यालय से एक और सर्कुलर जारी हुआ, जिसमें लिखा था कि सभी कर्मचारियों के साप्ताहिक अवकाश तुरंत शुरू किए जाएं और कोई साथी अवकाश मांगता है तो उसे रोका ना जाए।
लेकिन मप्र के संपादकों ने यह सर्कुलर दबा दिया। उन्होंने किसी साथी को इसके बारे में नहीं बताया।
मतलब साफ है वे अपनी कुर्सी को बचाए रखने के लिए कोरोना के संक्रमण के खतरे के बीच भी कर्मचारियों से काम ले रहे हैं। कई कर्मचारी लगातार एक महीने से काम कर रहे हैं। ऐसे में उनकी सेहत बिगड़ भी सकती है। लेकिन संपादकों को सिर्फ अपनी कुर्सी ही प्यारी है।
मूल खबर-